भाजपा के लगभग 90 सांसदों को टिकट कटने की चिंता
नई दिल्ली,18 जून (हि.स.)। दिल्ली से सटे फरीदाबाद के सूरजकुंड के सरकारी होटल राजहंस में 14,15,16 जून को संघ व भाजपा संगठन के बड़े नेताओं की हुई बैठक में जो निर्णय हुआ, उसको लेकर भाजपा के बहुत से सांसद परेशान हो गए हैं। उनको 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना टिकट कटने का भय सताने लगा है। बैठक में शामिल हुए सूत्रों का कहना है कि संघ के संगठन मंत्रियों से अपने-अपने प्रभार क्षेत्र में पड़ने वाले सभी संसदीय सीटों की सामाजिक-राजनीतिक समीकरण का विस्तृत विवरण,सांसद के कार्यों, कमियों,क्षेत्र की समस्यों के बारे में जुलाई 2018 के अंत तक रिपोर्ट देने को कहा गया है। उसके आधार पर तय किया जाएगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में किन सांसदों को टिकट देना ठीक रहेगा, किनको नहीं। सूत्रों के अनुसार लगभग 90 सासदों के टिकट कटने की संभावना है। जिनसे जनता में नाराजगी, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप के मामले की रिपोर्ट आएगी, उनका टिकट काट कर पार्टी के दूसरे कार्यकर्ता को दिया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि सबसे अधिक टिकट राजस्थान व उ.प्र. के सांसदों का कटेगा। इन दोनों राज्यों में भाजपा को लोकसभा की अधिक सीटें हारने की आशंका है। इसलिए इन राज्यों में जिस ससंदीय सीटों पर भाजपा सांसदों के कामकाज व व्यवहार की अधिक शिकायत है, उनके टिकट काट कर अपने किसी अन्य कार्यकर्ता को दिया जाएगा। सपा-बसपा गठबंधन की संभावना के मद्देनजर भी उ.प्र. में सत्ताविरोधी लहर की काट के लिए भाजपा अन्य राज्यों से ज्यादे सांसदों का टिकट काटा जा सकता है। इस बारे में कई भाजपा सांसदों का कहना है कि व्यवहार व कार्य की रिपोर्ट के आधार पर यदि टिकट तय किया जाए तो न केवल लोकसभा बल्कि राज्यसभा के भी आधे से अधिक भाजपा सांसदों को न तो टिकट दिया जाना चाहिए, न ही संगठन व सत्ता में कोई पद। किस तरह से जातिवाद व अन्य कई कारण से राज्यसभा सांसद बनाये गये हैं , किस तरह से अन्य पार्टी के भ्रष्टाचार आरोपी व विवादित लोगों को पार्टी में लाकर टिकट दिया गया है, मंत्री बनाया गया है, यह सबके सामने है। ऐसे में जिन कार्यकर्ताओं ने जिंदगीभर नेताओं का झोला ढोया, दरी बिछाई, संगठन के लिए काम किया, वह आज यदि सांसद हैं और एक रिपोर्ट को आधार बनाकर अगले लोकसभा चुनाव में उसका टिकट काट दिया जाएगा, तो उस पर क्या बीतेगी यह सबको पता है। ऐसे में उनमें से बहुत से लोग चुप नहीं बैठेंगे। किसी अन्य पार्टी में चले जाएंगे या निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। इससे जिस सोच व योजना के तहत इनके टिकट काटे जायेंगे, वह और उल्टा पड़ जायेगा। और केवल किसी के व्यवहार व कार्य के आधार पर टिकट काटेंगे तो क्षेत्र के जातीय समीकरण, अन्य पार्टी का कौन प्रत्याशी है, उसके समीकरण में फंसकर भी मात खा सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि जिस रिपोर्ट को टिकट देने का आधार बनाया जाएगा ,उसको लिखने वाला कौन है, यह भी देखना होगा। संघ व भाजपा के बहुत से संगठन मंत्री ऐसे हैं जिन पर जातिवाद और सेवा सुविधा के प्रभाव में आकर किसी को आगे बढ़ाने, किसी को काटने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे पदाधिकारी अपनी जाति के लोगों को टिकट दिलाने, दूसरी जाति के लोगों का टिकट कटवाने के लिए विरोध में रिपोर्ट दे सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि उ.प्र. में कुछ संगठन मंत्रियों का कुछ दिन पहले तबादला किया गया है,उनमें से कई के तबादले का एक कारण यह भी है। इसलिए यदि रिपोर्ट को आधार बनाकर इतने सांसदों का टिकट काटा गया तो इस पर बहुत विवाद भी हो सकता है।