नहीं रहे पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद

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जौनपुर, 20 जनवरी (हि.स.)। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व राजस्व मंत्री माता प्रसाद का मंगलवार की देर रात पीजीआई लखनऊ में इलाज के दौरान निधन हो गया। वे लगभग 97 वर्ष के थे।
जौनपुर के मछलीशहर तहसील क्षेत्र के कजियाना मोहल्ले में 11 अक्टूबर 1924 को जगरूप राम के पुत्र के रूप में जन्मे माता प्रसाद 1942-43 में मछलीशहर से हिंदी-उर्दू में मिडिल परीक्षा पास की। गोरखपुर के नॉर्मल स्कूल से ट्रेनिंग के बाद जिले के मडियाहू क्षेत्र के प्राइमरी स्कूल बेलवा में सहायक अध्यापक के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने गोविंद, विशारद के अलावा हिंदी साहित्य की परीक्षा पास की। अध्यापन काल में ही लोकगीत लिखना और गाना इनका शौक हो गया था।
राजनीति में उनकी कार्य कुशलता को देखते हुए हुए 1955 में जिला कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया। बाबू जगजीवन राम को आदर्श मानने वाले माता प्रसाद जिले के शाहगंज (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर 1957 से 1974 तक लगातार पांच बार विधायक रहे। 1980 से 1992 तक 12 वर्षों तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में 1988-89 तक राजस्व मंत्री बनाया था।
देश की नरसिंह राव सरकार ने 21 अक्टूबर 1993 को उन्हें अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया और 31 मई 1999 तक वे राज्यपाल रहे। राज्यपाल पद पर रहते उन्हें तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पद छोड़ने को कहा तो उन्होंने दरकिनार कर दिया था।
पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद एक साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते रहे। उन्होंने एकलव्य खंडकाव्य, भीम शतक प्रबंध काव्य, राजनीति की अर्थ सतसई, परिचय सतसई, दिग्विजयी रावण जैसी काव्य कृतियों की रचना ही नहीं की वरन अछूत का बेटा, धर्म के नाम पर धोखा, वीरांगना झलकारी बाई, वीरांगना उदा देवी पासी, तड़प मुक्ति की, धर्म परिवर्तन प्रतिशोध, जातियों का जंजाल, अंतहीन बेड़ियां, दिल्ली की गद्दी पर खुसरो भंगी जैसे नाटक भी रचे। इसके साथ ही राज्यपाल रहते उन्होंने मनोरम अरुणाचल पूर्वोत्तर भारत के राज्य, झोपड़ी से राजभवन आदि उल्लेखनीय कृतियां लिखी हैं।

 


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