मेरठ से हिन्दुओं का पलायन क्यों?

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श्न उठता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं? हम विभाजन की बात क्यों करते हैं? भारत में लाखों की संख्या में रोहिंग्या और बांग्लादेशी बेधड़क निवास कर सकते हैं तो हमें आपस में रहने और एक-दूसरे की धर्म-संस्कृति से क्यों इतनी घृणा है?



नई दिल्ली, 30 जून (हि.स.)।हिन्दू परिवारों के पलायन का मसला एक बार फिर गरमा गया है। इस बार शामली का कैराना नहीं मेरठ का प्रहलाद नगर है। हालांकि सारे हालात तीन साल पूर्व के कैराना जैसे ही हैं। पलायन की खबर से राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार की नींद उड़ गयी है। मुख्यमंत्री ने इस मसले को खुद गंभीरता से लिया है। मुख्यमंत्री कार्यालय ने अफसरों से गोपनीय रिपोर्ट तलब की है। एक अहम सवाल है कि अस्सी फीसदी हिन्दू अपने ही देश में पलायन को बाध्य क्यों होते हैं? पलायन की बात यूपी ही से क्यों उठती हैं? दूसरी बार ऐसा हुआ है जब हिन्दू परिवारों के पलायन की बात सामने आ रही है। कैराना से जब पलायन का मसला उठा था तो राज्य में उस दौरान अखिलेश यादव की सरकार थी। लेकिन इस बार हिन्दुत्व की हिमायती भाजपा की सरकार है। राज्य सरकार ने पलायन के मुद्दे को गंभीरता से लिया है। कैराना और मेरठ से पलायन की जो स्थिति बनी है उसमें काफी समानता है। तीन साल पूर्व कैराना में जब पलायन का मसला उठा था तो उस वक्त भी जून का महीना था। तत्कालीन भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया था। इसकी वजह से यह मसला अखिलेश सरकार की गले की फांस बन गया था। अब उसी तरह की घटना की पुनरावृति ने मुख्यमंत्री को मुश्किल में डाल दिया है।
प्रश्न उठता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं? हम विभाजन की बात क्यों करते हैं? भारत में लाखों की संख्या में रोहिंग्या और बांग्लादेशी बेधड़क निवास कर सकते हैं तो हमें आपस में रहने और एक-दूसरे की धर्म-संस्कृति से क्यों इतनी घृणा है? पलायन का मुद्दा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही क्यों उठता है? पूर्वी यूपी में इस तरह की बातें सामने नहीं आती हैं। हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक दंगे भी पश्चिमी यूपी में अधिक होते हैं। फिर इस पलायन के पीछे का सच क्या है? वहां हिन्दू और मुसलमान एक साथ क्यों नहीं रह सकते हैं? हम यूपी को कश्मीर बनाने पर क्यों तुले हैं? यह विचारणीय है। योगी सरकार को पलायन के मसले को गंभीरता से लेना चाहिए और इसकी साजिश या षड्यंत्र रचने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। जहां जिस समुदाय की आबादी अधिक है वहां एक-दूसरे के साथ रहने में लोगों को डर क्यों लगने लगा है? हम इस तरह का महौल क्यों बना रहे हैं? यह राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा है। देश पर जितना अधिकार हिन्दुओं का है उतना ही मुसलमानों, सिखों और दूसरे समुदाय का भी। हमें विभाजन के नजरिए को त्यागना होगा। हमें हर हाल में भारत की अनेकता में एकता कायम करनी होगी। हमें हर हाल में ऐसी विभाजनकारी ताकतों का विध्वंस करना होगा।
 पश्चिमी यूपी के मेरठ के प्रहलाद नगर से 125 से अधिक हिन्दू परिवारों के पलायन की खबरें हैं। वहां कई मकानों पर लिखा है ‘यह मकान बिकाऊ है’। यह तस्वीर ठीक उसी तरह है जैसे कैराना की थी। पलायन किसी के लिए बेहद पीड़ादायक है। अपनी जन्मभूमि स्वर्ग से भी प्यारी होती है। कोई इतनी आसानी से बसी- बसाई गृहस्थी नहीं छोड़ना चाहता है। जब पानी नाक से बाहर होने लगता है तभी इस तरह कदम उठाए जाते हैं। अपने ही देश में पलायन को मजबूर होना किसी अभिशाप से कम नहीं। वह भी जब जहां बहुसंख्यक हिन्दू और मुस्लिम परिवार एक साथ रहते हों। जहां एक-दूसरे की धर्म-संस्कृति एक दूसरे के लिए मिसाल हो। आरोप है कि वहां समुदाय विशेष के युवक खुलेआम गुंडागर्दी करते हैं। महिलाओं और लड़कियों से छेड़खानी करते हैं। मोबाइल, चेन स्नेचिंग और बाइक स्टंट कर हिन्दू परिवारों की महिलाओं को परेशान करते हैं। भद्दी गालियां देते हैं। इसकी वजह से हिन्दू परिवारों का जीना दुश्वार हो गया है। घर के लोग लड़कियों को अकेले स्कूल भेजना नहीं चाहते हैं। इसकी वजह से पीड़ित हिन्दू परिवार मेरठ के प्रहलाद नगर से पलायित होकर दूसरी जगह आशियाना तलाश रहे हैं। अब तक काफी लोग पलायित भी हो चुके हैं। कहा जा रहा है कि इस तरह के हालात सिर्फ प्रहलाद नगर का नहीं बल्कि स्टेट बैंक कालोनी, रामनगर, विकासपुरी, हरिनगर कालोनियों का भी है। मीडिया रिपोर्ट में जो बात आयी उसके अनुसार आरोपियों को पुलिस का भी संरक्षण मिलता है। उधर, प्रशासन पलायन की घटना से इनकार करता है। प्रशासन का तर्क है कि पूरा प्रकाण जमीन से जुड़ा है। लिसाड़ी चैराहे पर गेट लगाने को लेकर दोनों समुदायों में विवाद है। इसकी वजह है कि जब चौराहे पर जाम की स्थिति होती है तो लोग प्रहलाद नगर से होकर इस्लामाबाद की तरफ निकल जाते हैं। इस वजह से भीड़ बढ़ जाती है। इसके कारण एक समुदाय के लोग चौराहे पर गेट लगाना चाहते हैं जबकि दूसरे लोग इसका विरोध कर रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या गुंडागर्दी सिर्फ एक समुदाय विशेष के लोग ही करते हैं? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अपराधियों और असामाजिक तत्वों की कोई जाति-धर्म नहीं होती। जो भी हो, दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए। अच्छी बात यह है कि योगी सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है। निश्चित रुप से दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
 मेरठ का मसला अब सियासी मुद्दा बनता दिखता है। भाजपा ने लव जिहाद की तर्ज पर इसे लैंड जिहाद का नाम दिया है। इसकी वजह से यह मसला गरमा सकता है। लेकिन यह राजनीति का विषय नहीं है। प्रश्न यह है कि क्या जहां समुदाय विशेष के लोगों की आबादी अधिक होगी वहां दूसरे समुदाय यानी कम आबादी या संख्या वाले लोग नहीं रह पाएंगे। इस तरह की संस्कृति हम क्यों विकसित करना चाहते हैं? हम जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत क्यों चरितार्थ कर रहे हैं? समुदाय के नाम पर नंगा नाच क्यों किया जा रहा है? महिलाओं और बेटियों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? हिन्दू और मुस्लिम समाज के लिए यह स्थितियां बेहद खराब हैं। समाज को बांटने की जो साजिश रची जा रही है वह बेहद गलत है। देश सभी का है। वह हिन्दू हों या मुसलमान। फिर हम आपस में एक साथ क्यों नहीं रह सकते हैं। अपनी-अपनी धार्मिक आजादी के साथ सबको जीने का अधिकार है। लेकिन किसी को अपनी जन्मभूमि छोड़ने के लिए बाध्य करना संविधान के खिलाफ है। हालांकि अभी यह मसला जांच का है। योगी सरकार इस पर खुद गंभीर है। जांच के बाद स्थिति साफ होगी। लेकिन अगर ऐसी स्थिति है तो दोषी लोगों के साथ जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ भी कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। पलायन जैसे शर्मनाक और इंसानियत को शर्मसार करने वाले मसले हमारी बहस के मसले नहीं बननी चाहिए।

 


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