मोदी के नामांकन में भी सोशल इंजीनियरिंग
चुनाव के मौसम में नामांकन तो सभी करते हैं। रोड शो भी सभी दल निकालते हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी का रोड शो और नामांकन जुलूस न केवल ऐतिहासिक रहा बल्कि अलहदा भी रहा। उसमें इनोवेशन भी नजर आया और क्रिएशन भी। वाराणसी की तीन बड़ी पहचान हैं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, मां गंगा और डोमराज का परिवार। मोदी ने इन तीनों को अहमियत दी। बाबा विश्वनाथ और भगवान कालभैरव को तो याद किया ही। काशी में सबसे पहले महामना मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा को प्रणाम किया और इसके बाद रोड शो में शामिल होने आई जनगंगा को। इसके बाद वे गंगा तट पर पहुंचे। वहां मां गंगा की आरती की। गंगा की भक्ति की ही शक्ति है कि वे देश ही नहीं, दुनिया के कद्दावर नेताओं में शुमार हो चले हैं। पिछली बार भी उनका नामांकन औरों से अलग था। तब भी उन्होंने काशी को मान दिया था और इस बार भी उन्होंने अपनी प्यारी काशी को निराश नहीं किया।
पिछली बार उनके प्रस्तावक बने थे महामना के पौत्र गिरधर मालवीय। शास्त्रीय संगीत का एक जाना-पहचाना नाम पं. छन्नू लाल शास्त्री, लेकिन इस बार के नामांकन में बड़ी रचनात्मकता है। यह सामाजिक समरसता का भी प्रतीकात्मक मानदंड है और सबका साथ-सबका विकास की भावना का उद्घोष भी है। इस बार उनके प्रस्तावक रहे डोमराज जगदीश चौधरी। उनकी प्रस्तावक रहीं महामना परिवार की परम विदुषी शिक्षाविद् डॉ.अन्नपूर्णा शुक्ला। उनके प्रस्तावकों में अखिल भारतीय विज्ञान अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिक रमाशंकर पटेल, जनसंघ के जमाने से भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता सुभाष गुप्ता भी रहे। यह बताता है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी नरेन्द्र मोदी ने ज्ञान की नगरी काशी के महत्व को पहचाना। उन्होंने अपने प्रस्तावक चुनने में भी कुछ अलहदा किया। भौतिक ज्ञान के साथ-साथ सांसारिक नश्वरता बोध के प्रतीक डोमराज को अपना प्रस्तावक बनाकर समाज के सभी वर्गों अगड़ों, पिछड़ों और दलितों के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश की। एक दिन पहले महामना को प्रणाम और दूसरे दिन उनके परिवार की विदुषी महिला के पैर छूकर प्रधानमंत्री ने लोक को यह संदेश देने की कोशिश की है कि विद्वानों के प्रति उनके मन में कितना समादर भाव है।
काशी के कोतवाल के दरबार में काल भैरवाष्टमी के दिन हाजिरी लगाना, वहां पूजा करना और उसके बाद नामांकन की प्रक्रिया को पूरा करना यह बताता है कि वाकई यह फकीर काशी के फक्कड़पन में अंदर तक रम चुका है। उनके नामांकन अवसर पर भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, सुषमा स्वराज, प्रकाश सिंह बादल, नितिन गडकरी, नीतीश कुमार, उद्धव ठाकरे, पन्नीर सेल्वम, राम विलास पासवान जैसे तमाम दिग्गजों की उपस्थिति से लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की एकजुटता भी प्रदर्शित हुई। नरेन्द्र मोदी ने अपने रोड शो और नामांकन जुलूस में उमड़ी भीड़ का न केवल मनोविज्ञान समझा बल्कि काशीवासियों से यह भी कहा कि इतना बड़ा रोड शो काशी के लोग ही कर सकते हैं। कुछ राजनीतिक दल उनके अहंकार के टूटने की बात कह सकते हैं लेकिन काशीवासियों को तो लगा ही नहीं कि उनकी पसंद में कहीं अहंकार का कोई पुट भी है। उन्होंने तहेदिल से इस बात को स्वीकार किया कि सरकार बनाना जनता के हाथ है लेकिन उसे चलाना चलाना हमारी जिम्मेवारी है। हमने ईमानदारी से वह जिम्मेवारी निभाई है। हमने कभी बहाना नहीं बनाया। आप कार्यकर्ता ही मेरे मालिक हैं, जिसे मैं हिसाब देता हूं। पांच साल में कार्यकर्ता के तौर पर पार्टी ने जितना, जब और जहां समय मांगा, मैंने मना नहीं किया। कार्यसमिति में भी एक कार्यकर्ता की तरह ही पूरा समय बैठा हूं। अपने भीतर के कार्यकर्ता को मैंने कभी मरने नहीं दिया। जाते-जाते वे बूथ कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा और नवप्राण चेतना का संचार भी कर गए। वे हर बूथ कार्यकर्ता को जीत का मंत्र सिखा गए। हर कार्यकर्ता को मोदी बना गए। यह भी बता गए कि कि बनारस तो रोड शो में ही जीत लिया। अब एक जीत बाकी है। बूथ जीतना। एक-एक वोट महत्वपूर्ण है। भाजपा कार्यकर्ता के नाते आपकी कठिनाई बहुत है, खासकर बनारसवालों की। दूसरी जगहों पर तो उनका उम्मीदवार साथ चलता है। आप का उम्मीदवार भाग्यवान है कि वह कहीं भी रहे लेकिन यहां का कार्यकर्ता खुद को उम्मीदवार मानते हुए काम करता है। मोदी देश का झंडा नहीं झुकने देगा और कार्यकर्ता किसी भी पोलिंग बूथ पर भाजपा का झंडा नहीं झुकने देगा। नामांकन के बाद अब कुछ नहीं करना है सब गंगा मइया देख लेगी। गंगा के प्रति, बाबा विश्वनाथ के प्रति और कालभैरव के प्रति इतना अनुराग, इतनी निष्ठा निश्चित रूप से काशीवासियों का दिल जीतने के लिए काफी है।
भूतभावन भगवान शिव की काशी एक बार फिर चर्चा में है। विश्व की सांस्कृतिक नगरी काशी अब राजनीतिक भी हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव का पर्चा भर दिया है। एक दिन पहले निकले अपने भव्य रोड शो में उन्होंने काशीवासियों से पूछा था कि आप कहोे तो पर्चा भर दूं। काशीवासियों ने हामी भर दी तो नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आपसे मिले प्यार से यह पता चल गया कि आपने चुनाव संभाल लिया है। उन्होंने खुद को काशी का कर्जदार भी बताया और साथ ही यह भी स्वीकार किया कि काशी के फक्कड़पन में यह फकीर रम गया है। यह दूसरा मौका है जब नरेन्द्र मोदी ने खुद को फकीर कहा है। इससे पहले उन्होंने कहा था कि मेरा क्या, मैं तो फकीर हूं, झोला उठा कर चल दूंगा। तब लालू यादव ने चुटकी ली थी कि ऐसे कैसे चले जाएंगे। हम उनके झोले की तलाशी लिए बिना थोड़े जाने देंगे। पता नहीं झोले में क्या लेकर चले जाएं। काशी का हर कंकड़ शंकर है। काशीवासियों से अनुमति मांगना उनकी विनम्रता है। कुछ लोग इसे उनका अपने विरोधियों पर तंज भी मान सकते हैं। हाल के दिनों में तीन-चार मौके ऐसे आए हैं जब कांग्रेस की नवोदित महासचिव ने अमेठी और रायबरेली के लोगों से पूछा था कि आप कहें तो मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ जाऊं। लोग काशी से मोदी द्वारा मांगी गई अनुमति को इस पर तंज के रूप में भी देख रहे हैं। वैसे नरेन्द्र मोदी ने भैरव के दर्शन के बाद ही नामांकन किया। जिस तरह का काशिवासियों से प्यार उन्हें मिला है, उसमें विपक्ष के सारे सवालों के जवाब समाहित हैं। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा था कि मोदी की कुंडली में कालसर्प योग है। वे किसी महिला से चुनाव हार जाएंगे। उन्हें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रियंका गांधी उनके खिलाफ चुनाव न लड़ें। अब प्रार्थना करने की वैसे भी जरूरत नहीं रही। प्रियंका नहीं, वाराणसी से कांग्रेस के टिकट पर अजय राय चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन हरीश रावत को यह भी सोचना चाहिए कि समाजवादी पार्टी के टिकट पर शालिनी यादव भी नरेन्द्र मोदी के सामने चुनाव लड़ रही हैं। अब पता नहीं, कांग्रेस शालिनी यादव को महिला मानती भी है या नहीं। कुल मिलाकर नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी ने जिस तरह का रोड शो किया है। वह अपने आप में ऐतिहासिक है। इसके अपने सामाजिक संदेश भी हैं। वैसे नरेन्द्र मोदी संदेशों की राजनीति के लिए ही जाने जाते हैं। वे निरंतर प्रयोग करते हैं। काशी में उनका नामांकन भी एक प्रयोग है। काशी लघु भारत है। इसमें कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के लोग रहते हैं। अगर यह कहें कि हर क्षण यहां पूरी दुनिया उपस्थित रहती है तो भी कदाचित गलत नहीं होगा। ऐसे में काशी से जो संदेश निकला है, उसकी गूंज उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और मध्यप्रदेश तक सुनाई देगी, इसमें शायद ही किसी को कोई संदेह होगा। काशीवासियों ने अगर मोदी को काशीपुत्र कहा है तो उसके अपने मायने हैं, उस निहितार्थ को भी समझे जाने की जरूरत है। काशी संदेश की नगरी है। यह ब्रह्मा और विष्णु के उद्भव की नगरी है। काशी तपोभूमि है। मोदी ने बहुत पते की बात कही है कि मुझसे यह न पूछा जाए कि मैंने काशी में क्या बदलाव किया बल्कि मुझसे पूछा जाए कि काशी आकर मुझमें क्या बदलाव आया। जो परिवर्तन की आकांक्षा रखता है, काशी हमेशा उसके साथ खड़ी रहती है। काशीपुत्र तो वही हो सकता है जिसकी सोच में भी काशी हो। मोदी ने सच कहा है कि काशी ने उन्हें बदल दिया है। उनके लिए देशहित और काशी का हित सर्वोपरि है। वैसे जिस तरह रोड शो की सफलता का श्रेय उन्होंने काशी को दिया है, उससे एक बात तो साफ है कि उन्हें बाहरी कहने वालों, उन पर गांवों की उपेक्षा का आरोप लगाने वालों को उससे आघात लगना भी स्वाभाविक है। डोमराज और अयोध्या में एक दलित के यहां योगी आदित्यनाथ के भोजन से ही विपक्ष परेशान था, डोमराज जगदीश चौधरी को प्रस्तावक बनाकर तो नरेन्द्र मोदी ने उनके चुनाव जीतने का सामाजिक समीकरण ही गड़बड़ा दिया है।
पिछली बार उनके प्रस्तावक बने थे महामना के पौत्र गिरधर मालवीय। शास्त्रीय संगीत का एक जाना-पहचाना नाम पं. छन्नू लाल शास्त्री, लेकिन इस बार के नामांकन में बड़ी रचनात्मकता है। यह सामाजिक समरसता का भी प्रतीकात्मक मानदंड है और सबका साथ-सबका विकास की भावना का उद्घोष भी है। इस बार उनके प्रस्तावक रहे डोमराज जगदीश चौधरी। उनकी प्रस्तावक रहीं महामना परिवार की परम विदुषी शिक्षाविद् डॉ.अन्नपूर्णा शुक्ला। उनके प्रस्तावकों में अखिल भारतीय विज्ञान अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिक रमाशंकर पटेल, जनसंघ के जमाने से भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता सुभाष गुप्ता भी रहे। यह बताता है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी नरेन्द्र मोदी ने ज्ञान की नगरी काशी के महत्व को पहचाना। उन्होंने अपने प्रस्तावक चुनने में भी कुछ अलहदा किया। भौतिक ज्ञान के साथ-साथ सांसारिक नश्वरता बोध के प्रतीक डोमराज को अपना प्रस्तावक बनाकर समाज के सभी वर्गों अगड़ों, पिछड़ों और दलितों के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश की। एक दिन पहले महामना को प्रणाम और दूसरे दिन उनके परिवार की विदुषी महिला के पैर छूकर प्रधानमंत्री ने लोक को यह संदेश देने की कोशिश की है कि विद्वानों के प्रति उनके मन में कितना समादर भाव है।
काशी के कोतवाल के दरबार में काल भैरवाष्टमी के दिन हाजिरी लगाना, वहां पूजा करना और उसके बाद नामांकन की प्रक्रिया को पूरा करना यह बताता है कि वाकई यह फकीर काशी के फक्कड़पन में अंदर तक रम चुका है। उनके नामांकन अवसर पर भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, सुषमा स्वराज, प्रकाश सिंह बादल, नितिन गडकरी, नीतीश कुमार, उद्धव ठाकरे, पन्नीर सेल्वम, राम विलास पासवान जैसे तमाम दिग्गजों की उपस्थिति से लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की एकजुटता भी प्रदर्शित हुई। नरेन्द्र मोदी ने अपने रोड शो और नामांकन जुलूस में उमड़ी भीड़ का न केवल मनोविज्ञान समझा बल्कि काशीवासियों से यह भी कहा कि इतना बड़ा रोड शो काशी के लोग ही कर सकते हैं। कुछ राजनीतिक दल उनके अहंकार के टूटने की बात कह सकते हैं लेकिन काशीवासियों को तो लगा ही नहीं कि उनकी पसंद में कहीं अहंकार का कोई पुट भी है। उन्होंने तहेदिल से इस बात को स्वीकार किया कि सरकार बनाना जनता के हाथ है लेकिन उसे चलाना चलाना हमारी जिम्मेवारी है। हमने ईमानदारी से वह जिम्मेवारी निभाई है। हमने कभी बहाना नहीं बनाया। आप कार्यकर्ता ही मेरे मालिक हैं, जिसे मैं हिसाब देता हूं। पांच साल में कार्यकर्ता के तौर पर पार्टी ने जितना, जब और जहां समय मांगा, मैंने मना नहीं किया। कार्यसमिति में भी एक कार्यकर्ता की तरह ही पूरा समय बैठा हूं। अपने भीतर के कार्यकर्ता को मैंने कभी मरने नहीं दिया। जाते-जाते वे बूथ कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा और नवप्राण चेतना का संचार भी कर गए। वे हर बूथ कार्यकर्ता को जीत का मंत्र सिखा गए। हर कार्यकर्ता को मोदी बना गए। यह भी बता गए कि कि बनारस तो रोड शो में ही जीत लिया। अब एक जीत बाकी है। बूथ जीतना। एक-एक वोट महत्वपूर्ण है। भाजपा कार्यकर्ता के नाते आपकी कठिनाई बहुत है, खासकर बनारसवालों की। दूसरी जगहों पर तो उनका उम्मीदवार साथ चलता है। आप का उम्मीदवार भाग्यवान है कि वह कहीं भी रहे लेकिन यहां का कार्यकर्ता खुद को उम्मीदवार मानते हुए काम करता है। मोदी देश का झंडा नहीं झुकने देगा और कार्यकर्ता किसी भी पोलिंग बूथ पर भाजपा का झंडा नहीं झुकने देगा। नामांकन के बाद अब कुछ नहीं करना है सब गंगा मइया देख लेगी। गंगा के प्रति, बाबा विश्वनाथ के प्रति और कालभैरव के प्रति इतना अनुराग, इतनी निष्ठा निश्चित रूप से काशीवासियों का दिल जीतने के लिए काफी है।
भूतभावन भगवान शिव की काशी एक बार फिर चर्चा में है। विश्व की सांस्कृतिक नगरी काशी अब राजनीतिक भी हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव का पर्चा भर दिया है। एक दिन पहले निकले अपने भव्य रोड शो में उन्होंने काशीवासियों से पूछा था कि आप कहोे तो पर्चा भर दूं। काशीवासियों ने हामी भर दी तो नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आपसे मिले प्यार से यह पता चल गया कि आपने चुनाव संभाल लिया है। उन्होंने खुद को काशी का कर्जदार भी बताया और साथ ही यह भी स्वीकार किया कि काशी के फक्कड़पन में यह फकीर रम गया है। यह दूसरा मौका है जब नरेन्द्र मोदी ने खुद को फकीर कहा है। इससे पहले उन्होंने कहा था कि मेरा क्या, मैं तो फकीर हूं, झोला उठा कर चल दूंगा। तब लालू यादव ने चुटकी ली थी कि ऐसे कैसे चले जाएंगे। हम उनके झोले की तलाशी लिए बिना थोड़े जाने देंगे। पता नहीं झोले में क्या लेकर चले जाएं। काशी का हर कंकड़ शंकर है। काशीवासियों से अनुमति मांगना उनकी विनम्रता है। कुछ लोग इसे उनका अपने विरोधियों पर तंज भी मान सकते हैं। हाल के दिनों में तीन-चार मौके ऐसे आए हैं जब कांग्रेस की नवोदित महासचिव ने अमेठी और रायबरेली के लोगों से पूछा था कि आप कहें तो मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ जाऊं। लोग काशी से मोदी द्वारा मांगी गई अनुमति को इस पर तंज के रूप में भी देख रहे हैं। वैसे नरेन्द्र मोदी ने भैरव के दर्शन के बाद ही नामांकन किया। जिस तरह का काशिवासियों से प्यार उन्हें मिला है, उसमें विपक्ष के सारे सवालों के जवाब समाहित हैं। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा था कि मोदी की कुंडली में कालसर्प योग है। वे किसी महिला से चुनाव हार जाएंगे। उन्हें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रियंका गांधी उनके खिलाफ चुनाव न लड़ें। अब प्रार्थना करने की वैसे भी जरूरत नहीं रही। प्रियंका नहीं, वाराणसी से कांग्रेस के टिकट पर अजय राय चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन हरीश रावत को यह भी सोचना चाहिए कि समाजवादी पार्टी के टिकट पर शालिनी यादव भी नरेन्द्र मोदी के सामने चुनाव लड़ रही हैं। अब पता नहीं, कांग्रेस शालिनी यादव को महिला मानती भी है या नहीं। कुल मिलाकर नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी ने जिस तरह का रोड शो किया है। वह अपने आप में ऐतिहासिक है। इसके अपने सामाजिक संदेश भी हैं। वैसे नरेन्द्र मोदी संदेशों की राजनीति के लिए ही जाने जाते हैं। वे निरंतर प्रयोग करते हैं। काशी में उनका नामांकन भी एक प्रयोग है। काशी लघु भारत है। इसमें कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के लोग रहते हैं। अगर यह कहें कि हर क्षण यहां पूरी दुनिया उपस्थित रहती है तो भी कदाचित गलत नहीं होगा। ऐसे में काशी से जो संदेश निकला है, उसकी गूंज उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और मध्यप्रदेश तक सुनाई देगी, इसमें शायद ही किसी को कोई संदेह होगा। काशीवासियों ने अगर मोदी को काशीपुत्र कहा है तो उसके अपने मायने हैं, उस निहितार्थ को भी समझे जाने की जरूरत है। काशी संदेश की नगरी है। यह ब्रह्मा और विष्णु के उद्भव की नगरी है। काशी तपोभूमि है। मोदी ने बहुत पते की बात कही है कि मुझसे यह न पूछा जाए कि मैंने काशी में क्या बदलाव किया बल्कि मुझसे पूछा जाए कि काशी आकर मुझमें क्या बदलाव आया। जो परिवर्तन की आकांक्षा रखता है, काशी हमेशा उसके साथ खड़ी रहती है। काशीपुत्र तो वही हो सकता है जिसकी सोच में भी काशी हो। मोदी ने सच कहा है कि काशी ने उन्हें बदल दिया है। उनके लिए देशहित और काशी का हित सर्वोपरि है। वैसे जिस तरह रोड शो की सफलता का श्रेय उन्होंने काशी को दिया है, उससे एक बात तो साफ है कि उन्हें बाहरी कहने वालों, उन पर गांवों की उपेक्षा का आरोप लगाने वालों को उससे आघात लगना भी स्वाभाविक है। डोमराज और अयोध्या में एक दलित के यहां योगी आदित्यनाथ के भोजन से ही विपक्ष परेशान था, डोमराज जगदीश चौधरी को प्रस्तावक बनाकर तो नरेन्द्र मोदी ने उनके चुनाव जीतने का सामाजिक समीकरण ही गड़बड़ा दिया है।