बिहार के सीमांचल कोसी की 7 सीटों में से भाजपा को सिर्फ अररिया सीट लगी हाथ

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अररिया ,20मार्च (हि.स.)। सीमांचल कोसी की सात सीटों में से सिर्फ इकलौती अररिया सीट भाजपा ने अपने लिए चुनी है। अब तक भाजपा तीन बार इस सीट से जीत चुकी है। इस सीट से पिछले लोकसभा चुनाव और उपचुनाव में भाजपा को सीट पर हार का सामना करना पड़ा था।
वैसे लोकसभा का यह चुनाव भाजपा के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी। कारण यह है कि भाजपा इस अररिया सीट पर जदयू के बिना और जदयू साथ दोनों तरीके से लड़कर देख चुकी है और यहां दोनों बार हार ही हुई है ।
इस अररिया लोकसभा सीट पर वर्ष 2009 में जदयू संग भाजपा तो राजद संग लोजपा थी ।
इस अररिया लोकसभा सीट से वर्ष 2009 में भाजपा जदयू के साथ मैदान में उतरी थी, जिसमें उसे जीत मिली थी। उस समय राजद के साथ लोजपा का गठबंधन था और लोजपा ने अपना प्रत्याशी जाकिर हुसैन खान को बनाया था। भाजपा को लगभग 22500 हजार के अंतर से जीत मिली थी। भाजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह को 282742 वोट मिले थे। इस अररिया लोकसभा सीट में वर्ष 2014 में भाजपा और लोजपा का गठबंधन था, जबकि जदयू अलग था।
अररिया लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 में एनडीए की ओर से भाजपा के प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह चुनाव लड़ रहे थे। दूसरी ओर महागठबंधन की ओर से राजद के प्रत्याशी मो. तस्लीमुद्दीन मैदान में थे।जदयू ने विजय मंडल को अपना प्रत्याशी बनाकर इस मैदान में उतारा था। भाजपा-जदयू के अलग होने का लाभ राजद को मिला था। मो. तस्लीमुद्दीन को 407978 वोट मिले थे और वे प्रदीप सिंह से 146504 वोट से जीत गये थे।
फिर अररिया लोकसभा सीट पर वर्ष 2018 में उपचुनाव हुए ।
अररिया के सांसद मो. तस्लीमुद्दीन की मौत उनके बीच कार्यकाल में ही हो गयी जिसके बाद अररिया सीट खाली हो गयी और यहां उपचुनाव कराया गया । इस सीट पर वर्ष 2018 में हुए उपचुनाव तक परिस्थितियां बदल गयी थीं ।भाजपा और जदयू का गठबंधन हो गया था। भाजपा ने फिर प्रदीप कुमार सिंह को मौका दिया था लेकिन राजद की ओर से मैदान में उतरे मो. तस्लीमुद्दीन के विधायक पुत्र सरफराज ने पिता से भी अधिक वोट लाकर भाजपा को 61 हजार वोटों से हरा दिया था। प्रदीप सिंह को 447546 वोट मिले थे।
वही, इस बार के आम लोकसभा चुनाव में बदले समीकरण में दोनों गठबंधनों के बीच इस अररिया लोकसभा सीट पर जोरदार मुकाबला होगा
इस सीट को लेकर राजनीतिक जानकारों का मनाना है कि उपचुनाव में सरफराज आलम को पिता की मौत पर सहानुभूति से मदद मिली थी। भाजपा को अंतरकलह का नुकसान हुआ था। भाजपा से प्रदीप सिंह इस बार भी टिकट की रेस में हैं, हालांकि अभी पार्टी ने किसी भी प्रत्याशी ने नाम की आधिकारिक घोषणा नहीं की है। बहरहाल स्थितियां चाहे जो भी हों, लेकिन इतना तो तय माना जा रहा है कि इस अररिया लोकसभा सीट पर बदले समीकरण में दोनों गठबंधनों के बीच मुकाबला जोरदार होने जा रहा है।
अररिया लोकसभा सीट पर भाजपा का कमल सबसे पहले 1998 में खिला था जब रामजी दास ऋषिदेव ने जीत दर्ज की थी। वे मात्र 13 माह ही सांसद रह पाये। उसके बाद 2004 में सुकदेव पासवान ने भाजपा को इस अररिया लोकसभा सीट पर जीत दिलायी। अररिया लोकसभा सीट आरक्षित से सामान्य होने के बाद वर्ष 2009 में प्रदीप सिंह ने जीत दिलायी ।
अररिया लोकसभा सीट पर 1967 से लेकर 1996 तक किसी पार्टी ने महिला उम्मीदवार पर दाव नहीं लगाया। इस बीच 1971 में निर्दलीय के रूप में यशोदा देवी मैदान में उतरी थीं। उन्हें हार का सामना करना पड़ा। किसी राजनीतिक दल ने पहली बार अररिया में 1998 में महिला उम्मीदवार को उतारा। राजद के टिकट पर गीता देवी चुनाव लड़ी थीं। 2009 में जब लोकसभा चुनाव में सीपीआई(एमएलएल) ने कमली देवी को टिकट दिया जबकि साधना देवी निर्दलीय उम्मीदवार थीं ।इसके बाद कोई महिला उम्मीदवार चुनाव इस अररिया लोकसभा सीट से नहीं खड़ी हुई ।


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