भारत का ‘स्वर्णयुग का इतिहास’ वस्तुत: बिहार का ही इतिहास है: राज्यपाल
पटना, 21 जुलाई (हि.स.)। बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य की ऐतिहासिक विरासत को अत्यन्त समृद्ध बताते हुए शनिवार को कहा कि भारत का ‘स्वर्णयुग का इतिहास’ वस्तुतः बिहार का ही इतिहास है।
राज्य की ऐतिहासिक धरोहरों और संरक्षित स्थलों के संरक्षण एवं विकास को लेकर यहां हुई एक बैठक में राज्यपाल ने कहा कि बिहार की वैशाली को ‘विश्व के प्रथम गणतंत्र’ होने का गौरव प्राप्त है और वैशाली का ‘अशोक स्तंभ’ वास्तुकला की अद्भुत मिसाल है। उन्होंने कहा कि अभिषेक पुष्करिणी सरोवर, कोल्हुआ की अन्य पुरातात्विक विरासतें, रेलिक स्तूप वैशाली, राजा विशाल का गढ़, चतुर्मुखी महादेव, बनिया पोखर, मिरन जी की दरगाह जैसे स्थलों को विकसित किये जाने की जरूरत है।
वैशाली के ‘प्राकृत जैन शास्त्र और अहिंसा शोघ संस्थान’ में पुरानी जैन प्राकृत भाषा में रचित कई पांडुलिपियों को संरक्षित किए जाने की जरूरत बताते हुए राज्यपाल ने जैन सामाजिक संस्थाओं से भी संस्थान के विकास में सहयोग करने को कहा।
राज्यपाल ने प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि तिब्बती पर्यटकों के लिए यह आकर्षण का केन्द्र हो सकता है। राज्यपाल ने भागलपुर हवाईअड्डे के विकास के लिए समुचित कदम उठाए जाने का सुझाव दिया और कहा कि इससे अन्तरराष्ट्रीय पर्यटक विक्रमशिला पहुंच सकेंगे। राज्यपाल ने केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों से विक्रमशिला महाविहार के विकास के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा।
राज्यपाल ने कहा कि बिहार अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और पुरातात्विक महत्व के स्थलों को विकसित कर इनकी पर्यटकीय संभावनाओं को व्यापक रूप से बढ़ा सकता है। उन्होंने कहा कि पर्यटन उद्योग के जरिये राज्य को आर्थिक समृद्धि प्राप्त होगी। राज्यपाल ने सुझाव दिया कि सभी ऐतिहासिक महत्व के स्थलों पर लगने वाले साइनेजों पर ऐतिहासिक तथ्यों को वस्तुनिष्ठ एवं रोचक रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए तथा आकर्षक प्रचार-साहित्य भी तैयार होना चाहिए।
बैठक को संबोधित करते हुए संस्कृति मंत्रालय के सचिव राघवेन्द्र सिंह ने ‘कल्चरल कॉम्प्लेक्स’ या स्टेट म्यूजियम के विकास के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता का आश्वासन दिया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की महानिदेशक उषा शर्मा ने कहा कि बिहार के पुरातात्विक महत्त्व के स्थलों के उत्खनन हेतु स्वीकृति प्रदान करने में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पूरी तत्परता दिखायेगा एवं राज्य के संरक्षित स्थलों के विकास हेतु हरसंभव सहयोग प्रदान करेगा। उषा शर्मा ने कहा कि ऐतिहासिक पुरातात्विक महत्व के स्थलों के विकास एवं संरक्षण हेतु राज्य को ‘समेकित एक्शन प्लान’ बनाकर सभी संबंधित विभागों के साथ मिलकर समन्वित चरणबद्ध प्रयास करना चाहिए।
बैठक में बिहार के विकास आयुक्त शशिशेखर शर्मा ने कहा कि राज्य के संबंधित सभी विभाग ऐतिहासिक धरोहरों एवं पुरातात्विक विकास के स्थलों के समग्र विकास की समन्वित रूपरेखा शीघ्र तैयार कर लेंगे। राज्यपाल के प्रधान सचिव विवेक कुमार सिंह ने कहा कि भारत सरकार एवं बिहार सरकार के अधिकारियों की इस संयुक्त बैठक से निश्चय ही योजनाओं के क्रियान्वयन को गति मिलेगी।
बैठक में अधीक्षण पुरातात्विक डॉ डीएन सिन्हा ने वैशाली, कोल्हुआ, रैलिक स्तूप एवं राजा विशाल के गढ़ में उपलब्ध सुविधाओं का उल्लेख करते हुए स्थलों की के विकास के लिए अन्य सुविधाओं की आवश्यक्ता को बैठक में रखा। उन्होंने विक्रमशिला महाविहार, नालन्दा व राजगीर के स्मारक-स्थलों और सासाराम के शेरशाह सूरी के मकबरे, केसरिया स्तूप, नंदागढ़ के स्तूप व अशोक स्तंभ, रामपुरवा तथा बराबर की गुफा, मनेरशरीफ दरगाह, नागार्जुनी हिल, बकरौर की सुजाता कुटीर तथा चिरान्द (सारण) के स्थलों के संरक्षण एवं विकास पर जोर दिया। उन्होंने इन स्थलों पर सड़क-सम्पर्क विकसित करने, विद्युत की निर्बाध आपूर्ति, पेयजल, शौचालय आदि सुविधाओं के विकास, कैफेटेरिया के निर्माण कार्यों, पर्यटकीय स्थलों पर वाइ-फाइ सुविधा उपलब्ध कराने, पर्यटकीय होटल एवं कुटीरों के निर्माण की वस्तुस्थिति की जानकारी दी।
बैठक में सिविल विमानन मंत्रालय के संयुक्त सचिव अरुण कुमार ने बताया कि पटना हवाईअड्डे से हर माह लगभग 35 लाख यात्रियों का आवागमन हो रहा है। इसे देखते हुए आगामी तीन-साढ़े तीन वर्षों में नये टर्मिनल भवन का विकास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पूर्णिया, दरभंगा, पटना एवं गया के हवाई अड्डों को ‘रिजनल कनेक्टिविटी स्कीम’ के तहत वायुयान परिचालन-कम्पनियों की अभिरूचि के हिसाबन विकसित किया जा सकता है।