बक्सर 15 जुलाई (हि ,स ) भारत का एक ऐसा गांव जहा आजादी के बाद एक भी मुकदमा थाने में दर्ज नही हुआ |आपसी भाईचारे की अदभूत मिसाल बना जिले के कथकौली गांव की आबादी 2535 की है यहा 70 परिवारों का समूह एक साथ रहता है |बावजूद इसके आजादी के दशको बाद भी यहा के लोग किसी भी आपसी विवाद को लेकर स्थानीय थाने का रुख नही किया |कारण है कि अदौगिक थाना में इन ग्रामीणों के खिलाफ एक भी मामला दर्ज नही है |आश्चर्य इस बात को लेकर भी है कि तेजी से हो रहे समाज का अपराधी कारण के बावजूद ना तो यहा के बुजुर्गो पर नाही गाँव के युवाओं के खिलाफ कोई अपराधिक मामला दर्ज है ,जब कि गांव में युवाओं की अच्छी खासी संख्या है |
बक्सर एसपी उपेन्द्रनाथ वर्मा के अनुसार यहा के लोग न्यायालय और थाने का चक्कर नही लगाते इस गाँव में ऐसा कोई विवाद नही हुआ की पुलिस को वहा जाना पड़े अगर कोई विवाद होता भी है तो गांव के बुजुर्ग आपसी समझौता करा देते है |
सदर प्रखंड से महज सात किलो मीटर की दूरी पर स्थित इस गाँव की अपनी एक अलग एतिहासिक पहचान है |भारतीय इतिहास के पन्नो में दर्ज मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना गुलाम होने से पूर्व अपने आस्तित्व की अंतिम लड़ाई ईष्ट इंडिया कम्पनी के हेक्टर मुनरो की अंग्रेज सेना के साथ इसी कथकौली गांव के मैदान में लड़ी थी |22 अक्तूबर 1764 के दिन शुरू इस युद्ध का परिणाम पांच घंटे से भी कम समय में निकल आया था |जहा हेक्टर मुनरो के समक्ष भारतीय संयुक्त सेना को शिकस्त का सामना करना पड़ा था |एतिहासिक साक्ष्यो के संदर्भ में बक्सर किले में मुग़ल शासक शाह आलम के प्रतिनिधि और मुग़ल सेनापति के बीच हुए एक समझौते के बाद युद्ध में मृत मुग़ल सैनिको को कथकौली गांव के समीप दफनाया गया था |
बात यहा कथकौली गांव के इतिहास की ना होकर उस भाईचारे की है जो आज के समाज के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है |बक्सर के लोग आज भी गाँव की इस अनूठी एकता पर फक्र करते है पर अफ़सोस तब होती है जब अपने ही लोगो द्वारा बगैर हौसलाअफजाई के इससे मुह मोड़ लिया जाता है |बात हम बिहार के पुलिस निर्देशक गुप्तेश्वर पाण्डेय की कर रहे है |जब यह खबर आई की उनके द्वारा पश्चिम चंपारण के कटराव् गाँव का दौरा किया गया |वहा भी बात यही थी की आजादी के बाद कोई भी ब्यक्ति थाने नही गया |जहा इस बात को लेकर कथकौली गांव निवासियों का कहना है कि वर्तमान बिहार पुलिस निर्देशक का यह गृह जनपद है उनकी यह बेरुखी हमे मायूस करती है |
गाँव के लोगो का यह भी कहना है कि गाँव आने जाने के रास्तो पर कतिपय लोगो द्वारा कब्जा कर लिए जाने से गांव के पास अपना कोई भी रास्ता नही है |कब्जाधारको द्वारा जब जी चाहे रास्ता रोक दिया जाता है उस वक्त हमे कठिनाइयो का सामना करना पड़ता है |गाँव के लोगो का यह भी आक्रोश है कि भारतीय पुरातत्व के ऐसे कई वजूद बिखरे पड़े है जिसकी सामूहिक अवहेला प्रशासन व जनप्रतिनिधियों द्वारा किया जा रहा है |उन्हें सिर्फ हमारी आवादी के वोट से मतलब है |