बिहार की औद्योगिक राजधानी में हो रही है भाजपा और भाकपा में जोरदार टक्कर

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बेगूसराय,09अप्रैल(हि.स.)। गंगा की गोद में बसे पांच नदियों वाले, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि, बिहार केसरी श्री कृष्ण सिंह की कर्मभूमि एवं बिहार की औद्योगिक राजधानी बेगूसराय का चुनाव शुरू से ही चर्चित रहा है। लेकिन इस वर्ष का आम चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और केन्द्र बिंदु में आ गया है। यहां की दो धुरियों के बीच की टक्कर राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी चकल्लस में शबाव पर है। एक ओर देश की सीमा से बाहर भी भारत के राष्ट्रवादी चेहरा के रूप में चर्चित गिरिराज सिंह हैं तो दूसरी ओर हैं जेएनयू प्रकरण के बाद देश भर में चर्चित भाकपा प्रत्याशी कन्हैया कुमार। चुनाव को त्रिकोणीय मोड़ देने के लिए 2014 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे राजद नेता महागठबंधन के प्रत्याशी तनवीर हसन जोर आजमाइश कर रहे हैं। लेकिन वर्तमान हालत में यहां मामला सीधा आमने-सामने का गिरिराज सिंह के साथ कन्हैया का ही दिख रहा है। हालांकि भूमिहार बहुल इस लोकसभा क्षेत्र में दो भूमिहार गिरिराज सिंह और कन्हैया के बीच की टक्कर में माय समीकरण के सहारे तनवीर हसन जीत की माला पहन लें तो कोई आश्चर्य की भी बात नहीं होगी। एनडीए की टीम के साथ गिरिराज सिंह और टीम कन्हैया के साथ कन्हैया एक-दूसरे पर शब्द बाण चला रहे हैं। चुनावी सभाओं में एक दूसरे पर जमकर प्रहार के साथ टि्वटर एवं फेसबुक समेत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी जोरदार टक्कर चल रही है। गिरिराज सिंह के समर्थक ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ के जोरदार नारे के साथ ‘जय गिरिराज-तय गिरिराज’ और ‘नई सुबह की नई आवाज जय गिरिराज तय गिरिराज’ हैश टैग से कैंपन शुरू कर चुके हैं। जदयू, भाजपा और लोजपा के तमाम नेता रणभूमि में जमीनी स्तर से प्रचार अभियान में जुटे हैं। एनडीए को एकजुट दिखाया जा रहा है लेकिन इसमें भाजपा एकजुट नहीं दिख रही है। भाजपा का एक धड़ा यानी राष्ट्रीय मंत्री रजनीश सिंह का खेमा अब तक चुनाव अभियान में कहीं नजर नहीं आ रहा है। नामांकन जुलूस के बाद डिप्टी सीएम समेत एनडीए के वरिष्ठ नेताओं की पहली सभा में भी रजनीश नहीं दिखे जो चर्चा का विषय बना हुआ है। हलांकि, कहा जा रहा है कि सिक्किम का प्रभारी होने के कारण रजनीश वहां व्यस्त हैं। जदयू के भी कुछ असंतुष्ट कार्यकर्ता कन्हैया कुमार एवं तनवीर हसन के पाले में चले गए हैं। इधर, गिरिराज सिंह पूरे दमखम से इस चर्चित लोकसभा सीट पर दोबारा कमल खिलाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। कठिन परिश्रम के बाद 2014 में भोला बाबू द्वारा इस सीट पर पहली बार खिलाए गए कमल को किसी भी हालत में मुरझाने देना नहीं चाहते हैं। इसके लिए उन्हें कार्यकर्ताओं का भी अपार समर्थन मिल रहा है लेकिन यहां उन्हें एनडीए से असंतुष्ट और कन्हैया के साथ महागठबंधन से भी जूझना पड़ रहा है। दूसरी ओर छात्र नेता कन्हैया को सीपीआई एवं दोनों गठबंधन एनडीए तथा यूपीए के युवाओं का भी साथ मिल रहा है। विगत एक साल पूर्व से ही कन्हैया द्वारा शुरू किए गए चुनावी अभियान की कड़ी का असर दिखने लगा है। राजद का माय भी बिखर रहा है। मुस्लिम के साथ यादव का भी कुछ समर्थन कन्हैया की ओर मुड़ने लगा है। वहीं, राजद के प्रत्याशी तनवीर हसन बेगूसराय के महागठबंधन के पांचों विधायक के साथ दिन-रात एक कर लोगों को अपनी ओर रिझाने में लगे हैं। उन्हें सामाजिक न्याय, शोषितों, दलितों का पाठ पढ़ाया जा रहा है। फिलहाल सब कुछ बेगूसराय के करीब साढ़े 19 लाख वोटर के हाथ में हैै। देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है। जनता किसके पक्ष में 29 तारीख को ईवीएम का अधिक बटन दबाती है।


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