भाजपा ने पूर्वांचल में साधा जातीय समीकरण
वाराणसी, 16 अप्रैल (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वांचल में सियासी रण जीतने के लिए अपनी सरकार के विकास कार्य गिनाने के साथ जातीय समीकरण को भी भरपूर साधा है। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव की तरह सफलता को दोहराने और पूर्वांचल में बह रहे जातीय समीकरण के सामने दीवार बनकर भाजपा ने गठबंधन के खास प्रभाव वाले बूथों पर युवाओं की फौज उतार अपनी आक्रामक रणनीति का संकेत दे दिया है।
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दोबारा उतार कर भाजपा ने वाराणसी, पूर्वांचल सहित बिहार और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में पिछड़ों के साथ दलित और सवर्ण जातियों को साधने का ब्रह्मास्त्र चल दिया है। वाराणसी और आसपास के जिलों में भी भाजपा ने इस प्रयोग को सफलता पूर्वक साधने का मौका नहीं गंवाया है।
वाराणसी से सटे चन्दौली जिले में ब्राह्मण उम्मीदवार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ.महेन्द्र नाथ पांडेय, जौनपुर से केपी सिंह राजपूत, गाजीपुर से केन्द्रीय मंत्री मनोज सिन्हा भूमिहार, भदोही से रमेश बिन्द मल्लाह, मछली शहर सुरक्षित से बसपा के नेता रहे बीपी सरोज अनुसूजित जाति, आजमगढ़ से दिनेश यादव निरहुआ ओबीसी, बलिया से वीरेन्द्र सिंह मस्त राजपूत, अम्बेडकर नगर से मुकुट बिहारी वर्मा कुर्मी, गोरखपुर से रविकिशन ब्राह्मण, संत कबीरनगर से प्रवीण निषाद मल्लाह इसकी बानगी भर हैं।
पार्टी ने जातीय समीकरण को साधने के लिए बड़ा दांव खेला है। साथ ही पूर्वांचल में भगवा बिग्रेड ने सपा-बसपा के साथ माइंड गेम खेलकर उनको इसी मोर्चे पर मात देने के लिए सियासी शतरंज की बिसात बिछा दी है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक पिछले दो दशकों में सपा-बसपा ने जातीय आधार पर पूर्वांचल के सियासी रण में सबसे ज्यादा जड़ें जमाईं। वर्ष 2014 में मोदी लहर के बाद भाजपा ने भी अपनी जड़ें पूर्वांचल में मजबूत बना ली है। इस खेल में कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान हुआ तो बसपा सुप्रीमो मायावती खाता भी नहीं खोल पाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां के जातिगत समीकरणों को ही ध्यान में रखते हुए सभी राजनीतिक दलों ने इस पर खासा ध्यान दिया है।