मेहनत व समर्पण से कंवल सिंह ने तय किया पद्मश्री तक का सफर
सोनीपत, 26 जनवरी (हि.स.)। धरती पुत्र किसान का बेटा किस प्रकार से सफलता पाता है, सीमित साधनों में रहकर कैसे करोड़पति बना जा सकता है और सही समय पर सही निर्णय लेकर अपनी कार्ययोजनाओं को कैसे सफल बनाया जाता है, इसकी एक मिसाल हैं कंवल सिंह चौहान | जिला सोनीपत के अटेरना का किसान पुत्र कंवल सिंह चौहान ने अपने कार्य को व्यवहारिक रूप देकर, एक नई इबारत लिखकर सोनीपत रत्न से पद्मश्री तक का सफर तय किया है, यह दूसरों के लिए एक मिसाल है। इनके जीवन सफर से हम सबों को प्रेरणा लेनी चाहिए कि एक किसान पुत्र अपनी मिट्टी की सोंधी खुशबू से किस प्रकार से देश को सुगंधित कर सकता है।
वर्ष 2000 में कंवल सिंह ने खेती को नए तरीके से करने का निर्णय लिया। इनके बाद ही इनके जीवन का सफरनामा बहुत ही खूबसूरत व प्रेरणादायक भी रहा | हर चीज को उसने बेहतर तरीके से करना शुरू किया। शुरुआती दौर में कंवल ने फल-फूल, सब्जी की प्रोसेसिंग यूनिट लगाई | मशरूम कल्टीवेशन, प्रोडक्शन ऑफ़ मशरूम, कम्पोस्ट आदि का प्रोडक्शन शुरू किया। ऑर्गेनिक फार्मिंग की गेहूं, चावल, बेबी कॉर्न, स्वीट कॉर्न और टमाटर की खेती ने इन्हें नित नए आयाम दिए। अपने गांव अटेरना में भारतीय शिक्षा ग्रामीण विकास आवाम अनुसंधान समिति के रूप में किसानों का प्रशिक्षण स्कूल शुरू किया जहाँ बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न के उत्पादन शुरू किए गये।
कंवल सिंह चौहान को अबतक मिले ये सम्मान
कंवल सिंह चौहान अपने कामों की बदौलत आम से खास बनने लगे। गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी, जो वर्तमान में प्रधानमंत्री हैं, की ओर से 9 सितंबर 2013 को इन्हें सम्मानित किया गया। मार्च 2014 में प्रोग्रेसिव फार्मर अवॉर्ड पंजाब सरकार की ओर से दिया गया | राज्य स्तरीय फार्मर अवॉर्ड तत्कालीन मुख्यमंत्री हरियाणा सरकार की ओर से दिया गया |किसान दिवस पर 2012 में उद्यान रत्न अवॉर्ड’ 2012 दिया गया | अमित मेमोरियल फाउंडेशन उड़ीसा की ओर से एनजी रंगा फार्मर अवॉर्ड 2010 में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का अवार्ड 16 जुलाई 2011 को हरियाणा के मुख्यमंत्री की ओर से दिया गया | किसान दिवस पर इनोवेशन फार्मर अवॉर्ड पूसा कृषि मेला में 2010 में मिला, फार्मर अवॉर्ड आईएआरआई पूसा किसान मेले में 2009 में, सोनीपत रत्न अवॉर्ड जनवरी 2008 में, राजीव गांधी अवॉर्ड एग्रीकल्चर के लिए 2007 में, चौधरी देवीलाल पुरस्कार जिला स्तर का डिप्टी कमिश्नर सोनीपत की ओर से 15 अगस्त 2003 को उन्हें दिया गया | अभी इन्हें पद्मश्री का सम्मान दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मुबारक मौके पर दिया गया है।
कंवल सिंह चौहान एक मिसाल बन गए
कंवल सिंह ने अपने जीवन के अंदर जो करके दिखाया उससे वे एक मिसाल बन गए । उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि हालात चाहे जो भी हो सफलता उनके कदम चूमती है जिनके अंदर दृढ इच्छाशक्ति, कार्य करने की क्षमता और एक बेहतर प्रशिक्षण कार्यप्रणाली होती है। कार्य योजनाओं को रूपांतरित करने के लिए व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने के लिए किस प्रकार से आप अपने समय का सदुपयोग करते हुए दूसरों के लिए एक मिशाल बनते हैं।
खादर क्षेत्र में बदहाल किसानों की हालत सुधारी
कंवल सिंह ने बताया कि 15 साल पहले तक यमुना के खादर क्षेत्र में किसानों की माली हालत बेहद खराब थी। पारंपरिक खेती पर लोग निर्भर थे। आम किसानों की तरह की यहाँ भी लोग कर्ज में डूबे थे। उन्होंने हिम्मत के साथ, मेहनत के साथ गांव में सबसे पहले बेबी कॉर्न और मशरूम उत्पादन शुरू किया। शुरुआत में काफी परेशानियां भी आई, मेहनत भी अधिक लगी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज उन्होंने पूरे गांव की तस्वीर बदलने के साथ ही करीब 200 लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार भी उन्होंने दिया है ।
पिता के निधन के बाद कंधे पर आई जिम्मेदारी
वर्ष 1978 में जब उसकी उम्र 15 वर्ष की थे तो उनके पिता का निधन हो गया और परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। परिवार के गुजारा के लिए थोड़ी ही जमीन उनके पास थी। धान-गेहूं से परिवार का गुजारा हो पाता था। परिवार बढ़ा और पारंपरिक खेती से गुजारा मुश्किल हो गया तो वर्ष 1996 में उन्होंने कर्ज लेकर एक राइस मिल लगाई लेकिन सफलता नहीं मिली।
कर्ज का भार बढ़ा पर हिम्मत नहीं हारी
कंवल सिंह बताते हैं कि कर्ज का भार बढ़ने लगा, पर हिम्मत से काम लिया। एक बार फिर नए सिरे से परंपरागत खेती को छोड़कर वर्ष 1998 में सबसे पहले मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती शुरू की। इसमें जोखिम तो था पर कामयाबी मिली। दोनों फसलों से अच्छी आमदनी हुई। फिर तो दूसरे किसानों के लिए वे प्रेरक बन गए।
आठ प्रकार के उत्पाद तैयार करने में जुटे हैं कंवल
खुद बेबी कॉर्न, मशरूम, स्वीट कॉर्न, मधुमक्खी पालन की खेती करने के साथ वे किसानों को भी जागरूक करने लगे। देखते ही देखते गांव के दूसरे किसान भी उनकी राह पर चल पड़े और अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की। जब गांव में बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न का उत्पादन बढ़ा तो किसानों को बाजार की दिक्कत न हो, इसके लिए कंवल सिंह ने वर्ष 2009 में फूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू कर दी। लगभग दो एकड़ में स्थित इस यूनिट में बेबी कॉर्न, स्वीट कॉर्न, अनानास, फ्रूट कॉकटेल, मशरूम बटन, मशरूम स्लाइस सहित लगभग आठ प्रकार के उत्पाद उनकी फूड प्रोसेसिंग यूनिट में तैयार किए जाते हैं।
इसके प्लांट में 200 लोगों को मिला है रोजगार
इस यूनिट से प्रतिदिन लगभग डेढ़ टन बेबी कॉर्न व अन्य उत्पाद इंग्लैंड व अमेरिका में निर्यात होता है। उनकी इस यूनिट से इस समय 10 गांव के 136 किसान सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं, जिनको न्यूनतम समर्थन मूल्य देकर उनकी फसल खरीदने का वादा करते हैं। प्लांट में करीब 200 लोगाों को सीधे तौर पर रोजगार भी मिला हुआ है।
पांच हजार किसानों को अब देंगे लाभ
कंवल सिंह का कहना है कि आसपास के किसानों को सब्जी बेचने के लिए भी दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा। 26 जनवरी से ही यहां फूड प्रोसेसिंग यूनिट के साथ ही कोल्ड चेन का नया प्लांट भी शुरू किया जाना है । इस प्लांट में 100 से अधिक लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही करीब पांच हजार किसानों को सीधे तौर पर इसका फायदा होगा।
वर्ष 2000 में कंवल सिंह ने खेती को नए तरीके से करने का निर्णय लिया। इनके बाद ही इनके जीवन का सफरनामा बहुत ही खूबसूरत व प्रेरणादायक भी रहा | हर चीज को उसने बेहतर तरीके से करना शुरू किया। शुरुआती दौर में कंवल ने फल-फूल, सब्जी की प्रोसेसिंग यूनिट लगाई | मशरूम कल्टीवेशन, प्रोडक्शन ऑफ़ मशरूम, कम्पोस्ट आदि का प्रोडक्शन शुरू किया। ऑर्गेनिक फार्मिंग की गेहूं, चावल, बेबी कॉर्न, स्वीट कॉर्न और टमाटर की खेती ने इन्हें नित नए आयाम दिए। अपने गांव अटेरना में भारतीय शिक्षा ग्रामीण विकास आवाम अनुसंधान समिति के रूप में किसानों का प्रशिक्षण स्कूल शुरू किया जहाँ बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न के उत्पादन शुरू किए गये।
कंवल सिंह चौहान को अबतक मिले ये सम्मान
कंवल सिंह चौहान अपने कामों की बदौलत आम से खास बनने लगे। गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी, जो वर्तमान में प्रधानमंत्री हैं, की ओर से 9 सितंबर 2013 को इन्हें सम्मानित किया गया। मार्च 2014 में प्रोग्रेसिव फार्मर अवॉर्ड पंजाब सरकार की ओर से दिया गया | राज्य स्तरीय फार्मर अवॉर्ड तत्कालीन मुख्यमंत्री हरियाणा सरकार की ओर से दिया गया |किसान दिवस पर 2012 में उद्यान रत्न अवॉर्ड’ 2012 दिया गया | अमित मेमोरियल फाउंडेशन उड़ीसा की ओर से एनजी रंगा फार्मर अवॉर्ड 2010 में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का अवार्ड 16 जुलाई 2011 को हरियाणा के मुख्यमंत्री की ओर से दिया गया | किसान दिवस पर इनोवेशन फार्मर अवॉर्ड पूसा कृषि मेला में 2010 में मिला, फार्मर अवॉर्ड आईएआरआई पूसा किसान मेले में 2009 में, सोनीपत रत्न अवॉर्ड जनवरी 2008 में, राजीव गांधी अवॉर्ड एग्रीकल्चर के लिए 2007 में, चौधरी देवीलाल पुरस्कार जिला स्तर का डिप्टी कमिश्नर सोनीपत की ओर से 15 अगस्त 2003 को उन्हें दिया गया | अभी इन्हें पद्मश्री का सम्मान दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मुबारक मौके पर दिया गया है।
कंवल सिंह चौहान एक मिसाल बन गए
कंवल सिंह ने अपने जीवन के अंदर जो करके दिखाया उससे वे एक मिसाल बन गए । उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि हालात चाहे जो भी हो सफलता उनके कदम चूमती है जिनके अंदर दृढ इच्छाशक्ति, कार्य करने की क्षमता और एक बेहतर प्रशिक्षण कार्यप्रणाली होती है। कार्य योजनाओं को रूपांतरित करने के लिए व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने के लिए किस प्रकार से आप अपने समय का सदुपयोग करते हुए दूसरों के लिए एक मिशाल बनते हैं।
खादर क्षेत्र में बदहाल किसानों की हालत सुधारी
कंवल सिंह ने बताया कि 15 साल पहले तक यमुना के खादर क्षेत्र में किसानों की माली हालत बेहद खराब थी। पारंपरिक खेती पर लोग निर्भर थे। आम किसानों की तरह की यहाँ भी लोग कर्ज में डूबे थे। उन्होंने हिम्मत के साथ, मेहनत के साथ गांव में सबसे पहले बेबी कॉर्न और मशरूम उत्पादन शुरू किया। शुरुआत में काफी परेशानियां भी आई, मेहनत भी अधिक लगी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज उन्होंने पूरे गांव की तस्वीर बदलने के साथ ही करीब 200 लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार भी उन्होंने दिया है ।
पिता के निधन के बाद कंधे पर आई जिम्मेदारी
वर्ष 1978 में जब उसकी उम्र 15 वर्ष की थे तो उनके पिता का निधन हो गया और परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। परिवार के गुजारा के लिए थोड़ी ही जमीन उनके पास थी। धान-गेहूं से परिवार का गुजारा हो पाता था। परिवार बढ़ा और पारंपरिक खेती से गुजारा मुश्किल हो गया तो वर्ष 1996 में उन्होंने कर्ज लेकर एक राइस मिल लगाई लेकिन सफलता नहीं मिली।
कर्ज का भार बढ़ा पर हिम्मत नहीं हारी
कंवल सिंह बताते हैं कि कर्ज का भार बढ़ने लगा, पर हिम्मत से काम लिया। एक बार फिर नए सिरे से परंपरागत खेती को छोड़कर वर्ष 1998 में सबसे पहले मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती शुरू की। इसमें जोखिम तो था पर कामयाबी मिली। दोनों फसलों से अच्छी आमदनी हुई। फिर तो दूसरे किसानों के लिए वे प्रेरक बन गए।
आठ प्रकार के उत्पाद तैयार करने में जुटे हैं कंवल
खुद बेबी कॉर्न, मशरूम, स्वीट कॉर्न, मधुमक्खी पालन की खेती करने के साथ वे किसानों को भी जागरूक करने लगे। देखते ही देखते गांव के दूसरे किसान भी उनकी राह पर चल पड़े और अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की। जब गांव में बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न का उत्पादन बढ़ा तो किसानों को बाजार की दिक्कत न हो, इसके लिए कंवल सिंह ने वर्ष 2009 में फूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू कर दी। लगभग दो एकड़ में स्थित इस यूनिट में बेबी कॉर्न, स्वीट कॉर्न, अनानास, फ्रूट कॉकटेल, मशरूम बटन, मशरूम स्लाइस सहित लगभग आठ प्रकार के उत्पाद उनकी फूड प्रोसेसिंग यूनिट में तैयार किए जाते हैं।
इसके प्लांट में 200 लोगों को मिला है रोजगार
इस यूनिट से प्रतिदिन लगभग डेढ़ टन बेबी कॉर्न व अन्य उत्पाद इंग्लैंड व अमेरिका में निर्यात होता है। उनकी इस यूनिट से इस समय 10 गांव के 136 किसान सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं, जिनको न्यूनतम समर्थन मूल्य देकर उनकी फसल खरीदने का वादा करते हैं। प्लांट में करीब 200 लोगाों को सीधे तौर पर रोजगार भी मिला हुआ है।
पांच हजार किसानों को अब देंगे लाभ
कंवल सिंह का कहना है कि आसपास के किसानों को सब्जी बेचने के लिए भी दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा। 26 जनवरी से ही यहां फूड प्रोसेसिंग यूनिट के साथ ही कोल्ड चेन का नया प्लांट भी शुरू किया जाना है । इस प्लांट में 100 से अधिक लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही करीब पांच हजार किसानों को सीधे तौर पर इसका फायदा होगा।