बिहार में अति पिछड़े प्रत्याशियों में से छह के जीतने की संभावना

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पटना , 15 मई (हि.स.) । बिहार में जातिगत मतों के आधार पर केवल यादव , भूमिहार ,ब्राह्मण, राजपूत , कायस्थ , मुसलमान , कुशवाहा , कुरमी की ही  दावेदारी अब  नहीं चलेगी  क्योंकि अति पिछड़ी जातियां  भी अब जागरूक हो गई हैं। और संगठित होकर अपना हक मांगने लगी हैं।  जिसके चलते प्रमुख राजनीतिक दलों को मजबूर होकर  2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य पहली बार अति पिछड़ी जाति के 12  लोगों को टिकट देना पड़ा है। यदि उनकी नाराजगी का भय नहीं होता , उनके द्वारा एकजुट  होकर अपने प्रभाव वाले संसदीय क्षेत्र में प्रभावशाली पार्टी के प्रत्याशी को हरा दिये जाने का भय नहीं होता ,तो इस बार भी  उनको टिकट नहीं दिया गया होता। अति पिछड़ी जाति को टिकट दिये जाने से उस जाति के लोगों का रूझान  जिस पार्टी ने टिकट दिया है ,उसकी तरफदारी वाला हो जाता है ।जिसका असर अन्य सीटों पर भी पड़ता है। इन 12 अति पिछड़ी जाति के प्रत्याशियों में से 6 प्रत्याशियों के जीतने  की संभावना जताई जा रही है। भविष्य में राजनीति व सत्ता में हिस्सेदारी की मांग को लेकर इनका दबाव और बढ़ने वाला है।

2019 के लोकसभा चुनाव में  नीतीश कुमार की पार्टी जनता  दल यूनाइटेड (जदयू) ने सबसे अधिक 5 अति पिछड़ों को टिकट दिया है। भाजपा के साथ गठबंधन में जदयू को 17 लोकसभा सीटें मिली हैं। उसमें से 5 पर अति पिछड़ी जाति के  प्रत्याशी खड़े किये हैं। ये हैं – सीतामढ़ी से तेली जाति के सुनील कुमार पिंटू( कई राज्यों में तेली पिछड़ा वर्ग में तथा कई राज्यों में अगड़ी जाति में है),सुपौल से केवट जाति के दिलकेश्वर कामत, भागलपुर से गंगोता जाति के अजय मंडल,जहानाबाद से चंन्द्रवंशी जाति के चंद्रेश्वर प्रसाद , झंझारपुर से धानुक जाति के आरपी मंडल को प्रत्याशी बनाया है।  इसी तरह भाजपा ने  अति पिछड़ी जाति के 2 प्रत्याशी खड़ा किया है।मुजफ्फरपुर से निषाद जाति के अजय निषाद को, अररिया से गंगई जाति के प्रदीप सिंह को। राजद ने भागलपुर से गंगोता जाति के शैलेश कुमार को खड़ा किया है। हम पार्टी ने औरंगाबाद से दांगी जाति के उपेन्द्र प्रसाद को तथा नालंदा से चंद्रवंशी ( कहार) जाति के अशोक आजाद को प्रत्याशी बनाया है। वीआईपी पार्टी ने खगड़िया से मल्लाह जाति के मुकेश सहनी तथा मुजफ्फरपुर से मल्लाह जाति के  राजभूषण चौधरी को उम्मीदवार बनाया है।

 जहानाबादः

जातियों के आधार पर टिकट देने की बनती जा रही मजबूरी  की वजह यह है कि कई संसदीय क्षेत्रों की पहचान जातियों की पहचान बन गई है। जैसे औरंगाबाद संसदीय सीट से कोई राजपूत उम्मीदवार ही जीतेगा। इसी तरह से जहानाबाद से कोई भूमिहार या यादव प्रत्याशी ही जीतेगा। ऐसे संसदीय क्षेत्रों में यदि कोई प्रमुख पार्टी वहां की प्रभावशाली या बहुमत वाली  जाति के व्यक्ति को प्रत्याशी नहीं बनाती है ,तो प्रभावशाली जाति या बहुमत वाली जाति के लोग उसे हरवा देते हैं।

औरंगाबाद में जदयू ने राजपूत प्रत्याशी खड़ा किया है। उसके उल्टा महागठबंधन के हम पार्टी के दांगी जाति के उपेन्द्र कुशवाहा वहां से प्रत्याशी हैं।जहानाबाद में राजद ने एक यादव को प्रत्याशी बनाया है जबकि जदयू ने एक अतिपिछड़ी जाति चन्द्रवंशी ( कहार) को प्रत्याशी बनाया है।

जदयू ने जहानाबाद  में भूमिहार को टिकट नहीं देकर, चन्द्रवंशी ( कहार) चंद्रेश्वर प्रसाद को प्रत्याशी बना दिया है।  इसको लेकर इस संसदीय क्षेत्र के भूमिहार  लोग बहुत नाराज हैं।वहां से अरूण कुमार (भूमिहार) निर्दलीय  खड़े हैं। वह पहले जदयू से सांसद थे। भूमिहार को टिकट नहीं मिलने से यहां के भूमिहार कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ने हमलोगों की जाति की पहचान नष्ट कर दी।हमलोगों की संसदीय क्षेत्र की पहचान ये खत्म कर रहे हैं, तो हम लोग राजद के प्रत्याशी  सुरेन्द्र यादव को ही जितवा देंगे। दूसरी तरफ भूमिहार जाति के प्रसिद्ध नेता रामजतन सिन्हा जो कुछ माह पहले जदयू में शामिल हुए हैं और अपने लड़के को आगामी विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाना चाहते हैं , कैम्प किये हुए हैं। वह भूमिहारों से कह रहे हैं कि  जदयू प्रत्याशी चन्द्रवंशी( कहार) चंद्रेश्वर प्रसाद को वोट दो, अभी राजद प्रत्याशी (सुरेन्द्र यादव) को हराओ । बाद में हम निपट लेंगे।

 इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार व “जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान”   के निदेशक श्रीकांत का कहना है कि औरंगाबाद और जहानाबाद दोनों ही संसदीय सीटों पर यादव जाति का एक हिस्सा यादव को वोट देता है तो इससे साबित होता है कि जाति एक स्थिर ईकाई नहीं है। गतिशील ईकाई है।जहानाबाद में यदि भूमिहार वोट बंट जाता है , कुछ  भूमिहार  मतदाता यादव प्रत्याशी को वोट देते हैं , कुछ भूमिहार मतदाता चन्द्रवंशी ( कहार) को वोट देते हैं ।  ऐसे में एक भूमिहार जो निर्दलीय खड़ा है उसको भूमिहार का वोट नहीं पड़ेगा और वह हार जायेगा। इस तरह साबित होता है  कि स्थानीय स्तर पर जाति कितनी गतिशील ईकाई है।

आरा व बेगूसराय माडलः

श्रीकांत का कहना है कि बेगूसराय में भूमिहारों का बहुसंख्यक वोट भाजपा प्रत्याशी गिरिराज सिंह (भूमिहार )को गया है। वहां जातिगत पहचान फैक्टर है जिसके चलते भूमिहारों का ज्यादा वोट उनको गया है। दूसरी तरफ भाकपा प्रत्याशी  कन्हैया कुमार(भूमिहार) के लिए राजद का मुस्लिम-यादव एकजुट जाति फैक्टर जो बहुत मजबूत माना जाता रहा है, टूट गया ।  कन्हैया कुमार  को मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा वोट मिलने की बात कही जा रही है। यहां भी यह साबित होता है कि जाति व धर्म स्थिर  ईकाई नहीं है।

आरा संसदीय क्षेत्र में महागठबंधन के प्रत्याशी सीपीआई एमएल के राजू यादव हैं।राजद ने उसे सपोर्ट कर दिया है। इससे महागठबंधन के इस प्रत्याशी के वोट में छलांग लग जायेगी। और जितनी छोटी-छोटी जातियां हैं , जैसे पासवान ( जो पूरे बिहार में रामविलास पासवान को वोट देती रही हैं) आरा में इस बार महागठबंधन के प्रत्याशी की तरफ जा रहे हैं। कुछ पासवान मतदाता विरोध कर रहे थे तो उनको उनकी जाति वालों ने ही पीट दिया। पूरे देश में बनिया लोग भाजपा को वोट देते हैं , लेकिन  आरा संसदीय क्षेत्र में  बनिया लोग इस बार सीपीआई एमएल को वोट दे रहे हैं। श्रीकांत का कहना है कि यदि इस माहौल में भी महागठबंधन के प्रत्याशी नहीं जीतते हैं तो समझिये आने वाले दिनों में कई सालों तक ये नहीं जीतनेवाले हैं। इसलिए 2019 का लोकसभा चुनाव और  आगामी राज्य विधानसभा  चुनाव कई मायने में बिहार की राजनीतिक , जातीय , मतदानी समीकरण बदलने वाला होगा।  जातियों के मठाधीशों को झटका लगेगा।

इस मुद्दे पर पूर्व सांसद व गांधीवादी नेता प्रो.रामजी भाई का कहना है कि बिहार में जातिवाद की जड़ पहले से कमजोर हुई है , लेकिन उतनी नहीं जितनी होनी चाहिए। गांधी व जेपी ने अपने आंदोलन की मार्फत इसे खत्म करने की बहुत कोशिश की थी लेकिन गांधी व जेपी का नाम लेकर राजनीति कर रहे आज के हुक्मरान केवल उनको बेच रहे हैं। बाकी वे वह सब काम कर रहे हैं जिसे खत्म करने के लिए गांधी व जेपी ने जीवनभर संघर्ष किया । शिक्षा व सूचना संचार ने अब अति पिछड़ों , गरीबों, दलितों की भी आंखे खोल दी हैं जिसके चलते वे अब संगठित होने लगे हैं और अपना हक मांगने लगे हैं। बिहार में भी यह शुरू हो गया है। इसी के चलते इस लोकसभा चुनाव में 12 अतिपिछड़ों को  प्रत्याशी बनाया गया है। जिनमें से लगभग 6 के जीतने की संभावना है। आगे इन जातियों में जागरूकता व एकजुटता और बढ़नी ही है जिसके कारण इस राज्य का भी राजनीतिक, जातीय व वोट देने का समीकरण बहुत बदल जायेगा।


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