राष्ट्रवाद की लहर में लड़खड़ाती कांग्रेस
चुनावों में राष्ट्रवाद के शंखनाद से विपक्ष थर्रा रहा है। अब विदेश के राजनीतिक पंडित भी लिखने लगे हैं कि क्षेत्रीय नेता ही विपक्ष को गायब होने से बचा सकते हैं। यह आंकलन प्रसिद्ध पत्रकार मार्क टली का है। उन्होंने लिखा है कि ‘भारत में विपक्ष चुनाव का पहला चरण हार चुका है। अंतिम राउंड में भी भाजपा को रोकना काफी कठिन है।’ मार्क टली 20 वर्ष तक दिल्ली में बीबीसी के ब्यूरो चीफ रहे थे। उनका मानना है कि बालाकोट एयर स्ट्राइक से भाजपा की मजबूत शुरुआत हो चुकी है। इसने राष्ट्रवाद के मुद्दे को फ्रंट पर ला दिया है। प्रधानमंत्री की आक्रामक भाषण शैली लोगों को बहुत प्रभावित करती है। उनकी नकल उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी करते हैं। मार्क टली का मानना है कि भाजपा के पास पैसा है। उन्होंने भाजपा की बढ़त का कारण यह भी बताया कि आरएसएस का कैडर भाजपा के साथ खड़ा है, जिनकी पकड़ बूथ स्तर तक है। विपक्ष का गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बन सका है।
विदेशी राजनीतिक पंडित भी मानते हैं कि राष्ट्रवाद के विचार लोगों में रच-बस गए हैं। भारत की आम जनता देशभक्त है और जो राष्ट्रीय संकट के समक्ष नेतृत्व है, उसके साथ खड़ी हो जाती है। मोदी सरकार जीरो टालरेन्स की नीति से आतंकियों का सफाया कर रही है। जब उरी में हमारे जवानों को शहीद किया गया तो थल सेना के कमांडो ने आतंकी ठिकानों को नष्ट कर कई आतंकियों और पाकिस्तानी सेना के जवानों को धराशाई कर दिया। अच्छा होता विपक्ष हमारे कमांडो के शौर्य की सराहना करते हुए बधाई देता। लेकिन उसे तो सुबूत चाहिए थे। राहुल, अखिलेश, ममता, मायावती, दिग्विजय, कपिल सिब्बल, सिद्धू आदि ने संसद और संसद के बाहर सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण मांगे। इससे भारत की जनता के मन को यह चुभन हुई कि देखो यह कैसा विपक्ष है जो सेना के शौर्य पर भी ऊंगली उठाता है। जो जवान अपने जीवन को दांव पर लगाकर देश की रक्षा करते हैं, उस पर संदेह करने से आम लोगों के कोप का भाजन विपक्ष को बनना पड़ा।
विपक्ष चाहे जितनी अपनी बाध्यता बताए, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा राष्ट्रवाद का ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि कांग्रेस और सेक्युलर ब्रिगेड का नेतृत्व चारों खाने चित दिखाई दिए। राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दे पर कोई सरकार समझौता नहीं कर सकती। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वही किया जो राष्ट्र की रक्षा के लिए कटिबद्ध नेतृत्व को करना चाहिए। जो इस दायित्व का निर्वाह नहीं कर सकता, उसे देश का नेतृत्व करने का अधिकार देशभक्त जनता नहीं दे सकती। कांग्रेस के जो लोग नेहरू-इंदिरा-राजीव-सोनिया-राहुल के परिवार के देश के प्रति किए गए त्याग-बलिदान की बातें करते हैं, यदि इस परिवार की राष्ट्रघाती गलतियों का आंकलन कर गहराई से विचार करें तो निष्कर्ष यही निकलेगा कि देश के सामने जितनी चुनौतियां, संकट और समस्याएं है, उनके मूल में इसी परिवार की राष्ट्र विरोधी और तुष्टीकरण की नीतियां रही हैं। इसलिए कांग्रेस के नेहरू-इंदिरा परिवार की दुहाई का मुद्दा उलटा पड़ता है।
सर्जिकल स्ट्राइक से सेना की कार्यवाही का सवाल भाजपा के पक्ष में रहा है। इस बारे में भी लीपा-पोती कर बातें की जाती हैं। सच्चाई यह है कि यदि नरेन्द्र मोदी की इच्छाशक्ति नहीं होती तो दोनों सर्जिकल स्ट्राइक होना संभव नहीं था। इसलिए इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलना स्वाभाविक है। जो किया है, उसका जिक्र चुनावी सभाओं में भी होगा। यदि विपक्ष विशेष कर कांग्रेस सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में सेना के शौर्य की सराहना कर चुप हो जाती तो उसके दामन पर पाकिस्तान परस्त होने का दाग नहीं लगता। कांग्रेस ने भी 1971 में जब बांग्लादेश को पाकिस्तान के पंजे से मुक्त कराने के लिए सैनिक कार्यवाही का निर्णय किया, तो विपक्ष सहित पूरे देश ने इंदिराजी की सराहना की थी। किसी ने भी सैनिक कार्यवाही पर संदेह नहीं किया था। कोई भी देश अपनी सेना को कठघरे में खड़ा नहीं करता। जब 9/11 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेंड सेन्टर हमला हुआ तो किसी ने यह सवाल नहीं किया कि कितने लोग मारे गए? वहां की मीडिया ने भी मारे गए लोगों की लाशों के चित्र देने से परहेज किया। सुरक्षा से जुड़े सवालों पर राजनीतिक नेतृत्व को भी सतर्क और गंभीर रहना चाहिए। जो राजनीति देशहित में नहीं है, जो केवल अपने परिवार या जाति विशेष के लिए राजनीति करते हैं, उनका सरोकार देश की बजाय इस्लामाबाद में हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 134 वर्षीय कांग्रेस को ऐसा नेतृत्व मिला, जिसे न देश की समझ है और न राजनीति का परख है। जिन्हें पतंग उड़ाना नहीं आता, उसकी पतंग का कटना निश्चित है। आज कांग्रेस की स्थिति कटी पतंग जैसी है, जो कहां गिरेगी और किसके हाथ लगेगी, इस बारे में कांग्रेस के नेता भी नहीं जानते। जो कांग्रेस अपने को राष्ट्रीय दल मानती है और है भी, वह राष्ट्रवाद की आंधी में अपना अस्तित्व कितना बचा पाएगी, इसका जवाब चुनाव के परिणाम के समय मिलेगा।
अब सवाल है संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का। सब मानते हैं कि पक्ष और विपक्ष लोकतंत्र की गाड़ी के दो पहिये हैं। इनके बिना लोकतंत्र न परिपक्व हो सकता है और न जनता को श्रेष्ठ परिणाम दे सकते हैं। कांग्रेस के चौकीदार, चाय वाले के मुद्दे को अपना हथियार बनाकर भाजपा ने कांग्रेस पर ही प्रहार किया है। अब राष्ट्रवादी लहर में कांग्रेस कितनी टिक पाएगी? राजनीतिक पंडित इस लहर में विपक्ष के गायब होने की चर्चा भी करने लगे हैं। यह भी चर्चा होने लगी है कि यदि कांग्रेस गायब हो गई तो इसका स्थान कौन लेगा? तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, दक्षिण के राज्य हैं, इनके क्षेत्रीय क्षत्रप लोकसभा चुनाव में अपनी कितनी सीटें सुरक्षित रख सकेंगे? विपक्ष को जिन्दा रखने की जिम्मेदारी क्षेत्रीय क्षत्रपों की हो सकती है, लेकिन राष्ट्रवादी विचार के प्रवाह में क्षेत्रीय दल कितना टिक पाएंगे, यह चिंतन का विषय हो सकता है। जमीनी हकीकत तो यह है कि कांग्रेस को क्षेत्रीय दल दुत्कार रहे हैं, कोई उसे चारा डालना नहीं चाहता। ऐसी स्थिति में कांग्रेस अपना अस्तित्व कितना बचा पाएगी?
विदेशी राजनीतिक पंडित भी मानते हैं कि राष्ट्रवाद के विचार लोगों में रच-बस गए हैं। भारत की आम जनता देशभक्त है और जो राष्ट्रीय संकट के समक्ष नेतृत्व है, उसके साथ खड़ी हो जाती है। मोदी सरकार जीरो टालरेन्स की नीति से आतंकियों का सफाया कर रही है। जब उरी में हमारे जवानों को शहीद किया गया तो थल सेना के कमांडो ने आतंकी ठिकानों को नष्ट कर कई आतंकियों और पाकिस्तानी सेना के जवानों को धराशाई कर दिया। अच्छा होता विपक्ष हमारे कमांडो के शौर्य की सराहना करते हुए बधाई देता। लेकिन उसे तो सुबूत चाहिए थे। राहुल, अखिलेश, ममता, मायावती, दिग्विजय, कपिल सिब्बल, सिद्धू आदि ने संसद और संसद के बाहर सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण मांगे। इससे भारत की जनता के मन को यह चुभन हुई कि देखो यह कैसा विपक्ष है जो सेना के शौर्य पर भी ऊंगली उठाता है। जो जवान अपने जीवन को दांव पर लगाकर देश की रक्षा करते हैं, उस पर संदेह करने से आम लोगों के कोप का भाजन विपक्ष को बनना पड़ा।
विपक्ष चाहे जितनी अपनी बाध्यता बताए, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा राष्ट्रवाद का ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि कांग्रेस और सेक्युलर ब्रिगेड का नेतृत्व चारों खाने चित दिखाई दिए। राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दे पर कोई सरकार समझौता नहीं कर सकती। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वही किया जो राष्ट्र की रक्षा के लिए कटिबद्ध नेतृत्व को करना चाहिए। जो इस दायित्व का निर्वाह नहीं कर सकता, उसे देश का नेतृत्व करने का अधिकार देशभक्त जनता नहीं दे सकती। कांग्रेस के जो लोग नेहरू-इंदिरा-राजीव-सोनिया-राहुल के परिवार के देश के प्रति किए गए त्याग-बलिदान की बातें करते हैं, यदि इस परिवार की राष्ट्रघाती गलतियों का आंकलन कर गहराई से विचार करें तो निष्कर्ष यही निकलेगा कि देश के सामने जितनी चुनौतियां, संकट और समस्याएं है, उनके मूल में इसी परिवार की राष्ट्र विरोधी और तुष्टीकरण की नीतियां रही हैं। इसलिए कांग्रेस के नेहरू-इंदिरा परिवार की दुहाई का मुद्दा उलटा पड़ता है।
सर्जिकल स्ट्राइक से सेना की कार्यवाही का सवाल भाजपा के पक्ष में रहा है। इस बारे में भी लीपा-पोती कर बातें की जाती हैं। सच्चाई यह है कि यदि नरेन्द्र मोदी की इच्छाशक्ति नहीं होती तो दोनों सर्जिकल स्ट्राइक होना संभव नहीं था। इसलिए इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलना स्वाभाविक है। जो किया है, उसका जिक्र चुनावी सभाओं में भी होगा। यदि विपक्ष विशेष कर कांग्रेस सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में सेना के शौर्य की सराहना कर चुप हो जाती तो उसके दामन पर पाकिस्तान परस्त होने का दाग नहीं लगता। कांग्रेस ने भी 1971 में जब बांग्लादेश को पाकिस्तान के पंजे से मुक्त कराने के लिए सैनिक कार्यवाही का निर्णय किया, तो विपक्ष सहित पूरे देश ने इंदिराजी की सराहना की थी। किसी ने भी सैनिक कार्यवाही पर संदेह नहीं किया था। कोई भी देश अपनी सेना को कठघरे में खड़ा नहीं करता। जब 9/11 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेंड सेन्टर हमला हुआ तो किसी ने यह सवाल नहीं किया कि कितने लोग मारे गए? वहां की मीडिया ने भी मारे गए लोगों की लाशों के चित्र देने से परहेज किया। सुरक्षा से जुड़े सवालों पर राजनीतिक नेतृत्व को भी सतर्क और गंभीर रहना चाहिए। जो राजनीति देशहित में नहीं है, जो केवल अपने परिवार या जाति विशेष के लिए राजनीति करते हैं, उनका सरोकार देश की बजाय इस्लामाबाद में हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 134 वर्षीय कांग्रेस को ऐसा नेतृत्व मिला, जिसे न देश की समझ है और न राजनीति का परख है। जिन्हें पतंग उड़ाना नहीं आता, उसकी पतंग का कटना निश्चित है। आज कांग्रेस की स्थिति कटी पतंग जैसी है, जो कहां गिरेगी और किसके हाथ लगेगी, इस बारे में कांग्रेस के नेता भी नहीं जानते। जो कांग्रेस अपने को राष्ट्रीय दल मानती है और है भी, वह राष्ट्रवाद की आंधी में अपना अस्तित्व कितना बचा पाएगी, इसका जवाब चुनाव के परिणाम के समय मिलेगा।
अब सवाल है संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का। सब मानते हैं कि पक्ष और विपक्ष लोकतंत्र की गाड़ी के दो पहिये हैं। इनके बिना लोकतंत्र न परिपक्व हो सकता है और न जनता को श्रेष्ठ परिणाम दे सकते हैं। कांग्रेस के चौकीदार, चाय वाले के मुद्दे को अपना हथियार बनाकर भाजपा ने कांग्रेस पर ही प्रहार किया है। अब राष्ट्रवादी लहर में कांग्रेस कितनी टिक पाएगी? राजनीतिक पंडित इस लहर में विपक्ष के गायब होने की चर्चा भी करने लगे हैं। यह भी चर्चा होने लगी है कि यदि कांग्रेस गायब हो गई तो इसका स्थान कौन लेगा? तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, दक्षिण के राज्य हैं, इनके क्षेत्रीय क्षत्रप लोकसभा चुनाव में अपनी कितनी सीटें सुरक्षित रख सकेंगे? विपक्ष को जिन्दा रखने की जिम्मेदारी क्षेत्रीय क्षत्रपों की हो सकती है, लेकिन राष्ट्रवादी विचार के प्रवाह में क्षेत्रीय दल कितना टिक पाएंगे, यह चिंतन का विषय हो सकता है। जमीनी हकीकत तो यह है कि कांग्रेस को क्षेत्रीय दल दुत्कार रहे हैं, कोई उसे चारा डालना नहीं चाहता। ऐसी स्थिति में कांग्रेस अपना अस्तित्व कितना बचा पाएगी?