बेगूसराय: जनता कल तय करेगी ‘कौन जायेगा दिल्ली’

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बेगूसराय,28अप्रैल(हि.स.)। देश की हॉट लोकसभा सीटों में से एक बेगूसराय में चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद घर-घर सम्पर्क जोरों पर है। अब 19 लाख 58 हजार 382 मतदाताओं की बारी आ गई है कि वे सोमवार को किसके प्रति अपना विश्वास जताते हैं। 2014 में 60.88 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस वर्ष जिला प्रशासन के साथ विभिन्न संगठनों द्वारा व्यापक पैमाने पर मतदाता जागरूकता का कार्यक्रम आयोजित कर मतदान के लिए लोगों को प्रेरित किया गया है। इस चुनाव में सभी जाति, दल, संप्रदाय, धर्म, गठबंधन, समीकरण से ऊपर उठकर तीन तरह के अलग माहौल तैयार हो गये हैं। बेगूसराय में तीन विचारों की लड़ाई है। देखना यह है कि सोमवार को जनता किस विचार को अधिक पसंद करती है। इस लड़ाई में भाजपा ने लंबे समय से राजनीति का अनुभव रखने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को मैदान में उतार दिया जबकि भाकपा ने चर्चित छात्र नेता कन्हैया कुमार के नाम की घोषणा सबसे पहले की थी। राजद में अपने 2014 के रनर तनवीर हसन पर विश्वास जताया है। सभी ने प्रचार के एक से एक तामझाम किए। दर्जनभर हेलिकॉप्टर उतरे, कई तरह के समीकरण बनते और बिगड़ते रहे। इन सबके बीच भूमिहार बहुल मानी जाने वाली बेगूसराय लोकसभा सीट पर भूमिहारों की स्थिति गुरु गोविंद दोऊ खड़े वाली हो गई। शुरू से ही बेगूसराय के सांसद का फैसला भूमिहार करते रहे हैं लेकिन इस वर्ष मुस्लिमों का मत निर्णायक माना जा रहा है। 1952 में देश के पहले चुनाव के समय गठित होने से अब तक की बात करें तो चुनावी गणित के ख्याल से बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। यहां मतदान के पूर्व की रात्रि में अचानक समीकरण भी बदलता रहा है जिसके कारण यहां का चुनाव परिणाम अक्सर अप्रत्याशित रहता आया। कभी कांग्रेस, कभी वामपंथ और समाजवादियों के कब्जा वाले बेगूसराय में क्षेत्रीय प्रत्याशी के बदले बाहरी का ही बोलबाला
रहा है। 1952, 1957 और 1962 के चुनाव में सीट कांग्रेस के मथुरा प्रसाद मिश्रा के कब्जे में रही लेकिन समय अंतराल के साथ सब कुछ बदलता चला गया। 1967 के चुनाव में सीपीआई के योगेंद्र शर्मा को जीत का सेहरा मिला। 1971 के चुनाव में कांग्रेस के श्याम नंदन मिश्रा ने बाजी मार ली। 1977 में कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे श्याम नंदन मिश्रा को लोगों ने जनता पार्टी को एक मौका दिया था। लेकिन 1980 में कृष्णा शाही ने यह सीट कांग्रेस को वापस दिलवा दी। 1984 में भी कृष्णा शाही ने यहां की कुर्सी नहीं छोड़ी जबकि 1989 में किसान नेता देवीलाल के आह्वान पर वीपी सिंह की लहर में जनता दल प्रत्याशी ललित विजय सिंह ने परचम लहराया। तीन साल बाद ही कृष्णा शाही ने फिर यह सीट कांग्रेस को वापस दिलवा दी। 1996 के चुनाव में काफी अप्रत्याशित परिणाम आया। सीपीआई के प्रत्याशी रमेंद्र कुमार को चुनाव चिन्ह मिलने में गड़बड़ी के कारण निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ना पड़ा और उन्होंने सेव छाप पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1998 और 1999 में कांग्रेस के राजो सिंह ने बेगूसराय पर कब्जा कर लिया। 2004 में जदयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने चुनाव जीतकर सबको हैरान कर दिया। इसके बाद 2009 के चुनाव में जदयू के मोनाजिर हसन ने अप्रत्याशित रूप से इस सीट पर जीत का सेहरा पहना। 2014 में बेगूसराय के सात बार विधायक, सरकार में मंत्री और विधानसभा के उपाध्यक्ष रह चुके डॉ भोला सिंह ने यहां पहली बार भारतीय जनता पार्टी का खाता खोला था।


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