‘हसीनाबाद’ की गोलमी’ के साथ सम्पन्न हो गया रंग-ए-माहौल
बेगूसराय,26दिसम्बर(हि.स.)। बेगूसराय के दिनकर कला भवन में आयोजित सातवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह रंग-ए-माहौल का रंगारंग समापन मंगलवार की रात हो गया। पांच दिवसीय समारोह की अंतिम कड़ी में बेगूसराय निवासी वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम की पत्नी गीताश्री द्वारा लिखित नाटक ‘हसीनाबाद’ का मंचन किया गया। इसका नाट्य रूपांतरण किया है योगेश त्रिपाठी ने। दूसरी बार मंचित हो रहे निर्माण कला मंच पटना की प्रस्तुति ‘हसीनाबाद’ का निर्देशन मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा के प्रथम निदेशक संजय उपाध्याय ने किया। दो घंटा के नाटक की शुरुआत गीत से होती है। इसके बाद मुजरा के दौरान दिखता है जमींदार नेता का चरित्र।
कहानी में हसीनाबाद शहरी सामंती किस्म के रईसों की अय्याशी के लिए बसाई गई एक बस्ती है। जहां वे अपनी रखैलों को बसाते हैं। उन्हें घर देते हैं, पैसे देते हैं, ताकि वे उनका मनोरंजन कर सकें। सिर्फ उनके लिए ही नाचे-गाएं और वहीं दफन हो जाएं। हंसती, गाती, रोती, बेचैन और तपती हसीनाओं का जिंदा जहान, जहां गुमनामी के अंधेरे हैं और बदनामी की लंबी दास्तान हैं। इसी बदनाम बस्ती में रहती है एक गुमनाम स्त्री सुंदरी बाई। ठाकुर सजावल सिंह नचनिया सुंदरी बाई को उसी बस्ती में रखते हैं। सुंदरी बाई को सजावल सिंह से दो अवैध संतान होती है। बेटा रमेश और बेटी गोलमी। सुंदरी पुत्र के लिए तो नहीं, बेटी के भविष्य के लिए चिंतित होती है। ठाकुर का बेटी के प्रति व्यवहार देखकर एक दिन बेटी को लेकर झाल बजाने वाले सगुन महतो के साथ भाग जाती है। सुंदरी बहुत कोशिश करती है कि गुलमी पढ़-लिखकर शिक्षिका बने। लेकिन, गोलमी संगीत और नृत्य की ओर आकर्षित हो जाती है। वह अपने संगी साथियों के साथ मिलकर सोनचिरैया आर्केस्ट्रा बनाती है। वह प्रण करती है कि स्थानीय लोकगीत और नृत्य को ही प्रदर्शित करेंगे।
उधर, गोलमी का भाई रमेश, ठाकुर का करिंदा हो जाता है| वह पिता और मां से अंदर ही अंदर नफरत करता है।
एक दिन सरकारी साक्षरता अभियान के लिए गोमली की टीम हाजीपुर आती है। जहां कि सांसद का पिछला चुनाव हार चुके नेता रामबालक सिंह के संपर्क में आती है। अगले चुनाव में वह गोलमी के टीम से प्रचार करवा कर चुनाव जीत जाता है। इसके बाद रामबालक सिंह गोलमी को अपने प्रदेश अध्यक्ष सजावल सिंह से मिलाता है। जोड़-तोड़ की सरकार जल्द ही गिर जाती है। सजावल सिंह जातीय गणित के अनुसार गोलमी को चुनाव लड़ाता है तथा वह सांसद होने के बाद केंद्र में मंत्री भी बन जाती है। कलाकार होने के कारण गोलमी राजनीतिक छल-प्रपंच में फंसकर परेशान हो जाती है। चाहत, नफरत, लगाव, अलगाव, मोहभंग के हिचकोले में झूलती वह मंत्री पद से इस्तीफा सौंप देती है।
इस्तीफा देने के बाद अपने गांव आती है जहां सोनचिरैया आर्केस्ट्रा और महिलाओं का आम्रपाली बैंड उसकी बाट जोह रहा होता है। कुल मिलाकर हसीनाबाद पहचान खोजने में संघर्षरत एक स्त्री की, कलाकार की, राजसत्ता पर कला और लोक के विजय की, एक बीती हुई कोई दुनिया से निकल कर, नृत्य संगीत के लोक और संस्कृति की तेजी से लुप्त होती दुनिया में से अपने जुनून में खुद जिंदा खुद जी कर जिंदा करने की कहानी है।
प्रकाश परिकल्पना एवं संचालन विजय कुमार टॉक एवं जय कुमार भारती, वस्त्र विन्यास शारदा सिंह, राजीव राय, नृत्य संरचना मेघना पंचाल, मुकेश कुमार, कुमार उदय सिंह, ध्वनि राजीव राय, रूप सज्जा विनय राज एवं जितेंद्र कुमार जीतू का था। रंग परिकल्पना महेश सुखी ने किया| गीत था डॉक्टर संध्या पाठक का। नाटक का संयोजन एवं सह निर्देशन कर रहे थे अभिजीत सोलंकी। मंच से परे संगीत संयोजन अनिल मिश्रा, राजू मिश्रा का था।
समारोह के अंतिम दिन कई हस्तियों को सम्मानित किया गया। मंच संयोजन कुमार अभिजीत मुन्ना ने किया। अंत में पुन: अगले साल इससे भी भव्य रंग-ए-माहौल होने की कामना के साथ धन्यवाद ज्ञापन फेस्टिवल डायरेक्टर प्रवीण कुमार गुंजन ने किया।