रायबरेली में सपा और बसपा को साधना प्रियंका के लिए कड़ी चुनौती
-सपा विधायक ने दी कांग्रेस हाईकमान को चेतावनी,रायबरेली को’चारागाह’न समझे’
रायबरेली, 01 मार्च(हि.स.)। सपा और बसपा ने भले ही कांग्रेस के लिए रायबरेली में वाकओवर दिया हो, लेकिन जमीनी स्तर पर इसे साधना कांग्रेस के लिए काफी मुश्किल है। 2017 के विधानसभा चुनाव में एक दूसरे के विरोधी रहे इन नेताओं के लिए 2019 के चुनाव से ज्यादा अपना राजनीतिक भविष्य महत्वपूर्ण लग रहा है, ऐसे में इनकी सारी कवायद अपना हित साधने में ही है।
अभी से कांग्रेस और दोनों दलों के नेता अपने-अपने हिसाब से रणनीति बनाने में जुट गए हैं। ऐसी स्थिति में प्रियंका गांधी के लिए जमीनी स्तर पर सपा और बसपा के कार्यकर्ताओं को अपने पक्ष में लाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। सपा विधायक और एक पूर्व मंत्री ने तो इशारों में कांग्रेस नेतृत्व को चेतावनी देते हुए रायबरेली को चारागाह न समझने की नसीहत तक दे डाली। असल में विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस सपा और बसपा एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े थे,ऐसे में इन नेताओं को कांग्रेस का समर्थन करना भविष्य के लिए नुकसानदेह लग रहा है और जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे दोनों दलों के नेता स्थानीय स्तर पर अपने लाभ हानि के हिसाब से रणनीति बनाने में जुटे गये हैं। वही कांग्रेस के स्थानीय नेता रायबरेली में सपा और बसपा के चुनाव न लड़ने से खुश होकर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में लगे हैं।इसी को लेकर सपा और बसपा के नेता और कांग्रेस के नेताओं में खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। हाल ही में ऊँचाहार क्षेत्र के कांग्रेस की एक रैली हुईं जिसमें अपरोक्ष रूप से स्थानीय विधायक को घेरने की कोशिश हुई। दो दिन बाद ही ऊँचाहार के सपा विधायक और पूर्व मंत्री मनोज पाण्डे ने भी जबाबी रैली करके कांग्रेस नेतृत्व को कड़ी चेतावनी दी और रायबरेली को चारागाह न समझने की हिदायत दी और संकेत दिया कि लोकसभा में कार्यकर्ताओं के पास भी कई विकल्प हो सकते हैं। इस तरह की स्थिति अन्य क्षेत्रों में भी बन रही है जिसका नुकसान कांग्रेस को होगा। क्योंकि यदि सपा बसपा ने मिलकर रायबरेली में कंग्रेस का साथ न दिया तो परिणाम चौकाने वाले हो सकते हैं। इस बात को कांग्रेस नेतृत्व भी अच्छी तरह से जनता है और इसको लेकर परेशान भी है।
2017 के विधानसभा चुनाव में इसकी बानगी देखने को मिली थी, जब सपा और कांग्रेस के गठबंधन के बावजूद रायबरेली के ऊँचाहार और सरेनी विधानसभा में दोनों दलों के उम्मीदवार आमने सामने लड़े थे। ऐसे में प्रियंका गांधी के लिये बड़ी चुनौती जहां सपा और बसपा के कार्यकर्ताओं को कांग्रेस के साथ जोड़ना होगा, वहीं पार्टी के भी नेताओं को आगाह करना होगा कि वे अपनी हितों की जगह कम से कम रायबरेली लोकसभा चुनाव तक पार्टी नेतृत्व के हिसाब से कार्य करें।