बॉलीवुड के अनकहे किस्से: गुरुदत्त की अधूरी फिल्में
अजय कुमार शर्मा
प्यासा, कागज के फूल और साहिब बीबी और गुलाम जैसी कालजयी फिल्म बनाने वाले गुरुदत्त का सृजनात्मक और व्यक्तिगत जीवन बड़ा उथल-पुथल भरा रहा। कुछ नया और विशिष्ट करने की लालसा में उन्होंने स्वयं और अपनी टीम के साथ कई फिल्मों की योजनाएं बनाईं और संतुष्ट न होने पर उन्हें अधूरा ही छोड़ कर काफी आर्थिक हानि भी उठाई।
गुरुदत्त ने 1958 में ताड़देव के सेंट्रल स्टूडियो के ध्वनि मंच को किराये पर लिया और वहीं से अपने प्रोडक्शन का काम शुरू किया। काफी पहले से उनका मन एक बांग्ला फिल्म बनाने का था। उन्होंने इस सिलसिले में फिल्म गौरी पर काम करना आरंभ किया। फिल्म की कहानी वर्ष 1943 में बनी हिंदी फिल्म गौरी पर आधारित थी, जिसका निर्देशन केदार शर्मा ने किया था। फिल्म की मुख्य भूमिका में उन्होंने अपनी पत्नी गीता दत्त को रखा। वे इस फिल्म को बांग्ला और अंग्रेजी भाषाओं में बनाने की इच्छा रखते थे। फिल्म की कहानी कलकत्ता के एक सफल मूर्तिकार की कहानी थी जो दुर्गा पूजा के समय दुर्गा की मूर्तियां बनाता है। उस शिल्पकार के माता-पिता उस पर शादी के लिए जोर दे रहे हैं, लेकिन वह अपनी कम आमदनी के कारण उन्हें मना करता रहता है।
एक साल उसकी अच्छी कमाई को देखकर उसके दोस्त जश्न के नाम पर उसे पीने के लिए मजबूर तो करते ही हैं, उसे वेश्याओं के मुहल्ले में भी ले जाते हैं। वहां वह एक युवा वेश्या जिसमें उसे दुर्गा का रूप नजर आता है, को वेश्यागृह की मालकिन से खरीदकर शादी कर लेता है। लड़के के माता-पिता भी उसे स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन सच्चाई पता लगने पर लड़की के साथ दुर्व्यवहार करने लगते हैं। पति परेशान न हो इसलिए लड़की घर छोड़कर चली जाती है। मूर्तिकार उसे पागलों की तरह ढूंढ़ने की काफी कोशिश करता है, परंतु विफल रहता है। कुछ साल बाद जब वह दुर्गा मूर्ति को गंगा में विसर्जित करने जाता है तो अचानक उसकी नजर श्मशान में आए एक शव पर पड़ती है। वह देखता है कि यह तो उसकी पत्नी का ही शव है। तब वह गंगा में गहरे चला जाता है।
गौरी फिल्म को शूट करने के लिए गुरुदत्त कोलकाता (तब कलकत्ता) गए। एस.डी. बर्मन ने इस फिल्म के लिए दो गानों का संगीत बनाया और वे रिकॉर्ड भी किए गए, लेकिन तब तक गीता और गुरुदत्त के संबंध काफी खराब हो चुके थे। दोनों का एक साथ काम करना असंभव सा हो गया था। आर्थिक घाटे के बावजूद गुरुदत्त ने इस फिल्म का निर्माण रोक दिया। अगर वह गौरी पूरी करते तो कागज के फूल के बदले यह भारत की पहली सिनेमास्कोप फिल्म होती।
1959 में गुरुदत्त ने अपने सहायक निरंजन को राज नामक फिल्म निर्देशन का मौका दिया। यह फिल्म विक्की कोलिनस की फिल्म ‘वुमेन इन व्हाइट’ पर आधारित थी। इस फिल्म की मुख्य भूमिका में सुनील दत्त एक मिलिट्री डॉक्टर के रूप में अभिनय कर रहे थे। इस फिल्म के अन्य किरदार थे वहीदा रहमान (दो बहनों के रोल में) तथा कुमकुम (तीसरी बहन के रोल में)। इसमें एस. नाजिर खलनायक मामा के रोल में थे। कुछ समय बाद सुनील दत्त को हटाकर स्वयं गुरुदत्त ने मुख्य भूमिका निभानी शुरू की। इस फिल्म के कुछ दृश्यों को शिमला के बर्फीले पहाड़ों पर फिल्माया गया। आर.डी. बर्मन ने दो गाने भी रिकॉर्ड किए। इस फिल्म की पांच या छह रील शूट करके उनका संपादन भी किया गया था, लेकिन गुरुदत्त को मजा नहीं आया और फिल्म बंद कर दी गई। निरंजन से ही गुरुदत्त एक और फिल्म “मोती की मासी” निर्देशित करवाना चाहते थे। यह एक हास्य फिल्म थी जिसमें तनुजा तथा सलीम खान (सलमान के पिता) काम करने वाले थे।
गुरुदत्त ने एक और फिल्म जिसका शीर्षक ‘प्रोफेसर’ रखा गया था पर काम शुरू किया था। ‘प्यासा’ फिल्म की बुकलेट पर इस फिल्म का विज्ञापन दिया गया था और इसकी प्रचार सामग्री पर लिखा गया था- गुरुदत्त फिल्म प्राइवेट लिमिटेड की अगली पेशकश ‘प्रोफेसर’। कलाकार किशोर एवं वहीदा रहमान, निर्माता- गुरुदत्त, निर्देशक- शशि भूषण। यह फिल्म उस व्यक्ति की कहानी है, जो पढ़ाने के लिए अभी छोटा है, लेकिन प्यार के लिए बूढ़ा है। गुरुदत्त ने अबरार अल्वी से निर्देशन करने का प्रस्ताव किया, लेकिन अल्वी ने उसे स्वीकार नहीं किया।
गुरुदत्त के कैमरामैन वी.के. मूर्ति ने नसरीन मुन्नी कबीर को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि कुछ समय तक गुरुदत्त एक कहानी को लेकर फिल्म बनाने पर विचार करते रहे। इसके आधार पर बाद में ‘बीस साल बाद’ बनी, लेकिन उन्होंने उस समय यह विचार त्याग दिया। वर्ष 1961 में बंगला फिल्म का एक दृश्य फिल्माया गया, जिसका नाम “एक टुकु छुआ” था, लेकिन इसे भी छोड़ दिया गया।
चलते चलते: गुरुदत्त ने एम. सादिक के निर्देशन में गुलशन नंदा के उपन्यास ‘नील कमल’ को फिल्म के रूप में प्रस्तुत करने की योजना बनाई थी। इस फिल्म के लिए वह अभिनेता विश्वजीत तथा अभिनेत्री नंदा को मुख्य भूमिका में लेना चाहते थे, लेकिन गुरुदत्त ने फिल्म की शूटिंग के एक दिन पहले इस प्रोडक्शन को रद्द कर दिया। गुरुदत्त ने अपने भाई आत्माराम से वादा किया कि वे एक हास्य फिल्म का निर्माण करेंगे। ‘इश इश इश’ नाम की इस फिल्म की अपने भाई के निर्देशन में चार दिन शूटिंग भी करवाई, लेकिन बाद में इसे भी रद्द कर दिया।
(लेखक- राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)