उच्च शिक्षण संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण लागू करने में कई अड़चन
नई दिल्ली (हि.स.)। केन्द्र सरकार व मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 40 हजार महाविद्यालयों और 900 विश्वविद्यालयों ( निजी व सरकारी दोनों ) में अगड़ी जातियों या सामान्य वर्ग के गरीब परिवार के छात्रों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण इसी वर्ष 2019-20 से लागू करने की घोषणा तो कर दी, लेकिन इसमें इतनी अस्पष्टता व व्यवधान हैं कि इसको लागू करने में तरह-तरह की परेशानी आने लगी है।
पूर्व सांसद हरिकेश बहादुर का कहना है कि अगड़ी जातियों की नाराजगी का खामियाजा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व राजस्थान विधानसभा चुनावों में भुगतने व सत्ता जाने के चलते चिंतित भाजपा व भाजपानीत केन्द्र सरकार ने लोकसभा चुनाव के पहले उन्हें (अगड़ी जातियों ) पुचकारने के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की चाल झटके में चली है। लेकिन इसे लागू करने के लिए जो आधारभूत ढांचा चाहिए वह दिये बिना ही इसे लागू करने का ऐलान कर दिया है। यही वजह है कि बहुत से विश्वविद्यालयों, संस्थानों, आईआईटी व आईआईएम ने इसको लागू करने में आ रही तरह-तरह की कठिनाइयों के मद्देनजर हाथ खड़ा कर दिया है। मानव संसाधन विकास मंत्री ने इसे सामान्य वर्ग के गरीबों के हित में बहुत बड़ा कदम बताते हुए शिक्षण संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए 25 प्रतिशत सीटें बढ़ाने की घोषणा तो कर दी, लेकिन न तो इसके लिए समय सीमा तय की है न ही इसके लिए फंड की व्यवस्था की है। इधर सामाजिक न्याय और कल्याण मंत्रालय ने केंद्रीय शिक्षण संस्थानों को अपने बलबूते बाहरी स्रोतों से धन की व्यवस्था करने को कहा है। यानि वे या तो फीस बढ़ावें या कहीं से ऋण लें या डोनेशन के लिए देश दुनिया में घूमें। अब यदि फीस बढ़ाते हैं तो आरक्षित व आनारक्षित सभी विद्यार्थियों पर बोझ पड़ेगा। अभी आईआईएम अहमदाबाद और कोलकाता जैसे संस्थानों में एक वर्ष की जो फीस हो गई है वह ही बहुत ज्यादा होने की बात कही जा रही है। ऐसे में सामान्य वर्ग के गरीब बच्चे भी यहां कैसे पढ़ पाएंगे। वह कर्ज के कुचक्र में फंसेंगे। इससे अन्य पिछड़े वर्ग तथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के बच्चों पर भी बहुत खर्च भार बढ़ेगा।
मालूम हो कि यूपीए सरकार ने तब के मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह की जिद व अड़ जाने पर 2006 में शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू की थी, तब सरकार ने उच्च संस्थानों के आधारभूत ढांचा के लिए धन राशि का प्रबंध किया था| उस समय केंद्रीय विश्वविद्यालयों को 2,166.89 करोड़ रुपये तथा तकनीकी संस्थाओं के लिए 4,227.46 करोड़ रुपये दिये गये थे। तब अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के लिए अनारक्षित सीटों में कटौती रोकने के लिए सरकार ने ऐसा किया था। नतीजतन 6 वर्ष में 54 प्रतिशत सीटें बढ़ाई गई थीं। उसी तर्ज पर वर्तमान केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अनारक्षित सीटों में कटौती रोकने के लिए केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में 25 प्रतिशत सीटें बढ़ाने के लिए तो कहा है, लेकिन इसके लिए सरकार धन नहीं दे रही है। इस बारे में बीएचयू प्रबंध संकाय के प्रमुख रहे प्रो. छोटे लाल का कहना है कि केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में 25 प्रतिशत सीटें बढ़ाने के लिए तो केवल केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ही 4,200 करोड़ रुपये अतिरिक्त धन चाहिए। यही नहीं, 2019-20 शिक्षण सत्र से सामान्य वर्ग के इस आरक्षण को लागू करने के लिए जो एक टेस्ट हो चुका है उसमें इसके लिए कोई कालम नहीं था। ऐसे में इसका जो एडवांस टेस्ट होने वाला है उसमें यदि कालम दिया जाएगा, तो सीटें बढ़ानी पड़ेंगी। क्योंकि, संविधान व कानून के अनुसार ओबीसी व एससी-एसटी के लिए जो 49.5 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है उसमें कटौती नहीं की जा सकती है। ऐसे में बाकी 50.5 प्रतिशत सीटों से अधिक यदि 10 प्रतिशत सामान्य वर्ग के गरीब छात्रों के लिए आरक्षित किया जाता है, तो उनके रहने के लिए आईआईटी, आईएएम व अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में हास्टल की जरूरत तो पड़ेगी ही, पढ़ाने के लिए अध्यापक बढ़ाने पड़ सकते हैं। क्लास भी बढ़ाने पड़ेंगे। यह सब करने के लिए, बनाने के लिए फंड चाहिए। या तो केन्द्र सरकार व मानव संसाधन विकास मंत्रालय लिखित में निर्देश दे कि अभी जो सीटें हैं उसी में से 10 प्रतिशत और आरक्षण दिया जाए या सीटें बढ़ाई जाएं व अभी जो हास्टल हैं उन्हीं में एक कमरे में दो छात्रों को रखा जाए। जो अध्यापक हैं उन्हीं से पढ़वाया जाए, जो क्लास हैं उसी में और बेंच लगाकर सीटें बढ़ाई जाएं। जो प्रयोगशाला हैं उन्हीं में एक के साथ दो छात्रों को प्रयोग करने के लिए लगाया जाए । यह करने पर केन्द्र सरकार के अपने ही बनाये शिक्षा के गुणवत्ता के मानक की धज्जियां उड़ेंगी। यदि इससे बचना है तो एक वर्ष में सभी आधारभूत ढांचा तैयार करने के लिए सरकार फंड दे और अगले वर्ष से इसे लागू करे।