विश्वभारती ने नोबेल विजेता अमर्त्य सेन पर लगाया गुरुदेव के संस्थान की जमीन कब्जाने का आरोप
कोलकाता, 24 दिसम्बर (हि.स.)। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला अंतर्गत शांति निकेतन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय की जमीन पर कब्जा करने का आरोप नोबेल पुरस्कार प्राप्त अमर्त्य सेन पर लगा है। इसके बाद से राज्य में राजनीति गरमा गई है।
दरअसल, विश्वभारती संस्थान ने विश्वविद्यालय के भूखंड कब्जाने वालों की एक सूची जारी की है जिसमें अमर्त्य सेन के साथ कई और लोगों के नाम हैं। इसमें कुछ सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के नेता भी हैं।
बताया गया कि विश्व-भारती ने पश्चिम बंगाल सरकार को लिखा है कि उनके दर्जनों भूखंडों पर कई निजी लोगों ने गलत तरीके से कब्जा कर रखा है। गर्ल्स हॉस्टल, अकादमिक विभाग, कार्यालय, यहां तक कि वीसी के आधिकारिक बंगले को भी गलत दर्ज किए गए भूखंडों की सूची में शामिल किया गया है।
विश्वविद्यालय का आरोप है कि सरकार के रिकॉर्ड-ऑफ-राइट में गलत स्वामित्व दर्ज करने के कारण, विश्वविद्यालय की भूमि को अवैध रूप से ट्रांसफर कर दिया गया है और प्राइवेट लोगों ने रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा खरीदी गई भूमि पर रेस्तरां, स्कूल और अन्य व्यवसाय खोल लिए हैं।
प्रोफेसर सेन के मामले में यूनिवर्सिटी ने कहा कि विश्व-भारती सेन के दिवंगत पिता को कानूनी तौर पर पट्टे पर 125 डेसीमल जमीन लीज पर दी थी। उन्होंने इस जमीन के अलावा, 13 डिसमिल जमीन पर अनधिकृत कब्जा कर रखा है। विश्वभारती के संपदा कार्यालय के अनुसार ऐसे गलत रिकॉर्ड 1980 और 1990 के दशक में तैयार किए गए थे। इन भूखंडों में से अधिकांश शांतिनिकेतन के पुर्वापल्ली इलाके में स्थित हैं, जो कि आ पड़श्रमियों के आवासीय हब के रूप में जाना जाता है।
विश्व-भारती के कार्यालयों के दस्तावेज और सीएजी की वह रिपोर्ट शिक्षा मंत्रालय (एमओई) को भेजी है, जिसमें विश्वविद्यालय की भूमि के अतिक्रमण को 1990 के दशक के अंत में होना बताया गया है। प्रोफेसर सेन ने 2006 में 99 साल की लीज-होल्ड भूमि को अपने नाम पर ट्रांसफर करने के लिए तत्कालीन कुलपति को लिखा था। कार्यकारी परिषद के फैसले के बाद यह हो गया लेकिन अतिरिक्त भूमि विश्वविद्यालय को सेन ने वापस नहीं की। जुलाई 2020 में विश्व-भारती के एस्सेट ऑफिस ने विभिन्न कार्यालयों को जारी एक गोपनीय आंतरिक रिपोर्ट में कहा कि विश्वविद्यालय ने 77 भूखंडों के स्वामित्व के रिकॉर्ड में सुधार का मामला उठाया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुर्वापल्ली, दक्षिणपल्ली, श्रीपल्ली क्षेत्रों के पट्टे वाले भूखंडों से अनधिकृत कब्जे हटाए जाने हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ये बहुत ही हाई प्रोफाइल लोग हैं। हालांकि, संपत्ति कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर और बाद में उनके बेटे रतिंद्रनाथ को आईसीएस अधिकारियों, शिक्षाविदों और शाही परिवार के सदस्यों जैसे प्रतिष्ठित लोगों को शांति निकेतन में निवास करने का आश्वासन मिला, इस आश्वासन के साथ कि उन्हें घर बनाने के लिए जमीन दी जाएगी। 99 साल की लीज के बदले में, उनमें से कुछ ने विश्व-भारती के विकास कोष में धन का योगदान दिया। हालांकि, मूल पट्टेदारों में से कई ने टैगोर और उनके बेटे के निधन के बाद अपने भूखंडों को अवैध रूप से ट्रांसफर करवा लिया। वर्तमान में अधिकांश वारिस गैर-निवासी शांतिनिकेतन हैं, जो परिसर में प्रमुख भूमि के बड़े हिस्से पर कब्जा किए हुए हैं। कई व्यवसाय कर रहे हैं। ये लोग इन जमीनों को विश्वविद्यालय परिसर के तौर पर नहीं देखते हैं।