वासंतिक नवरात्र शनिवार से, दिन भर कर सकते हैं कलश स्थापना
05 अप्रैल (हि.स.)। मां भगवती की आराधना का पावन पर्व वासंतिक नवरात्र शनिवार से शुरू हो रहा है। इसी दिन से नवसंवत्सर भी प्रारम्भ होगा। नवरात्र पूजा की शुरुआत कलश स्थापना से होगी, जिसका शुभ मुहूर्त इस बार दिन भर है। पहले दिन नौ दुर्गा के प्रथम स्वरुप मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी।
वासंतिक नवरात्र को चैत्र नवरात्र भी कहते हैं। इसके लिए कलश स्थापना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही होती है। ज्योर्तिविद् डा0 ओमप्रकाशाचार्य का कहना है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि यद्यपि शुक्रवार को अपराह्न 1.36 बजे ही लग जाएगी और शनिवार को अपराह्न 2.58 बजे तक रहेगी। लेकिन, उदया तिथि के कारण नवरात्र का आरम्भ छह अप्रैल शनिवार को ही सूर्योदय के बाद माना जाएगा और कलश स्थापना दिन में कभी भी किया जा सकता है, लेकिन सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त सूर्योदय से सुबह 9.45 तक है।
डा0 ओमप्रकाशाचार्य के अनुसार यह नवरात्र पूरे नौ दिन का है, लेकिन पर्व के कार्यक्रम आठ दिनों में ही पूरे किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि 13 अप्रैल को सुबह 8.16 बजे तक अष्टमी तिथि रहेगी। इसके बाद नवमी तिथि लग जाएगी। इसलिए शास्त्र के नियमानुसार 13 अप्रैल को ही महाष्टड्ढमी, महानवमी एवं श्रीराम नवमी का व्रत करना होगा। दरअसल 14 अप्रैल को नवमी तिथि प्रातः छह बजे तक ही रहेगी। इसके बाद दशमी तिथि लग जाएगी। इस प्रकार इस नवरात्र में तिथि हानि न होते हुए भी नवरात्र के कार्यक्रम आठ दिनों में ही पूरे किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि नवरात्र व्रत का पारण दशमी तिथि में 14 अप्रैल को भी किया जा सकता है।
ज्यातिषाचार्य के अनुसार इस नवरात्र पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं। इस बार पांच सर्वार्थ सिद्धि और दो रवि योग का संयोग बन रहा है। ऐसे शुभ संयोग में देवी उपासना का विशेष फल होता है। उन्होंने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण किया था। उस समय आकाश में रेवती नक्षत्र था। संजोग से इस बार भी प्रतिपदा के दिन रेवती नक्षत्र का योग बन रहा है, जो धन और धर्म की समृद्धि के लिए शुभ है।
इस नवरात्र में माता अपनों भक्तों को दर्शन देने के लिए घोड़े पर आ रही हैं। माता की विदाई महिष पर होगी। घोड़े पर आगमन से श्रद्धालुओं को मनचाहा वरदान और सिद्धि की प्राप्ति होगी। हालांकि, इस आगमन से राजनीतिक क्षेत्र में उथल-पुथल के संकेत हैं। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि इस वर्ष का राजा शनि है। इसलिए उपद्रव तथा युद्ध का वातावरण रहेगा। इसी तरह वर्ष का मंत्री रवि यानी सूर्य होगा जिसके कारण राजपक्ष तथा तस्करों से जनता में भय होगा। दरअसल शनि के पिता सूर्य हैं। इस तरह नया वर्ष पिता और पुत्र का है। इस वर्ष शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के संकेत हैं। सूर्य के मंत्री होने से इस वर्ष टैक्स में वृद्धि हो सकती है। न्यायपालिका का वर्चस्व बढ़ेगा। उत्तम वर्षा के भी संकेत हैं। इससे इस वर्ष फसल भी अच्छी होगी।
सजने लगे देवी मंदिर
चैत्र नवरात्र को लेकर राजधानी लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर, मेरठ, आगरा, मथुरा समेत प्रदेश भर में देवी मंदिरों में पिछले कई दिनों से साफ-सफाई जारी है। बाजार में व्रत एवं अन्य सामानों की दुकानें भी सज गई हैं। मीरजापुर स्थित मां विंध्यवासिनी के मंदिर में विशेष तैयारियां की गई हैं। वहां नवरात्र भर विशाल मेले का आयोजन होता है। प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु मां का दर्शन और पूजन करते हैं। नवरात्र के मद्देनजर मंदिरों के अंदर और बाहर सुरक्षा के भी व्यापक प्रबंध किये गये हैं।
नवरात्र के पर्व पर मां दुर्गा के नौ शक्ति रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री की पूजा होती है। इस अवसर पर कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्र में छोटी कन्याओं में माता का स्वरूप बताया जाता है। तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं। ऐसे में श्रद्धालु कन्या पूजन के निमित्त भी तैयारियों में लगे हैं।