हमीरपुर, 30 जून (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की वीरभूमि हमीरपुर जिले में 162 साल पूर्व पेशवा राज्य घोषित किया गया था। इस भूभाग में अंग्रेजों के खिलाफ बहुत बड़ी जंग सेनानियों ने स्थानीय लोगों की मदद से छेड़ी थी। एक जुलाई 1857 को पेशवा राज घोषित होने के बाद ब्रिटिश फौजों ने कानपुर पर दोबारा कब्जा किया था। देशी रियासतों व राजाओं की गद्दारी के कारण ब्रिटिश हुक्मरानों ने सम्पूर्ण क्षेत्र में कब्जा किया था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेज प्रशासकों ने वीरभूमि में जिस तरह से नंगनाच किया था उसकी एक-एक गाथा आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
वर्ष 1757 में 23 जून को प्लासी युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दोला को मीरजापर की गद्दारी से ब्रिटिश कम्पनी के सैनिकों ने करारी मात देकर भारत में ब्रिटिश शासन की आधारशिला रखी थी। ब्रिटिश शासन की स्थापना के 100 साल बाद 1857 में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ बगावत की उठी चिंगारी देखते ही देखते पूरे भारत में फैल गयी थी। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मेरठ छावनी में बगावत की आग भड़की तो उससे पूरा देश प्रभावित हुआ। 1857 का मई महीना मेरठ शहर व सिपाही मंगल पांडेय ने जंग छेड़ दी थी। उस जमाने में टीके लायड हमीरपुर में ब्रिटिश कलेक्टर थे। हमीरपुर के क्षेत्राधिकार वाली 56 वीं नेटिव इन्फेटी फोर्स का मुख्यालय कानपुर भी सैनिक असंतोष के दौर से गुजर रहा था। चारों ओर फैल रहे अंसतोष और विद्रोह की खबरों से हमीरपुर के देशभक्त भी अंग्रेज प्रशासन के खिलाफ लामबंद हो गये थे।
हमीरपुर में 13 जून 1857 के दिन अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़का था। उसी दिन ट्रेजरी में तैनात सशस्त्र गार्ड ने बगावत कर दिया था। कलेक्टर के आवास पर भीड़ ने धावा बोला था। यहां के लोकतंत्र सेनानी, मेहेरनाथ निगम, देवीप्रसाद गुप्ता व समाजसेवी बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी समेत अन्य बुजुर्गों के मुताबिक स्वतंत्रता संग्राम के दौैरान 1 जुलाई 1857 को पेशवा राज्य घोषित किया गया था। वहीं 24 मई 1858 तक हमीरपुर जनपद ने स्वतंत्र सत्ता में रहने का गौरव हासिल किया था।
हमीरपुर कारागार से छुड़ाये गये थे कैदी
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की एक टुकड़ी ने स्थानीय लोगों के साथ पहले तो अंग्रेज कलेक्टर आवास पर धावा बोला था फिर कारागार में हल्ला बोलकर कैदियों को मुक्त कराया गया था। भीड़ के जेल में हल्ला बोलने के समय यूरोपियन कैदी भाग गये थे जबकि अन्य कैदी मार दिये गये थे। अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ी गयी जंग के दौरान हमीरपुर में स्थिति तनावपूर्ण हो गयी थी।
भीड़ को देख आवास से भागे थे अंग्रेज अफसर
बताते है कि भीड़ को देख अंग्रेज कलेक्टर टीके लायड व ज्वाइंट मजिस्ट्रेट डोनाल्ड ग्रांट बंगला छोड़कर यमुना नदी से होते हुये यमुना बेतवा के संगम स्थित झाडिय़ों में छिपे थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों व स्थानीय लोगों की भीड़ ने संगम के आसपास घेराबंदी कर इन दोनों को रस्सी से बांधकर खूब मारा था। फिर मारते पीटते दोनों को हमीरपुर कचहरी लाया गया था।
कचहरी में सरेआम मारे गये थे अंग्रेज प्रशासक
एतिहासिक घटनाक्रम के मुताबिक विद्रोहियों के हाथों पकड़े गये दोनों अंग्रेज अफसरों को 6 किमी पैदल दौड़ाकर हमीरपुर लाया गया था और दोनों की बेरहमी से पिटाई भी की गयी थी। बताते है कि दोनों अंग्रेज प्रशासकों को हमीरपुर कचहरी परिसर में लाकर सरेआम गोलियों से छलनी कर डाला गया था। इस दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भारत माता के नारे भी लगाये थे।
ब्रिटिश फौजों के हथियार लूटने पर उजड़ा था पूरा गांव
हमीरपुर के सुरौली बुजुर्ग गांव के गौर राजपूतों ने यमुना नदी पार कर रहे अंग्रेजों की बंदूक से भरी एक नाव लूटी तो अंग्रेजी फौज ने इस गांव को ही उजाड़ दिया था। गिरधारी ठेकेदार की हत्या कर दी थी। बताते है कि विद्रोह के दौरान बिहुंनी के नवाब हुसैन खान ने कलेक्टर टीके लायड की मदद के लिये 100 आदमी व एक बन्दूक की व्यवस्था की थी। 500 नये सैनिकों की भर्ती लायड ने की थी।
अंग्रेजों की धरोहरें अब बनी इतिहास का पन्ना
अंग्रेजों के जमाने में बनी कचहरी में बुलडोजर चलवाकर नयी कलेक्ट्रेट का निर्माण चल रहा है। हमीरपुर सदर तहसील भी इतिहास का पन्ना बन चुकी है। अस्पताल सहित हमीरपुर शहर में कई धरोहरें भी खत्म हो गयी हैं लेकिन मौदहा क्षेत्र के नारायच गांव में आज भी अंग्रेजी हुकूमत का बंगला खंडहर में तब्दील है।