बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र: लोजपा का मुकाबला कांग्रेस या भाकपा से होगा
बेगूसराय,19 फरवरी(हि.स.)। लोकसभा चुनाव का बिगुल अभी नहीं बजा है। लेकिन अंदर ही अंदर तमाम राजनीतिक दलों ने चुनाव की तैयारी तेज कर दी है। इस बार के चुनाव में यहां भाजपा के बदले लोजपा लड़ेगी। मुकाबले में कांग्रेस होगी या भाकपा । राजग में सीट तय होने और महागठबंधन में सीटों के बंटवारे के बाद ही तस्वीर साफ होगी। वर्तमान सत्र में बेगूसराय लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा था, जो कि सांसद डॉ भोला सिंह के निधन से खाली पड़ी है। चुनावी गणित के ख्याल से बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में कई उतार-चढ़ाव दिखे हैं। इस सीट पर कभी कांग्रेस, कभी वामपंथ और समाजवादियों का कब्जा रहते आया है। बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र का गठन 1952 में हुआ था। लेकिन 1977 में खगड़िया जिला के अलौली विधान सभा को मिलाकर बलिया लोकसभा का भी गठन किया गया। जिसमें खगड़िया जिला का अलौली (सु), बलिया, बखरी (सु), चेरिया वरियारपुर, बरौनी और बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र को शामिल किया गया। जबकि बेगूसराय लोकसभा में बेगूसराय, मटिहानी, लखीसराय, सिकंदरा, बरबीघा और शेखपुरा विधानसभा क्षेत्र था। इस सीट का परिणाम हमेशा अप्रत्याशित ही रहा। यहां से क्षेत्रीय प्रत्याशी के बदले बाहरी का बोलबाला रहा। 1952, 1957 और 1962 में कांग्रेस प्रत्याशी मथुरा प्रसाद मिश्र के कब्जे में रहा था। लेकिन समय अंतराल के बाद सब कुछ बदलता गया। 1967 के चुनाव में सीपीआई के प्रत्याशी योगेंद्र शर्मा को जीत मिली। लेकिन 1972 के चुनाव में कांग्रेस के श्याम नंदन मिश्र ने बाजी मारी। 1977 में यहां के लोगों ने जनता पार्टी को एक मौका दिया और श्री मिश्र ने कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर इतिहास रच दिया। लेकिन, 1980 में कृष्णा शाही ने कांग्रेस की झोली में यह सीट वापस दिलवा दिया। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में एक बार फिर कृष्णा शाही विजयी रहीं। 1989 में किसान नेता देवीलाल के आह्वान पर वीपी सिंह की लहर में जनता दल के प्रत्याशी ललित विजय सिंह ने परचम लहराया। लेकिन तीन साल बाद राजीव गांधी की हत्या के बाद की लहर में फिर से कृष्णा शाही ने यह सीट कांग्रेस को वापस दिला दी। 1996 के चुनाव में अप्रत्याशित परिणाम आया। भाकपा प्रत्याशी रमेन्द्र कुमार के चुनाव चिन्ह में गड़बड़ी हुई। जिसके बाद उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सेव चुनाव चिन्ह पर जीत मिली। 1998 और 1999 में कांग्रेस के राजो सिंह ने बाजी मारी। जबकि 2004 में राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने जीत का सेहरा पहना। इसके बाद एक बड़ा बदलाव हुआ और बेगूसराय जिला के सातों विधानसभा सीट को मिलाकर बलिया को विलोपित करते हुए बेगूसराय लोकसभा का गठन हुआ। जिसके बाद 2009 के चुनाव में जदयू के उम्मीदवार डॉ मोनाजिर हसन ने एनडीए को जीत दिलाई। इसके बाद 2014 में बेगूसराय से सात बार विधायक रह चुके डॉ भोला सिंह ने भाजपा का खाता खोला। बात बलिया लोकसभा क्षेत्र की करें तो 1977 में बलिया का गठन हुआ और रामजीवन सिंह जनता पार्टी के टिकट पर पहले सांसद बने। फिर 1980 और 1984 में इस सीट पर कांग्रेस की चंद्रभानु देवी ने जीत का सेहरा पहना। जबकि 1989 एवं 1991 में सूरज नारायण सिंह ने भाकपा को यहां से जीत दिलाकर इसे मास्को की संज्ञा दिलाई। इसी का प्रतिफल था कि 1996 में भी भाकपा के टिकट पर शत्रुघ्न प्रसाद सिंह चुनाव जीते। इसके बाद 1998 के चुनाव में राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे गैर राजनीतिक राजवंशों महतों ने जीत दर्ज की। 1990 में रामजीवन सिंह एक बार फिर जदयू के टिकट पर सांसद बने। जबकि 2004 में राजद समर्थित लोजपा प्रत्याशी सूरजभान सिंह ने सिटिंग एमपी रामजीवन सिंह और पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को पराजित कर संसद में दखल दे दी। इसके बाद यह सीट विलोपित कर दिया गया। अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव सामने है। ऐसे में कयासों का बाजार गर्म है। अगर यह सीट एनडीए के तहत भाजपा के हिस्से में जाता है तो गिरिराज सिंह, एसएस अहलूवालिया, राम लखन सिंह, रजनीश कुमार एवं कुंदन कुमार आदि प्रबल दावेदार की श्रेणी में हैं। वही संभावना है कि यह सीट लोजपा के खाते में जाएगी और मुंगेर सांसद वीणा देवी प्रत्याशी होंगी। महागठबंधन के तरफ से पिछले चुनाव में रनर रहे तथा लगातार क्रियाशील राजद के तनवीर हसन उम्मीदवार हो सकते हैं। हालांकि भाकपा ने जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के नाम की घोषणा कर दी है। अगर कांग्रेस के हिस्से में सीट जाती है तो नगर विधायक अमिता भूषण प्रत्याशी हो सकती हैं। फिलहाल कन्हैया के नाम की घोषणा से एनडीए भी सकते में है। यहां सशक्त प्रत्याशी की तलाश की जा रही है जो कि देश भर में चर्चित हो सके कन्हैया को करारी शिकस्त दे सके। वामपंथ ने एक बार फिर अपने इस मास्को पर कब्जा जमाने के लिए बहुत ही सोच समझकर कन्हैया को चुनाव में मैदान में उतारने की तैयारी की है। वहीं, एनडीए अपने शासनकाल के दौरान किए गए विकास कार्यों को भुनाएगी। 2014 डॉ भोला सिंह के सांसद बनने तथा संसद में लगातार सवाल उठाने, मंत्रालयों को चिट्ठी लिखने के कारण बेगूसराय में विकास की समग्र गंगा बही है। सिर्फ बेगूसराय को 30 हजार करोड़ से अधिक की योजनाओं का लाभ मिला है। फिलहाल राजनीति में कहना कुछ भी कठिन है। क्या होगा यह तो अंतिम समय ही बताएगा।
कौन-कब बने बेगूसराय के सांसद:-
1952- मथुरा प्रसाद मिश्र (कांग्रेस)
1957- मथुरा प्रसाद मिश्र (कांग्रेस)
1962- मथुरा प्रसाद मिश्र (कांग्रेस)
1967- योगेन्द्र शर्मा (सीपीआई)
1971- श्याम नंदन मिश्र (कांग्रेस)
1977- श्यामनंदन मिश्र (जनता पार्टी)
1980- कृष्णा शाही (कांग्रेस)
1984- कृष्णा शाही (कांग्रेस)
1989- ललित विजय सिंह (जनता दल)
1991- कृष्णा शाही (कांग्रेस)
1996- रमेन्द्र कुमार (भाजपा समर्थित निर्दलीय)
1998- राजो सिंह (कांग्रेस)
1999- राजो सिंह (कांग्रेस)
2004- राजीव रंजन सिंह (जदयू)
2009- मोनाजिर हसन (जदयू)
2014- डॉ भोला सिंह (भाजपा)