लालू के लिए बहुत कठिन है डगर पनघट की
पटना, 09 मार्च (हि.स.)। राजद की राज्य संसदीय बोर्ड और केंद्रीय संसदीय बोर्ड ने रांची के जेल में बंद लालू यादव को लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवारों के चयन और महागठबंधन के घटक दलों के साथ सीटों के बंटवारे पर अंतिम फैसला लेने के लिए अधिकृत कर दिया है। मगर सीटों को लेकर जिस तरह से राजद के अंदर और महागठबंधन के घटक दलों के बीच पेंच फंसा हुआ है उसे देखते हुये कहा जा रहा है कि लालू प्रसाद के लिए इस बार पनघट की डगर आसान नहीं होगी। जेल में बैठकर लालू प्रसाद को राजद को 4 सीट से आगे ले जाने के लिए लोहे के चने चबाने होंगे।
इस वक्त महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, आरएलएसपी, हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा (हम), लोक जनतांत्रिक जनता दल (एलजेडी) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) शामिल है। महागठबंधन में शामिल लगभग सभी पार्टियां भले ही संरचनात्मक तौर पर खुद को लोकतांत्रिक तरीके से संचालित कर रही हों लेकिन व्यवहार में पूरी तरह से या तो व्यक्तिवादी नेतृत्व के सहारे आगे बढ़ रही हैं या फिर परिवारवाद के वृक्ष के सहारे। ऐसी पार्टियों में आपसी तालमेल बहुत हद तक शीर्ष नेतृत्व की मानसिकता और अपने हितों को साधने की उसकी क्षमता पर निर्भर करता है। बिहार में कांग्रेस का स्वरूप कुछ मिलाजुला -सा है। केंद्र में इसकी कमान भले ही राहुल गांधी के हाथ में हो, लेकिन बिहार में कई गुटों में विभाजित कांग्रेस के सभी गुट महागठबंधन में अधिक से अधिक सीट हासिल करने के पक्षधर हैं। और इसके लिए वह लंबे समय से राजद पर दबाव भी बना रहे हैं। राजद के प्रवक्ता चितरंजन गगन स्वीकार करते हैं कि कांग्रेस इस वक्त 12-13 सीटों पर दावा ठोक रही है लेकिन ये सीट कौन सी हैं इस सवाल पर वह चुपी साध लेते हैं।
बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं मगर कांग्रेस के पास महज दो सीट है- सुपौल और किशनगंज। सुपौल की सीट से रंजीता रंजन सांसद हैं, जो पप्पू यादव की पत्नी भी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद को कुल चार सीटों, अररिया, मधेपुरा, भागलपुर और बांका पर फतह हासिल हुई थी। मधेपुरा सीट से पप्पू यादव की जीत हुई थी। राजद के अंदर उत्तराधिकार की लड़ाई पर मुखर होने के बाद पप्पू यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। पप्पू यादव ने राजद के अंदर वंशवादी राजनीति को खुलेआम चुनौती देते हुये लालू प्रासद के बेटों तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव के नेतृत्व को चुनौती देने की कोशिश की थी। कांग्रेस सुपौल की सीट छोड़ेगी नहीं और राजद की हर मुमकिन कोशिश होगी कि मधेपुरा सीट से पप्पू यादव को चलता किया जाये। वैसे इस सीट पर शरद यादव की भी नजर होगी, क्योंकि इस सीट से शरद यादव चार मर्तबा नुमांइगी कर चुके हैं।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बिहार में राजद खुद को महागठबंधन में सबसे बड़ा खिलाड़ी के तौर पर देख रहा है। वह अधिक से अधिक सीट अपने पाले में रखना चाहता है। यदि सूत्रों की मानें तो राजद 20 सीट पर ताल ठोकने की तैयारी में है। इनमें वे सभी 15 सीटें शामिल हैं जिनपर राजद 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहा था। ये सीट हैं पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, झंझारपुर, दरभंगा, वैशाली, सीवान, सारन, उजियारपुर, बेगुसराय, खगड़िया, पाटलिपुत्रा, आरा और बक्सर। दरभंगा से 2014 में भाजपा के टिकट पर कीर्ति आजाद को फतह मिली थी। अब कीर्ति आजाद विधिवत कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और उन्हें कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से यह आश्वासन भी मिल चुका है कि दरभंगा से उन्हें टिकट दिया जाएगा। यदि राजद सेकेंड नंबर वाली सीटों पर अपने उम्मीदवारों को खड़ा करने के फार्मूले पर सख्ती से अमल करने की दिशा में कदम उठाता है तो इस सीट को लेकर कांग्रेस के साथ उसका टकराव होना लाजिमी है। इन सीटों पर राजद के उम्मीदवारों को लेकर एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि उन सभी उम्मीदवारों को टिकट मिलेगा जो पिछली बार दूसरे नंबर आये थे। इस बारे में अभी तक राजद के अंदर कोई निश्चित फार्मूला नहीं बना है। लेकिन जिस तरह से कुछ समय पहले पाटलिपुत्रा लोकसभा सीट को लेकर भाई वीरेंद्र का नाम हवा में उछला और जिस तरह से लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने अपनी इस सीट से अपनी बहन मीसा भारती के हक में आवाज बुलंद की थी उसे देखते हुये कहा जा सकता है कि सेकेंड नंबर वाली कुछ सीटों पर राजद के अंदर घमासान मच सकता है।
महागठबंधन में कांग्रेस के बाद आरएलएसपी तीसरी बड़ी खिलाड़ी है। 2014 में मोदी लहर के साथ बहने की वजह से आरएलएसपी को तीन सीटें हासिल हुई थीं- सीतामढ़ी, काराकाट और जहानाबाद। इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा को मंत्रिमंडल में भी शामिल किया गया था लेकिन नीतीश कुमार के फिर से एनडीए में शामिल होने के बाद से उपेंद्र कुशवाहा खुद को उपेक्षित महसूस करते हुये एनडीए से बाहर निकल आये। कमोबेश यही स्थिति हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता जीतनराम मांझी की रही। ये दोनों नेता महत्वाकांक्षी हैं और इनकी पूरी कोशिश होगी कि महागठबंधन में इन्हें अधिक से अधिक सीट मिले। लालू प्रसाद को इनकी बार्गेनिंग कैपेसिटी से जूझना होगा। जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार उपेंद्र कुशवाहा का साथ छोड़ चुके हैं इसलिए कुशवाहा इस सीट पर अपनी मजबूती दावेदारी ठोकेंगे। मुकेश सहनी बिहार की राजनीति में निषादों को एकजुट करके अपनी पहचान बनाने की कवायद लंबे समय से कर रहे हैं। कुछ दिनों तक भाजपा और जदयू की छत्रछाया में पलने -बढ़ने के बाद अब राजद से गलबहियां करके अपना कद बढ़ाने की जुगत में हैं। लोकसभा चुनाव में अपने लिए कम से कम खुद के लिए एक सीट तो यह चाहेंगे ही। लालू प्रसाद के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन सभी को साधते हुये राजद की राजनीति में अधिक से अधिक चमक पैदा करने की होगी।