प्राकृतिक खेती को जन आंदोलन बनायें राज्य सरकारें : प्रधानमंत्री मोदी
नई दिल्ली, 16 दिसंबर (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को खेती को रसायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हमें खेती को केमिकल लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला में लाना होगा। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में प्रकृति के अनुरूप जीवनशैली अपनाने की दिशा में भारत विश्व का नेतृत्व करने वाला है।
प्रधानमंत्री ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गुजरात के आणंद में कृषि और खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन सत्र के दौरान किसानों को संबोधित किया। सम्मेलन में तकनीक के माध्यम से देश के लगभग 8 करोड़ किसान जुड़े हैं।
प्रधानमंत्री ने देश की सभी राज्य सरकारों से प्राकृतिक खेती को जनआंदोलन बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में मां भारती की धरा को रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त करने का संकल्प लें। उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक पंचायत में कम से कम एक गांव प्राकृतिक खेती से जरूर जुड़े। उन्होंने प्राकृतिक खेती में स्वदेशी गाय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विशेषज्ञों के अनुसार गाय का गोबर फसल सुरक्षा के लिए समाधान प्रदान कर सकता है और मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ा सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भ्रम है कि बिना केमिकल के फसल अच्छी नहीं हो सकती। सच्चाई इससे उलट है और मानवता का इतिहास इसका साक्षी रहा है। उन्होंने कहा कि यह सही है कि केमिकल और फर्टिलाइजर ने हरित क्रांति में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करते रहना होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती अधिक फायदेमंद है। इसका सबसे ज्यादा लाभ छोटे किसानों को होगा जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम भूमि है। इन किसानों का ज्यादा खर्चा केमिकल फर्टिलाइजर पर होता है। ऐसे में प्राकृतिक खेती अपनाने से देश के 80 प्रतिशत किसानों की स्थिति बेहतर होगी।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में पराली जलाने अर्थात खेतों में कृषि अवशेष जलाने के चलन को पूरी तरह से गलत बताया। उन्होंने कहा कि इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम होती जाती है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का समय बैक टू बेसिक अर्थात अपने प्राचीन, सरल और प्रमाणिक उपायों को अपना रही है। उन्होंने कहा कि हम जितना अपनी जड़ों को सींचते हैं पौधों का उतना ही विकास होता है।
भारत के प्राचीन कृषि विज्ञान सीखने का संदेश देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके लिए हमें प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के फ्रेम में ढालना होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे पहले की खेती से जुड़ी समस्याएं विकराल हो जाएं समय रहते बड़े कदम उठाना जरूरी है। हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। उन्होंने कहा कि प्रकृति की प्रयोगशाला भी पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है। आज दुनिया आधुनिकता की दिशा में अपने मूल से जुड़ रही है। हम जितना अपनी जड़ों को सींचेंगे, उतना ही वनस्पति का विकास होगा
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद के दशकों में जिस तरह देश में खेती हुई, जिस दिशा में बढ़ी, वो हम सब हम सबने बहुत बारीकी से देखा है। अब आजादी के 100वें वर्ष तक का हमारा सफर नई आवश्यकताओं, नई चुनौतियों के अनुसार अपनी खेती को ढालने का है।
उन्होंने कहा कि पिछले 6-7 साल में बीज से लेकर बाजार तक, किसान की आय को बढ़ाने के लिए एक के बाद एक अनेक कदम उठाए गए हैं। मिट्टी की जांच से लेकर नए बीज तक, पीएम किसान सम्मान निधि से लेकर लागत का डेढ़ गुणा एमएसपी तक, सिंचाई के सशक्त नेटवर्क से लेकर किसान रेल तक अनेक कदम उठाए गए हैं।
गुजरात सरकार ने प्राकृतिक खेती पर तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन 14 से 16 दिसंबर तक आयोजित किया था। इसमें राज्यों में आईसीएआर, कृषि विज्ञान केंद्रों और आत्मा (कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी) नेटवर्क के केंद्रीय संस्थानों के माध्यम से जुड़े किसानों के अलावा 5000 से अधिक किसानों ने भाग लिया था।
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री अमित शाह, नरेंद्र सिंह तोमर, गुजरात के राज्यपाल, गुजरात और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री उपस्थित थे।