आदर्श और नैतिकता पर हावी अवसरवाद बंगाल की राजनीति में
कोलकाता, 24 मई (हि.स.)। हाल ही में संपन्न हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव कई मामले में बेहद खास रहा है। चुनाव पूर्व जिस तरह से दल बदल की होड़ देखने को मिली, वह राजनीतिक अवसरवाद की नई गाथा लिख गयी। राजनीतिक दलों के नेताओं का खेमा बदलने का सिलसिला चुनाव के बाद भी जारी है। सत्तारूढ़ तृणमूल के जो नेता राज्य में भाजपा की सरकार बनने की उम्मीद लेकर सत्ता की मलाई का स्वाद चखने की गरज से पाला बदल चुके थे, उनमें से ज्यादातर अब तृणमूल में लौटने के लिए छटपटा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सत्ता एक बार फिर से तृणमूल के हाथ लगी है।
लंबे समय तक ममता बनर्जी के करीबी रहे शोभन चटर्जी उनका साथ छोड़कर भाजपा में गए। हालांकि भाजपा में शामिल होने के बाद भी करीब दो साल तक पार्टी से दूरी बनाए रखी। जब चुनाव करीब आया तथा राज्य में भाजपा की लहर दिखने लगी तो पार्टी में सक्रिय हो गये। हालांकि जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो चंद मिनट के अंदर अपनी महिला मित्र बैसाखी बनर्जी के साथ पार्टी से इस्तीफा दे दिया। बेहला पूर्व जहां से वह पहले विधायक रह चुके हैं वहां से उनकी पत्नी रत्ना चटर्जी (जिनसे अनाधिकारिक तौर पर उनका संबंध विच्छेद हो चुका है) तृणमूल के टिकट पर चुनाव जीत गईं। शोभन का उनकी पत्नी रत्ना के साथ तलाक का केस चल रहा है और वह अपनी महिला मित्र बैसाखी बनर्जी के साथ अलग रहते हैं। फिलहाल शोभन नारद मामले में सीबीआई के हाथों गिरफ्तार हैं।
विधानसभा की पूर्व उपाध्यक्ष सोनाली गुहा सागरदिघी से तृणमूल विधायक रह चुकी हैं। चुनाव में पार्टी ने जब उन्हें टिकट नहीं दी तो ममता बनर्जी पर नजर फेरने का आरोप लगाते हुए रोते बिलखते भाजपा में शामिल हो गई थीं। अब भाजपा की शिकस्त के बाद तृणमूल में वापसी के लिए बेताब हैं। उन्होंने ममता को मिन्नत भरी चिट्ठी लिखी है, जिसमें कहा है कि जैसे जल बिन मछली तड़प कर मर जाती है उसी तरह से वह दीदी के बगैर तड़प कर मर जाएंगी। सोशल मीडिया पर लोग उन्हें तरह-तरह से ट्रोल कर रहे हैं और उनकी अवसरवाद की राजनीति को लेकर तीखा व्यंग्य भी कर रहे हैं।
इस बारे में जब ‘हिन्दुस्थान समाचार’ ने उनसे सवाल पूछा तो सोनाली ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी में उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा था। पार्टी के नेता कार्यक्रम में नहीं बुलाते थे। जब उनसे पूछा गया कि तृणमूल में वापसी की अर्जी को लेकर जिस तरह से उन पर सवाल खड़े हो रहे हैं, उस बारे में उन्हें शर्मिंदगी महसूस नहीं होती? इस पर सोनाली ने कहा कि पहले भी जब तृणमूल छोड़ा था तो बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा था लेकिन उस वक्त उन्होंने भावनाओं में बह कर गलत फैसला ले लिया था। इसे सुधारना होगा। उनसे पूछा गया कि राजनीति में इतनी बेइज्जती सहकर भी रहना जरूरी क्यों लगता है? इस पर उन्होंने कहा कि जीवन भर राजनीति करती रही हूं। अब इससे अलग होना असंभव है।
सोनाली के अलावा पूर्व विधायक अमल आचार्य और सरला मुर्मु भी चुनाव से ऐन पहले तृणमूल छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गये थे। अब ये दोनों भी बिना तृणमूल में वापसी के लिए हाथ पैर मार रहे हैं। विधानसभा चुनाव में तृणमूल की ओर से टिकट मिलने के बावजूद पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल होने वाली सरला मुर्मु भाजपा में शामिल होने के अपने फैसले को भूल करार देते हुए तृणमूल नेतृत्व से पार्टी में शामिल करने की गुहार लगाई है।
दरअसल, तृणमूल कांग्रेस के कई ऐसे नेता हैं जो चुनाव से पहले भाजपा नेता मुकुल राय के साथ लगातार संपर्क में थे ताकि जैसे ही भाजपा की जीत की घोषणा हो, अपने समर्थकों के साथ पाला बदल लें लेकिन जब ममता जीत गईं तो रातों-रात उनका मन ही नहीं सोशल मीडिया पर डीपी भी बदल गया और अपनी फोटो की जगह ममता की तस्वीरें लगानी शुरू कर दी।
बंगाल की राजनीति में नैतिक पतन और अवसरवाद पर वरिष्ठ माकपा नेता रोबिन देव ने कहा कि 72 सालों में ऐसी कलंकित राजनीति पहले कभी नहीं देखी। वाम शासन में विधानसभा के मुख्य सचेतक रहे देव ने बताया कि आज राजनीति का सबसे विकृत रूप देखने को मिल रहा है, जहां आदर्श और नैतिकता अवसरवाद के सामने सरेआम दरकिनार किये जा रहे हैं।