गुना, 24 मई (हि.स.)। सिंधिया खानदान की अपराजय माने जानी वाली बहुचर्चित गुना संसदीय सीट पर इस बार एक प्यादे ने वजीर को मात दे दी। इस सीट पर चार बार से लगातार हैट्रिक बनाते आ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोदी लहर में हार मिली है। भाजपा उम्मीदवार डॉ केपी यादव ने अपना नाम इतिहास में दर्ज कराते हुए इस सीट से सिंधिया खानदान के गढ़ के तिलिस्म को तोड़ दिया। भाजपा उम्मीदवार डॉ.केपी कभी सिंधिया के बेहद करीबी रहे हैं। उन्हें मालूम था कि सिंधिया कब कौन सी चाल चलते हैं। ऐसे में भाजपा उम्मीदवार ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के दाव को उन पर ही चल कर जीत दर्ज की।
डमी माना गया था केपी को
डॉ केपी कभी सिंधिया के बेहद करीबी रहे। मुंगावली उप चुनाव में उनका टिकट कट जाने पर उन्होंने सिंधिया का साथ छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया था। चुनाव के प्रारम्भ में सिंधिया के मुकाबले डॉ केपी को एक डमी उम्मीदवार के रूप में माना गया और सिंधिया के तिलिस्म को तोड़ना नामुमकिन समझा गया। पर जैसे-जैसे चुनाव बढ़ता गया केपी ने अपनी चतुराई से पूरा चुनाव ही मोदी बनाम सिंधिया कर दिया, बल्कि उनके कथित विकास को चुनौती देने और प्रदेश की राज्य सरकार की नाकामियां बताने में सफल हुए और वहीं सिंधिया केपी के डमी होने की छवि भुनाने में पूरी तरह से नाकामयाब हुए।
सिंधिया के धुर विरोधी रहे दूर
प्रदेश की राजनीति में लोकशाही में सामंतशाही मुद्दे को लेकर सिंधिया के धुर विरोधी रहे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा एवं जयभान सिंह पवैया ने लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से दूरी बनाए रखी। इस बार इनकी गैर मौजूदगी में केपी ने सिंधिया के तिलिस्म को तोड़कर दिखाया। सिंधिया ने 2002 से बनाई हैट्रिकअपने पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद 2002 में हुए उप-चुनाव से सिंधिया 2014 तक लगातार हैट्रिक बनाते रहे हैं। इस बीच उन्होंने तत्कालीन भाजपा सरकार के मंत्री नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया एवं हरिबल्लभ शुक्ला, देशराज सिंह यादव जैसे धुरंधरों को मात देते आए हैं।
दादी से पोते तकयहां से
1957 में राजमाता के नाम से विख्यात रहीं ग्वालियर रियासत के अंतिम महाराजा जीवाजीराव सिंधिया की पत्नी विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस के टिकट से निर्वाचित हुई थीं। तब से इस परिवार के तीन सदस्य 15 बार संसद पहुंच चुके हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया ने सर्वाधिक छह बार यहां का प्रतिनिधितत्व किया। उनके बाद उनके बेटे माधवराव ने 1971 में जनसंघ से चुनाव जीतकर अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। वे 1980 तक लगातार तीन बार चुनाव जीते। इसके बाद वह ग्वालियर पहुंच गए। उन्होंने अपने सिपहसालार महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा को चुनाव लड़ाया, अगले चुनाव में यहां से राजमाता ने चुनाव लड़ा और चुनाव जीतीं। ग्वालियर से कम अंतर से जीते माधवराव 1999 में फिर गुना लौटे।2001 में उनके निधन के बाद यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया मैदान में उतरे और करीब तीन चौथाई मतों से जीते। गुना ने इस राजघराने की लाज रखी है। इस परिवार का कोई भी सदस्य यहां से चुनाव नहीं हारा। लेकिन इस बार मोदी लहर में डॉ केपी यादव ने सिंधिया खानदान की अपाराजय सीट को पराजय में तब्दिल कर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया।