राजमहलः 2014 में अलग-अलग लड़े थे, इसबार विपक्षी गठबंधन की छतरी के नीचे हैं झाविमो-झामुमो, भाजपा के लिए बड़ी चुनौती

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झामुमो के विजय हांसदा ने करीब 42 हजार मतों से भाजपा के हेमलाल को हराया था, झाविमो को मिले थे 97 हजार वोट
मुख्यमंत्री रघुवर दास का दावा-विकास के बल पर लेंगे वोट, जीतेंगे सीट
राजीव मिश्र
रांची, 11 मार्च (हि.स.)। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव कई मायने में बदल चुके हैं। पिछले पांच वर्षों में झारखंड के संथाल परगना की राजनीति भी करवट लेती हुई नजर आ रही है।
संथाल परगना की राजमहल लोकसभा सीट कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की परंपरागत रही है़। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद सिर्फ एकबार भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार यहां से जीता है। पिछली बार एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले इसबार विपक्षी गठबंधन की छतरी के नीचे एक साथ आ चुके हैं। ऐसी स्थिति में गठबंधन और मजबूत होता दिख रहा है। इसके बावजूद अपने कार्यकाल के दौरान संथाल परगना के विकास पर विशेष फोकस रखने वाले झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस चुनाव में संथाल पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। खासकर उनकी नजरें दुमका और राजमहल पर है। वे विकास के बल पर वोट लेकर सीट जीतने के दावा कर रहे हैं। इसके साथ ही भाजपा और विपक्षी गठबंधन दोनों को भीतरघात की भी आशंका है। अब देखना है कि झामुमो और भाजपा के आपसी भीतरघात के बीच वोटर किसके प्रति निष्ठा दिखाते हैं।
राजमहल लोकसभा क्षेत्र में चुनाव अंतिम चरण यानी 19 मई को है। जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है राजनीतिक दलों की सरगर्मी भी तेज होने लगी है। 2014 की भांति इसबार भी राजमहल लोकसभा क्षेत्र में भाजपा ने फिर से हेमलाल मुर्मू को उम्मीदवार बनाया है और झामुमो ने भी विजय हांसदा को भी उतारा है। वहीं, पुराने चेहरे 2019 में भी आमने-सामने हैं लेकिन परिस्थितियां थोड़ी बदली हुई हैं। भाजपा आज भी मोदी फैक्टर पर चुनाव लड़ रही है लेकिन पिछले चुनाव में जो विजय हांसदा सिर्फ झामुमो के उम्मीदवार थे, वे इस बार विपक्षी गठबंधन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसबार कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) भी उनके साथ हैं। पिछले चुनाव में झामुमो के विजय हांसदा 41 हजार से अधिक मतों से विजयी रहे थे।
बड़ा फर्क यह भी आया है कि इस चुनाव में झामुमो-कांग्रेस के साथ झाविमो का गठबंधन है। जबकि, भाजपा-आजसू के बीच भी गठजोड़ है। 2014 में डॉ. अनिल मुर्मू झाविमो के प्रत्याशी थे और उन्हें कुल 97 हजार से अधिक मत प्राप्त हुए थे। जबकि, आजसू के प्रत्याशी अर्जुन प्रसाद सिंह को महज 6,761 मतों से ही संतोष करना पड़ा था। ऐसे में सवाल उठता है कि झामुमो-कांग्रेस-झाविमो के गठजोड़ से अनिल मुर्मू को प्राप्त 97 हजार वोटों को भाजपा कैसे मैनेज करेगी। इसके अलावा हेमलाल मुर्मू क्रमशः बरहेट और पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र से 22-22 हजार से अधिक मतों से पिछड़ गए थे। उनके समक्ष अपने गृह विधानसभा क्षेत्र बरहेट में ही मतों के अंतर को पाटने की सबसे बड़ी चुनौती है। जबकि, पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में 3 लाख से अधिक मतदाता हैं। इनमें तकरीबन 70 फीसदी मुस्लिम हैं। पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र का सूबे में सर्वाधिक वोट प्रतिशत करने का रिकॉर्ड भी रहा है। राजमहल लोकसभा क्षेत्र में तकरीबन 15 लाख मतदाता हैं। इनमें करीब 6 लाख आदिवासी, 4.5 लाख गैर आदिवासी और 4.5 लाख ही मुस्लिम मतदाता हैं। पारंपरिक रूप से झामुमो के समर्थक माने जाने वाले आदिवासी मतदाताओं में ज्यादातर क्रिश्चियन हैं। जबकि, अमूमन मुस्लिम वोट को भी भाजपा विरोधी ही माना जाता है। वहीं, बीते चुनाव में बोरियो विधानसभा क्षेत्र से महज 2,373 वोट से लीड लेने वाली भाजपा के लिए नाराज विधायक ताला मरांडी समस्या खड़ी कर सकते हैं। चर्चा है कि ताला अंत समय में बसपा से ताल ठोंक सकते हैं। ऐसे में भाजपा और हेमलाल मुर्मू के समक्ष एक बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में कर जीत सुनिश्चित करने की बड़ी चुनौती होगी।
कांग्रेस और झामुमो की परंपरागत सीट रही है
राजमहल सीट से पांच बार कांग्रेस और चार बार झामुमो का कब्जा रहा है। एक बार बीएलडी और एक बार भाजपा ने यह सीट जीती है। झामुमो से साइमन मरांडी ने 1989 और 1991 में, 2004 में हेमलाल मुर्मू और 2014 में विजय हांसदा ने जीत दर्ज की है। 2009 में एक बार भाजपा के देवीधन बेसरा ने यह सीट जीती। 1977 में एक बार बीएलडी के फादर एंथोनी मुर्मू ने यह सीट जीती थी। वर्ष 2000 में राज्य गठन के समय कांग्रेस के थामस हांसदा यहां से सांसद थे।

1999
जीतेः थॉमस हांसदा (कांग्रेस)
हारेः सोम मरांडी (भाजपा)
2004
जीतेः हेमलाल मुर्मू (झामुमो)
हारेः थॉमस हांसदा (कांग्रेस)
2009
जीतेः देवीधन बेसरा (भाजपा)
हारेः हेमलाल मुरमू (झामुमो)
2014
जीतेः विजय हांसदा (झामुमो)
हारेः हेमलाल मुरमू (भाजपा)

झामुमो में भीतरघात की आशंका, किला ढाहने में लगे हुए हैं कुछ पूर्व विधायक
झामुमो के गढ़ राजमहल में पार्टी के जयचंद ही भीतरघात कर झामुमो का किला ढाहने में लगे हुए हैं। पाकुड़ के पूर्व विधायक अकील अख्तर, बोरियो के पूर्व विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने पार्टी के अंदरखाने एक ओर जहां खुल कर मोर्चा खोला हुआ था वहीं, महेशपुर विधायक स्टीफन मरांडी स्वंय और लिट्टीपाड़ा विधायक साइमन मरांडी अपने बेटे को राजमहल से चुनाव लड़ाने के महत्वाकांक्षी रहे विजय के विरोध में एकजुट थे। इसके अलावा बीते पांच सालों में विजय द्वारा फुटबॉल और प्रधानमंत्री सड़क योजना का शिलान्यास/उद्घाटन के अलावा विशेष जन कल्याणकारी योजनाएं धरातल पर दिखाई नहीं देती हैं। इससे वोटर भी नाराज हैं, पर भाजपा विरोधी माने जाने वाले वाले 5 लाख से अधिक मुस्लिम मतदाताओं के पास झामुमो प्रत्याशी को वोट देने के अलावा शायद कोई विकल्प नहीं रहेगा।
भाजपा में भी अंतरकलह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी भी ठोंक रहे ताल
भाजपा में शामिल होने के बाद लगातार हार का मुंह देखने वाले हेमलाल मुर्मू को प्रत्याशी बनाए जाने से पार्टी के भीतर अंर्तकलह मुखर है। बोरियो विधायक व भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी खुलकर विरोध में ताल ठोंक रहे हैं। वहीं, बरहेट में उनके धुर विरोधी व साहेबगंज की वर्तमान जिला परिषद अध्यक्ष रेणूका मुर्मू के अलावा टिकट के अन्य दावेदार पाकुड़ के जिला परिषद अध्यक्ष बाबूधन मुर्मू, पूर्व सांसद देवीधन बेसरा आदि को अपने पक्ष में करना एक बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, भाजपा बोरियो में ताला की चाबी के रूप में महेंद्र हांसदा को प्रमोट कर सकती है। माना जाता है कि महेंद्र के पास 25 हजार अपना वोट बैंक है। ऐसे में झामुमो और भाजपा के आपसी भीतरघात के बीच वोटर किसके प्रति अपनी निष्ठा दिखाएंगे, ये आने वाला वक्त ही बताएगा।
मतदानः 19 मई
नामांकन की शुरुआतः 22 अप्रैल
नामांकन की अंतिम तिथिः 29 अप्रैल
नाम वापसीः 02 मई
कुल वोटः 14,34,506
पुरुषः 7,31,659
महिलाः 7,02,840


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