नई दिल्ली, 22 मई (हि.स.)। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष और दारुल उलूम देवबंद के सह-प्रधानाध्यापक हज़रत अमीर-उल-हिंद मौलाना कारी सैयद मुहम्मद उस्मान मंसूरपुरी का शुक्रवार को दोपहर में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में इंतकाल हो गया। हज़रत मौलाना कोरोना वायरस के पश्चात होने वाली बीमारियों से परेशान थे। 19 मई को उनको मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां इलाज के दौरान हृदय की गति रुक जाने से देहांत हो गया।
वह एशिया की दो बड़ी संस्थाओं दारुल उलूम देवबंद और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मार्गदर्शक थे। वह मार्च 2008 से अब तक जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष रहे। 2010 में हजरत मौलाना मरगूबउर्रहमान के निधन के बाद इमारत-ए-शरीआ हिंद के तहत अमीर-उल-हिंद राबे चुना गया था। वह 1995 से जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कार्यसमिति के विशिष्ट आमंत्रित अतिथि और सदस्य रहे हैं। 1979 में हज़रत फिदा-ए-मिल्लत मौलाना सैयद असद मदनी के नेतृत्व में होने वाले ‘मुल्क व मिल्ल्त बचाओ’ आंदोलन में जेल भी गए।
फ़िदा-ए-मिल्लत के निधन के बाद उन्होंने संगठन की मूल नीतियों और परंपराओं के अनुसार मिशन और काम को आगे बढ़ाया। उनके अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाए और इस्लाम के शांति के संदेश को फैलाने के लिए दिल्ली और देवबंद में विश्व स्तरीय ’अमन-ए-आलम कांफ्रेंस’ का आयोजन किया। हज़रत मौलाना देश के सभी वर्गों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव के लिए प्रयासरत रहे, इसलिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपने कार्यकारिणी सम्मेलन 2019 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव के लिए ‘सद्भावना मंच’ की स्थापना की। इसी तरह 2017 में एक हजार शहरों में एक साथ शांति मार्च निकाले गए। साथ ही दलित-मुस्लिम एकता के लिए आंदोलन चलाए गए।
सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के आरक्षण के लिए 2011 में ’मुल्क व मिल्लत बचाओ’ आंदोलन चलाया गया जिसका नेतृत्व उन्होंने खुद लखनऊ में किया। इसके अलावा 2016 में अजमेर शरीफ में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की 33वीं आम बैठक आयोजित की गई, जिसमें मुसलमानों के दो वर्ग एक साथ आए और एकता का संदेश दिया। आपके नेतृत्व में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली दंगों के पीड़ितों और उससे पूर्व बिहार, कश्मीर बाढ़ पीड़ितों और मुजफ्फरनगर व असम के दंगा पीड़ितों के पुनर्वास का बड़ा कारनामा अंजाम दिया।
वह जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी के गुरु और शिक्षक थे। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष चुने जाने के बाद उन्होंने हमेशा अपनी बुद्धिमत्ता और ज्ञान के साथ उनका मार्गदर्शन किया। मौलाना मदनी ने उनके निधन को विशेष रूप से अपनी व्यक्तिगत क्षति बताया और कहा कि आज उन्होंने अपने एक गुरु, शिक्षक और संरक्षक को खो दिया। इसके अलावा वह दारुल उलूम देवबंद में हदीस के एक उच्च सम्मानित शिक्षक थे। वर्ष 2000 से भारत के मशहूर शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद में शैक्षिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ विभिन्न प्रशासनिक कर्तव्यों का बखूबी पालन करते रहे।
वह 1999 से 2010 तक दारुल उलूम देवबंद के उप प्रधानाध्यापक रहे। हाल ही में दारुल उलूम देवबंद की परिषद के सदस्यों ने उन्हें सह-प्रधानाध्यापक के रूप में चुना। वह फिलहाल दारुल-उलूम देवबंद के कार्यकारी प्रधानाध्यापक भी थे। उनके निधन से एशिया की दो बड़ी संस्थाएं दारुल उलूम देवबंद और जमीयत उलेमा-ए-हिंद और सामान्य रूप से भारतीय मुसलमानों के लिए अपूरणीय क्षति हुई है।