सीपीआई महागठबंधन में रहे या नहीं रहे, तीन सीट पर जरूर लड़ेगी चुनाव

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बेगूसराय, 01 सितम्बर (हि.स.)। विधानसभा चुनाव की डुगडुगी भले ही नहीं बजी है। लेकिन संभावित प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ती जा रही है, गठबंधन का गणित बैठाया जा रहा है। बेगूसराय में सात विधानसभा सीट हैं, प्रत्याशी जो कोई भी घोषित हो, लेकिन सातों सीट पर एनडीए और महागठबंधन के बीच आमने-सामने की टक्कर होगी तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) यहां तीन सीट पर हर हालत में चुनाव लड़ेगी। महागठबंधन गणित के अनुसार सीपीआई को एक सीट मिलेगी। लेकिन 2015 के विधानसभा तथा 2019 के लोकसभा चुनाव में मिले मत के आधार पर तीनों सीट पर प्रत्याशी उतारने के लिए तैयार है।

सीपीआई के विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि राज्य स्तर पर अभी महागठबंधन में शामिल हुए हैं। लेकिन सीट वितरण में सम्मानजनक समझौता नहीं होने पर गठबंधन का गणित कुछ भी हो सकता है। सीपीआई गठबंधन रहे या नहीं रहे, लेकिन तीन सीट बखरी, तेघड़ा और बछवाड़ा सीट से चुनाव लड़ेगी। वर्तमान में बखरी और तेघड़ा पर राजद का कब्जा है। जबकि बछवाड़ा पर कांग्रेस का कब्जा था तथा पिछले शनिवार को यहां के विधायक रामदेव राय का निधन हो गया है। एक समय था जब बेगूसराय जिले के सभी सात विधानसभा सीटों पर भाकपा और माकपा का लंबे समय तक दबदबा रहा है।
कभी ‘लेनिनग्राद’ का प्रतीक माने जाने वाले और ‘मिनी मास्को’ कहे जाने वाले बेगूसराय में बाद के वर्षो में वामपंथी कमजोर हुए और उनकी सीटें कम होती चली गई। 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गंठबंधन ने वामदलों को गहरा धक्का दिया, इसके बाद 2015 के चुनाव में जिला वामदल के हाथ से निकल गई। इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में वामपंथी फिर पुरानी पकड़ बनाना चाहेंगे। ऐसे में गठबंधन का गणित बिगड़ने पर महागंठबंधन, एनडीए और वाम दलों के बीच त्रिकोणात्म चुनावी संघर्ष के आसार बन सकते हैं। महागंठबंधन और एनडीए के घटक दलों में कौन सीट किसे मिलती है और कहां से कौन उम्मीदवार होगा, सब की नजर इसी पर है।
2019 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने यहां देश भर से नेता, बुद्धिजीवी, पत्रकार, कलाकार, लेखक, सिनेमा कलाकार आए और अपने भाषणों- विचारों से राष्ट्रवाद के दावे को खाद पानी दिया। एक तरफ राष्ट्र वादथा तो दूसरे तरफ भारत तेरे टुकडे होंगे के आरोप। लोहियावादी जातिवादी धारा जो पिछले 28 वर्षों से वामपंथी जनाधार को जातिवादी चासनी में लपेटकर साथ था उसको राष्ट्रवाद और राष्ट्रविरोध के रसायन में घोलकर तिरोहित करने का काम हुआ। राष्ट्रवाद उनकी पहली पसंद बनी जरूर, लेकिन वाम द्वितीय पसंद बनकर उभर गया और भविष्य की वाम राजनीति को नई दिशा मिलने के संकेत भी इसमें छिपे थे।
बेगूसराय आजादी के बाद से ही वाम नेता पैदा करता रहा है। कामरेड ब्रह्मदेव, चंद्रशेखर सिंह, सूर्यनारायण सिंह, रामेश्वर सिंह, देवकीनंदन सिंह आदि की परंपरा के नेता के रूप इस चुनाव ने जिला को कन्हैया के रूप में भविष्य का एक नेता तो दिया ही चुनाव लड़ने की एक संस्कृति भी दिया है। इन्हीं सारे गणित के मद्देनजर सीपीआई यहां हर हाल में तीन सीट पर चुनाव लड़ने के लिए पूरी तैयारी के साथ अडिग है।

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