सीमांचल के मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों के चुनाव में नीतीश की साख और धाक की परीक्षा

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पटना,16 अप्रैल (हि.स.)। बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में सीमांचल और मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों -किशनगंज,कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका के लिए 18 अप्रैल होने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की साख और धाक की परीक्षा होने के साथ कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। सीमांचल की अररिया सीट के लिए तीसरे चरण में 23 अप्रैल को चुनाव होने हैं। सीमांचल में इस बार के चुनाव में न बंगलादेशी घुसपैठ का मुद्दा है और न इलाके का पिछड़ापन और न विकास । नमो समर्थन और विरोध के खांचे में वोटरों की जातीय गोलबंदी के आधार पर जीत-हार का निर्णय होगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने कार्यकाल में न्याय के साथ विकास की अवधारणा और साम्प्रदायिक सदभाव कायम रखने की प्रतिबद्धता के आधार पर काम करने की मजदूरी मिलने की उम्मीद बंधी है वहीं महागठबंधन को नमो विरोध के नाम पर मतदाताओं की जातीय गोलबंदी का भरोसा है। जदयू और बसपा सभी पांच सीटों की दावेदार है। कांग्रेस तीन और राजद दो सीटों का दावेदार है। कुल 68 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। पिछले चुनाव में नमो की लहर सीमांचल में ठहर जाने से भाजपा को इन पांच सीटों में कहीं भी जीत नहीं मिली थी। किशनगंज में कांग्रेस,कटिहार में रांकापा,पूर्णिया में जदयू और भागलपुर और बांका में राजद ने जीत का परचम लहराया था।
इस बार के चुनाव में भाजपा ने दो सीट जीतने वाले जदयू से नयी दोस्ती को मजबूती देने के लिए सीट बंटवारे में 17—17 की बराबरी का फार्मूला तय किया है। इसी करण दूसरे चरण के चुनाव वाली सभी पांच सीटें भी जदयू के हवाले कर दी गयी हैं। इसके कारण कटिहार,पूर्णिया और बांका में भाजपा को आतंरिक विरोध भी झेलना पड़ा है। पूर्णिया में भाजपा के पूर्व सांसद पप्पू सिंह राजनीतिक पाला बदलकर कांग्रेस उम्मीदवार बन गये। वहीं बांका में पूर्व सांसद एवं पार्टी की प्रदेश उपाध्यक्ष रही पुतुल सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार बनकर चुनावी संघर्ष को तिकोना बनाया दिया है।
किशनगंज
किशनगंज में आल इंडिया म​जलिस ए इत्तेहादुल मु​स्लमीन के उम्मीदवार अख्तरुल इमान के भी चुनावी जंग में होने से 70 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र की चुनावी जंग पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। पिछले चुनाव में अख्तरुल इमान ने जदयू उम्मीदवार बनने के बाद कांग्रेस के असरारूल हक के पक्ष में चुनावी रण से हटकर जदयू को चुनाव के पहले बड़ा झटका दिया था। मौलाना असरारूल हक के निधन से अभी किशनगंज लोकसभा सीट खाली है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने पार्टी के विधायक एवं राष्ट्रीय सचिव मो.जावेद को और जदयू ने सैयद महमूम असरफ को उम्मीदवार बनाया है। पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती किशनगंज से आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के जावेद अख्तर,आम आदमी पार्टी के अलिमुद्दीन अंसारी,शिव सेना के प्रदीप कुमार सिंह,बहुजन मुक्ति पार्टी के राजेन्द्र पासवान,झारखंड मुक्ति मोर्चा के शुकल मुर्मू और पांच निर्दलीय सहित कुल 14 उम्मीदवार हैं। इस सीट पर जदयू,कांग्रेस और एआईएमईएम के बीच तिकोना संघर्ष के आसार हैं। सीमाचंल का प्रमुख लोकसभा क्षेत्र किशनगंज के सभी छह विधान सभा सीटों से निर्वाचित विधायक मुसलमान ही हैं। किशनगंज का प्रतिनिधित्व कांग्रेस के टिकट पर पत्रकार एमजे अकबर और भाजपा के टिकट पर सैयद शाहनवाज हुसैन कर चुके हैं।1999 में किशनगंज के सांसद रहते शाहनवाज केंद्र में मंत्री बने थे। किशनगंज जिले में सूरजापुरी मुसलमान की सबसे ज्यादा आबादी है। सीमांचल की इस सीट से मो. तस्लीमुद्दीन तीन पर बार निर्वाचित हुए थे। इस सीट पर कांग्रेस के असरारुल हक पिछले चुनाव में दूसरी बार निर्वाचित हुए थे। तब भाजपा की ओर से दिलीप जायसवाल उम्मीदवार बने थे। किशनगंज संसदीय सीट के लिए 10 उम्मीदवारों में 8 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी। मात्र 2 उम्मीदवारों के बीच मुकाबला रहा।
कटिहार
कटिहार लोकसभा क्षेत्र के चुनावी जंग में इस बार 9 उम्मीदवारों में कांग्रेस के तारिक अनवर,जदयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी,राकांपा के मो.शकुर,बसपा के शिवनंदन मंडल,पीपुल्स पार्टी आफ इंडिया डेमो​क्रटिक के अब्दुल रहमान,राष्ट्रीय जनभावान पार्टी के गंगा केवट,भारती बहुजन कांग्रेस के बासुकीनाथ साह के अलावा दो निर्दलीय उम्मीदवार हैं। 2014 में एनसीपी के‍ टिकट पर निर्वाचित हुए तारिक अनवर ने लोकसभा से इस्तीफा देकर पहले कांग्रस का दामन थामा और अब उम्मीदवार भी बने हैं। वे चार बार कांग्रेस के टिकट निर्वाचित हो चुके थे। वे लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे थे। युवा कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष,कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव रहे। शरद पवार के साथ मिलकर उन्होंने एनसीपी बनायी थी और महाराष्ट्र से दो बार राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे । पिछले‍ दिनों राफेल विवाद पर शरद पवार के बयान से नाराज होकर तारिक अनवर ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। कटिहार लोकसभा का अस्तित्व 1957 में पहली बार अस्तित्व में आया था। इसके बाद विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवार जीतते रहे। 2014 में तारिक अनवर एनसीपी 431292 (44 प्रतिशत), निखिल चौधरी भाजपा 316552 (32 प्रतिशत) और रामप्रकाश महतो जदयू 100765 (10 प्रतिशत) वोट मिले थे। कटिहार के पिछले प्राय:सभी चुनावों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बडा मुद्दा रहा है। भाजपा के निखिल चौधरी तीन बार तारिक अनवर को पराजित कर जीतते रहे तो इसका प्रमुख कारण धार्मिक गोलबंदी रहा करती थी। इस क्षेत्र में मुसलमानों में सूरजापुरी और शेरशाहबादी मुसलमानों की भी बड़ी आबादी है। 1991 के चुनाव में बिहार के राज्यपाल रहे युनूस सलीम ने कटिहार से चुनाव जीता था। भाजपा समर्थक विधान पार्षद अशोक अग्रवाल इस बार टिकट के प्रमुख दावेदार थे। समझौते में जदयू के कोटे में कटिहार सीट चल जाने के विरोध स्वरूप वे निर्दलीय चुनाव लड़ने को आमादा थे। पार्टी ने उन्हें मना लिया। इस सीट से जदयू ने पूर्व मंत्री दुलालचंद गोस्वामी को उम्‍मीदवार बनाया है।
पूर्णिया
बिहार के सीमांचल में राजनीतिक दृष्टि से पूर्णिया लोकसभा सीट महत्वपूर्ण मानी जाती है। सामाजिक विश्लेषकों की मानें तो पूर्णिया की सामाजिक पृष्ठभूमि में 17.54 लाख मतदाताओं में मुसलमान वोटरों की संख्या 21.40 प्रतिशत ,यादव वोटरों की संख्या 9.21 प्रतिशत, ब्राह्मण की संख्या 3.45 प्रतिशत, राजपूत 3.66 प्रतिशत, कोईरी 3.30 प्रतिशत, कुर्मी 3.61 प्रतिशत, धानुक 2.05 प्रतिशत, रविदास 2.37 प्रतिशत, पासवान 3.45 प्रतिशत और संथाल वोटरों की संख्या 3.39 प्रतिशत है।
2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने भाजपा के विधायक संतोष कुशवाहा को लोकसभा उम्मीदवार बनाकर सीट जीत ली थी। भाजपा को पप्पू​ सिंह की हार खलनी पड़ी थी। 2014 में संतोष कुशवाहा जदयू 418826 (42 प्रतिशत)
उदय सिंह भाजपा 302157 (30 प्रतिशत) और अमरनाथ तिवारी कांग्रेस124344 (12 प्रतिशत) वोट मिले थे।। भाजपा के उम्मीदवार रहे उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। कुल 15 उम्मीदवारों में जदयू के संतोष कुमार ,बसपा के जितेन्द्र उराव ,जेएमएम की मंजू मुर्मू,बिहार लोक निर्माण दल के स​नोज कुमार चौहान के अलावा अन्य निर्दलीय उम्मीदवार हैं।
बांका
समाजवादियों की राजनीतिक जमीन कहे जाने वाले बांका लोकसभा क्षेत्र इस बार के चुनाव में भी प्रमुख हो गया है। 1967 में भारतीय जनसंघ के बीएस शर्मा भी निर्वाचित हो चुके हैं। 1957 में अस्तित्व में आये इस लोकसभा सीट से समाजवादी नेता मधु लिमये दो बार निर्वाचित हो चुके थे। बांका के सांसद रहे चंद्रशेखर सिंह बिहार के मुख्यमंत्री भी बने थे।यादव और राजपूत बहुल इस क्षेत्र में जाति के आधार पर मतदाताओं को गोलबंद कर चुनावी वैतरणी पार लगने का खेल होता रहा है। इस क्षेत्र में अतिपिछड़ी जाति के वोटरों की संख्या भी काफी है। इस क्षेत्र दिग्विजय सिंह तीन बार लोकसभा के‍ लिए निर्वाचित हुए थे। कभी नीतीश कुमार के काफी निकट दिग्विय सिंह को 2009 के लोकसभा चुनाव में टिकट मिलने पर निर्दलीय मैदान में उतर बाजी मार ली थी । पिछले चुनाव में राजद के जय प्रकाश नारायण यादव बांका से पहली बार निर्वाचित हुए थे। इसके पहले वे 2004 में मुंगेर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। उस समय यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री बने थे। पिछले चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार पुतुल सिंह थी। 2009 में इस सीट से दिग्विजय सिंह निर्दलीय निर्वाचित हुए थे और उनके देहांत के बाद उनकी पत्नी पुतुल सिंह उपचुनाव में 2010 में निर्दलीय सांसद के रूप में निर्वाचित हुई थीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट दिया, लेकिन भाजपा उम्मीदवार के रूप में वे चुनाव हार गयीं। इस बार जदयू ने जब पूर्व सांसद गिरिधारी यादव को उम्मीदवार बना दिया तब पु​तुल सिंह निर्दलीय चुनावी जंग फतह करने में लगी हैं। 2014 में जय प्रकाश यादव राजद 285150 (32 प्रतिशत) पुतुल सिंह भाजपा 275006 (31 प्रतिशत) और संजय कुमार भाकपा 220708 (25 प्रतिशत) वोट मिले थे।
भागलपुर
सिल्क उद्योग को लेकर देश—दुनिया में भागलपुर की खास पहचान रही है। आजादी के 1989 में सबसे लंबा समय तक चला भागलपुर का साम्प्रदायिक दंगे की भी खास रूप से होती है। इसी दंगे के बाद बिहार में कांग्रेस के राजनीतिक पतन की शुरूआत हुई । उसके बाद अभी तक कांग्रेस को बिहार में सत्ता में वापसी नहीं हुई पर राजद और जदयू के साथ सत्ता में साझेदारी का स्वाद चखने का अवसर मिला है। भागलपुर लोकसभा क्षेत्र में यादव, मुसलमान और ब्राह्मण,गंगोता,धानुक और मल्लाह की बड़ी आबादी है। अतिपिछड़ी जातियों में गंगोता सबसे मजबूत हैं । वर्तमान छह विधायकों में तीन इसी जाति के हैं। 2004 में भागलपुर से सुशील मोदी ने लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया था। ​शाहनवाज हुसैन इस सीट से दो बार निर्वाचित हुए। 2014 में अश्चिनी कुमार चौबे भागलपुर से भाजपा के प्रबल दावेदार बनकर उभरे। लेकिन उन्हें भाजपा ने बक्सर भेज कर शाहनवाज हुसैन की राह आसान कर दी थी। परंतु 2014 में राजद के बुलो मंडल से हार ने उनके लिए भागलपुर सीट सपना बना दिया। 2014 में शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल 367623 (38 प्रतिशत),शाहनवाज हुसैन भाजपा 358138 (37 प्रतिशत)और अबु कैसर जदयू 132256 (14 प्रतिशत) । इस बार के चुनाव में जदयू ने अजय मंडल को उम्मीदवार बनाकर भागलपुर का दांव खेला है। मुख्य मुकाबला महागठबंधन और राजग उम्मीदवार के ही बीच होने के आसार हैं।


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