लोकसभा चुनाव घोषणा के बाद विपक्षी दल कर सकते हैं नये सिरे से तालमेल

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नई दिल्ली, 05 मार्च (हि.स.)। पुलवामा कांड के बाद बने राजनीतिक हालात ने विपक्षी दलों को हिला कर रख दिया है। उनको आशंका है कि बदले माहौल में भाजपा 2014 के लगभग सीटें पा सकती है। सो केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी को घेरने के लिए न चाहते हुए भी तालमेल करने की कोशिश कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी आपसी तालमेल करके चुनाव लड़ने की बातचीत करने लगी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से तृणमूल कांग्रेस ने 32 , कांग्रेस ने 4, माकपा ने 2 और भाजपा ने 2 सीटें जीती थीं। राज्य भाजपा पदाधिकारी आशीष सरकार का कहना है कि इस बार यहां से भाजपा को 8 से 10 सीटें जीतने की उम्मीद है। यह हुआ तो 2021 के विधानसभा चुनाव में राज्य में भाजपा अच्छी सीटें जीतेगी। इससे चिंतित वामपंथी दल और कांग्रेस नेताओं ने एक माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में अपने वोट बिखरने से रोकने के लिए तालमेल करके लड़ने की बातचीत शुरू कर दी है। इसके तहत माकपा चाहती है कि कांग्रेस उन 2 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा नहीं करे, जिन पर 2014 में माकपा जीती है। बदले में उन 4 लोकसभा सीटों पर माकपा अपने प्रत्याशी नहीं खड़ा करेगी, जहां कांग्रेस के प्रत्याशी जीते हैं। लेकिन कांग्रेस का कहना है कि जिन दो सीटों पर माकपा जीती है उन पर कांग्रेस के प्रत्यासी लड़ेंगे, क्योंकि वह सीट कांग्रेस की रही है। और बीते लोकसभा सभा चुनाव में कांग्रेस, माकपा, तृणमूल के अलग – अलग लड़ने से वोट बंट गए थे। उसके चलते माकपा बहुत कम मतों से जीत गई। इस बार भाजपा राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा करने वाली है। वह राज्य में अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए बहुत ही आक्रामक है। इससे माकपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस के नेता व रणनीतिकार डरे हुए हैं। इधर कांग्रेस के नेताओं को लगता है कि राज्य में यदि माकपा, तृणमूल तथा कांग्रेस तालमेल करके नहीं लड़े, तो भाजपा यहां से 2014 में जीती सीटों से कई गुना सीटें जीत सकती है। वह अपना आधार बढ़ा लेगी तो अगले 8 वर्ष में राज्य में सरकार बना सकती है। इसलिए इसको रोकना जरूरी है। इसके लिए माकपा, तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस को झुककर, बड़े नुकसान से बचने के लिए अपना थोड़ा-सा नुकसान करके तालमेल करना चाहिए। नहीं किये तो अगले 8 साल में यहां से सब साफ हो जाएंगे। इस बारे में कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष लगातार माकपा व तृणमूल प्रमुख के सम्पर्क में हैं। वोट बिखरने नहीं देने के लिए जो भी किया जा सकता है करने की कोशिश किया जाएगा। यह भी हो सकता है कि जिन 32 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस जीती है उनमें से 25 पर माकपा व कांग्रेस अपने प्रत्याशी खड़ा नहीं करें, बची सीटों में से जहां दूसरे नम्बर पर रहे वहां अपने प्रत्याशी खड़ा करें। लेकिन ममता चाहती हैं कि राज्य में जिस लोकसभा सीट पर कांग्रेस व माकपा जीती है वे इस चुनाव में वहां अपने प्रत्याशी खड़ा करें, जिन 32 सीट पर तृणमूल कांग्रेस जीती है, वहां केवल वह प्रत्याशी खड़ा करें। इस तरह एक सीट पर एक के लड़ने और उसे सभी गैर भाजपा विपक्षी दलों के समर्थन करने से ही हर सीट पर भाजपा को शिकस्त दी जा सकती है। लेकिन माकपा इसके लिए राजी नहीं हो रही है। इसके बावजूद सभी चाहते हैं कि तालमेल होना चाहिए। एआईसीसी सदस्य अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ( यूपीए) जिन राज्यों में प्रभावी है वहां आपसी तालमेल से सीटों का बंटवारा करके लोकसभा चुनाव लड़ने में कोई परेशानी नहीं है। कुछ सीटें नीचे-ऊपर ले-देकर बात बन जाएगी। लेकिन जहां संप्रग नहीं है, वहां परेशानी हो रही है। उन राज्यों के क्षत्रपों को लगता है कि उनके वोट पर कांग्रेस बढ़ने लगेगी। उनको यह भी आशंका है कि यदि तालमेल नहीं किये तो भाजपा बढ़ने लगेगी और वह उनके लिए ज्यादा मारक होगी। यही वजह है कि दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों में भाजपा विरोधी पार्टियां एकजुट हो सकती हैं। इसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई है। माकपा ने पहल कर दी है। सपा ने भी उ.प्र. में कांग्रेस के लिए 9 लोकसभा सीटें देने की पहल की है। आन्ध्र प्रदेश में तेदेपा के चन्द्रबाबू नायडू पहल किये हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेता इसके लिए प्रत्यनशील हैं। इस तरह यह एकजुटता लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद देखने को मिल सकती है। 


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