महागठबंधन: बसपा को होगा घाटा, सपा रहेगी फायदे में

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-सपाई नहीं पचा पा रहे बसपा उम्मीदवरों को
लखनऊ, 06 अप्रैल (हि.स.)। लोकसभा चुनाव में अपनी साख को बनाए रखने के लिए सपा-बसपा और रालोद के महागठबंधन से कार्यकर्ताओं में पहले काफी उत्साह था लेकिन अब ठंडा होता नजर आ रहा है। इसका कारण प्रमुख रूप से सपा-बसपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच तालमेल का अभाव है। इस महागठबंधन से सपा को बसपा की अपेक्षा ज्यादा फायदा होने वाला है, क्योंकि सपा के बहुत कम कार्यकर्ता बसपा को पचा पा रहे हैं।
सपा और बसपा प्रमुख रूप से एक-एक बिरादरी में अपनी पैठ मानती है। इसमें भी सपा के समर्थक अपनी पार्टी को तो वोट करते हैं लेकिन पार्टी मुखिया के प्रति अधिकांश समर्थकों की इतनी दीवानगी नहीं है कि उनके कहने पर किसी दूसरे को वोट कर दें। इसमें भी यदि वर्तमान परिस्थिति को देखें तो सपा के संरक्षक मुलायम सिंह की अपेक्षा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के प्रति कट्टर समर्थकों का रूझान काफी कम हुआ है। माना जाता है कि मुलायम सिंह हमेशा अपने लोगों के लिए सबकुछ करने के लिए तैयार रहते थे। इस कारण उनके समर्थक भी हमेशा उनके हर बात पर अमल करते थे, जबकि वर्तमान सपा अध्यक्ष के साथ ऐसा नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषक राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन ​त्रिपाठी की मानें तो राष्ट्रवादी विचारकों की अपेक्षा सपा के लोग बसपा को अपना कट्टर दुश्मन के तौर पर मानते आए हैं। गेस्ट हाउस कांड के बाद तो यह स्थिति ज्यादा देखने को मिलती रही है। यहां तक कि गांव-गांव में देखा जाय तो अधिकांश जगह सपा-बसपा समर्थकों के बीच ही आपसी दुश्मनी ज्यादा है। इस कारण सपा के लोग आज भी बसपा को पचा नहीं पा रहे। यही कारण है कि सीतापुर लोकसभा कई जगह तो बसपा उम्मीदवारों का सपा नेता विरोध पर उतर आए हैं। कई लोकसभा क्षेत्रों में खुलकर विरोध न करते हुए भीतरघात करने में जुटे हुए है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सपा के कट्टर समर्थकों में भी पचास प्रतिशत से ज्यादा दूसरी पार्टियों को वोट करेंगे। इससे जहां भी बसपा के उम्मीदवार खड़े हैं, वहां भाजपा को ज्यादा फायदा होने की उम्मीद है।
दूसरी तरफ बसपा में हमेशा मायावती का तानाशाही रवैया के लिए माना जाता है। उनके एक विशेष बिरादरी के समर्थक भी जहां आदेश मिलता है, वहां चले जाते हैं। 2014 के लोक सभा चुनाव से परिस्थितियां बहुत कुछ बदली और बसपा के खास समर्थकों में भी भाजपा ने बहुत ज्यादा सेंधमारी की लेकिन अब भी बहुत हद तक उनके बिरादरी विशेष के समर्थक उनके साथ हैं। ये मायावती के कहने पर सपा को वोट कर सकते हैं।
इन परिस्थितियों से सपा के दिग्गज भी वाकिफ हैं। यही कारण है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव बसपा मुखिया की हर शर्त को मानते हुए, एक तरह से उनके सामने झुक चुके हैं। हर वक्त वे बसपा मुखिया का नाम लेते रहते हैं। उन्हीं के कारण अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से भी गुरेज कर गए।


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