मंडल-कमंडल सियासत में कांग्रेस हवा, भगवा और साइकिल-हाथी में मुकाबला

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भदोही, 30 अप्रैल (हि.स.)। पूर्वांचल की मिर्जापुर और भदोही संसदीय सीट हमेशा से राजनीति का गढ़ रही है। 1952 से लेकर 2014 के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो यहां सबसे अधिक राष्ट्रीय राजनीति का प्रभाव रहा है। इन दोनों सीटों पर तीन दशकों तक कांग्रेस का राज रहा लेकिन मंडल और कमंडल की राजनीति के बाद यहां कांग्रेस ‘हवा’ हो गई। फिर यहां भाजपा, सपा और बसपा अपने झंडे गाड़ती रही। फिलहाल दोनों संसदीय सीटों पर भाजपा गठबंधन का कब्जा है। मिर्जापुर से अनुप्रिया सांसद हैं तो भदोही में भाजपा के वीरेंद्र सिंह सांसद हैं।
जातीय समीकरण की गणित में भी दिखा बैलेंस
मिर्जापुर और भदोही संसदीय सीटों पर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का कभी जलवा था। आजाद भारत के संसदीय इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो मिर्जापुर और भदोही में सबसे अधिक कांग्रेस ने तीन दशकों तक राज किया। यहां से कांग्रेस के छह ‘माननीय’ चुनकर संसद तक पहुंचने में कामयाब हुए। यहां से दो बार अंग्रेज सांसद जेएन विल्सन और दक्षिण भारतीय आरके नारायण भी चुने गए। इस सीट पर चार बार ब्राह्मण सांसद चुने गए। दो बार ठाकुर, तीन बार मुस्लिम और दो बार बिंद सांसद रहे जिसमें एक फूलन भी शामिल थीं। 2009 में भदोही को मिर्जापुर से अलग करके आजाद संसदीय क्षेत्र बना दिया गया। मिर्जापुर सीट पर 2009 में पटेल जाति के बालकुमार समाजवादी पार्टी से जबकि 2014 में मोदी लहर में भाजपा-अपना दल गठबंधन से अनुप्रिया पटेल निर्वाचित हुईं और केंद्र सरकार में मंत्री बनीं। कुशवाहा जाति से भी यहां सांसद रह चुके हैं लेकिन दलित जाति से यहां अभी तक कोई सांसद निर्वाचित नहीं हो पाया।
मिर्जापुर-भदोही में कब और किसकी सरकार
आजाद भारत की संसदीय प्रणाली में 1952 और 1957 में कांग्रेस से आरके नारायण और जेएन विल्सन सांसद बने। इसके बाद फिर कोई ऐसा वक्त नहीं आया जब किसी भी दल का कोई राजनेता लगातार दोबारा सांसद चुना गया हो। 1962 में पूर्वांचल की सियासत के मसीहा पंडित श्यामधर मिश्र कांग्रेस से चुने गए। 1967 में जनसंघ से पहली बार वंशनारायण सिंह को यहां की जनता से सिर आंखों पर बिठाया। भदोही की राजनीति में उनकी अलग पहचान थी। 1971 और 1980 में पहली बार कांग्रेस से किसी मुस्लिम उम्मीदवार का मिर्जापुर-भदोही सीट पर कब्जा हुआ। 1975 में इमरजेंसी के बाद इंदिरा सरकार की पराजय के बाद यहां से जनता पार्टी के उम्मीदवार फकीर अली अंसारी ने अपनी जीत हासिल की जबकि कांग्रेस से पंडित उमाकांत मिश्र 1981 में उपचुनाव जीतने के बाद 1984 में भी सांसद चुने गए। 1989 में इस सीट पर जनता दल से युसूफ बेग का कब्जा रहा। 1996 और 1999 में यहां से बीहड़ों निकल कर राजनीति में आईं फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से जीत हासिल की। इसके बाद 2002 में रामरति बिंद ने सपा से जीत दर्ज की। इसके बाद 2004 में नरेंद्र कुशवाहा बहुजन समाजपार्टी से संसद पहुंचे। 2007 में हुए उपचुनाव में रमेश दूबे बसपा से निर्वाचित हुए।
…जब मिर्जापुर से अलग करके भदोही को बनाया संसदीय सीट
निर्वाचन आयोग के परिसीमन के बाद 2009 में भदोही को मिर्जापुर से अलग करके आजाद लोकसभा क्षेत्र बना दिया गया जहां से पहली बार बसपा से पंडित गोरखनाथ पांडेय सांसद बने। भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त इस समय भदोही के वर्तमान सांसद हैं और वह तीन बार संसद पहुंच चुके हैं लेकिन यह जीत लगातार नहीं रही है। वह 1991 और 1998 में दस्यु सुंदरी फूलन देवी को पराजित करके सांसद बने और फिर 2014 में मोदी लहर में चुने गए।वर्तमान समय से यहां भाजपा और गठबंधन में सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। कांग्रेस उम्मीदवार रमाकांत यादव अगर ओसीबी एवं मुस्लिम मतों में सेंधमारी करने में कामयाब होते हैं तो यहां लड़ाई त्रिकोणीय बन जाएगी।


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