पुलिस कमिश्नर के लिए धरना देने वाली ममता की क्या है रणनीति!
कोलकाता, 05 फरवरी (हि.स.)। भारत के इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ जब एक आरोपित अधिकारी को बचाने के लिए मुख्यमंत्री धरने पर बैठा हो और देश की संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ भी युद्ध छेड़ने की चेतावनी दे रहा हो। पिछले तीन दिनों से कोलकाता की सड़कों पर कुछ ऐसी ही स्थिती बनी हुई है। पश्चिम बंगाल के 20 लाख से अधिक गरीब तबके के लोगों की अरबों रुपये की धनराशि लूटने वाली चिटफंड कंपनियों के संलिप्त साक्ष्यों को मिटाने के आरोपित कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार के बचाव में ममता बनर्जी रविवार रात से धरने पर बैठी हुई हैं। आज तीसरा दिन है और उनका धरना जारी है। इसके पहले सीबीआई ने उनकी पार्टी के कई दिग्गज शीर्ष नेताओं को इस मामले में गिरफ्तार किया था। सुदीप बनर्जी जो पूरे तृणमूल संसदीय दल के अध्यक्ष थे और लोकसभा में पार्टी का चेहरा थे। सीबीआई ने उन्हें भी पकड़कर जेल में डाल दिया लेकिन ममता ने किसी तरह का कोई धरना या बड़ा आंदोलन नहीं किया। उनके कैबिनेट में परिवहन और क्रीड़ा मंत्री रहे मदन मित्रा को भी सीबीआई ने अचानक गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था| ममता ने तब भी आंदोलन नहीं किया। इसके अलावा सांसद सृंजय बोस, कुणाल घोष, तापस पाल जैसे पार्टी के शीर्ष नेताओं को भी गिरफ्तार किया लेकिन ममता सड़कों पर नहीं उतरीं। फिर इस बार ऐसी क्या बात हुई कि राजीव कुमार जैसे एक अधिकारी के लिए ममता धरना पर बैठ गई हैं। इसे लेकर भाजपा भले ही राजनीतिक आरोप लगा रही है और दावा कर रही है कि राजीव कुमार चिटफंड मामले में सबसे बड़े राजदार हैं और उनकी गिरफ्तारी के बाद जांच की आंच ममता तक पहुंच सकती है। हो सकता है यह सच भी हो और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अगर राजीव कुमार की गिरफ्तारी होती है तो निश्चित तौर पर भाजपा के इस दावे की सच्चाई भी पता चल जाएगी लेकिन ममता के धरने का जो दूसरा सबसे बड़ा पहलू है वह पूरी तरह से राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है। दरअसल जब पार्टी के शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी हुई तब राज्य अथवा देश में किसी तरह का कोई चुनाव होने वाला नहीं था और ममता के धरने का बहुत अधिक लाभ मिलने वाला भी नहीं था। अब महज चंद महीने में लोकसभा चुनाव होना है। भले ही चुनाव आयोग की सख्ती और केंद्रीय जवानों की मौजूदगी में चुनाव होंगे लेकिन किसी भी चुनाव में सेंट्रल फोर्स की तैनाती राज्य पुलिस के अधीन होती है। जिलाधिकारी और जिला पुलिस अधीक्षक सेंट्रल फोर्स को मॉनिटर और निर्देशित करते हैं। उन्हें कहां जाना है, कैसे -कैसे क्या करना है, इस बारे में सारे फैसले जिला प्रशासन लेता है। ऐसे में राज्य के दूसरे सबसे बड़े आईपीएस अधिकारी के पक्ष में ममता ने धरना देकर पुलिस बल के बीच अपने लिए सहानुभूति पैदा कर ली है। निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव के दौरान इसका लाभ सबसे अधिक मिलने वाला है और अगर चुनाव व्यवस्था में थोड़ी-सी भी गड़बड़ी हुई तो सत्तारूढ़ तृणमूल इसका लाभ राज्य प्रशासन के जरिए उठा सकेगी।
धरने के बारे में सफाई देते हुए ममता ने कहा है, ‘इससे पहले सीबीआई ने हमारे कई पार्टी नेताओं को अरेस्ट किया था लेकिन मैं सड़क पर नहीं आई। इस बार वे बिना किसी वॉरंट या दस्तावेज के कोलकाता पुलिस आयुक्त के घर पूछताछ के लिए पहुंच गए जो उनके पद का असम्मान है। राजीव कुमार पुलिस बल के लीडर हैं। यहां तक कि राजीव और सुरजीत कार पुरकायस्थ (राज्य सुरक्षा सलाहकार) चाहते थे कि मैं न आऊं लेकिन मैं उनके घर गई और धरने पर बैठने का फैसला किया। मैं पुलिस फोर्स और उसकी गरिमा के लिए लड़ाई लड़ रही हूं।’ हालांकि ममता के सारे दावे बेबुनियाद है जो सीबीआई की टीम राजीव कुमार के घर पहुंची थी उनके पास सारे दस्तावेज भी थे और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार उन्हें अधिकार भी था कि वे पूछताछ कर सकते थे।
ममता ने बहुत सतर्कता के साथ विभिन्न मुद्दों पर केंद्र को घेरना शुरू किया। केंद्रीय योजनाओं से लेकर सेना की तैनाती तक के मुद्दे उठाए और आरोप लगाया कि मोदी सरकार केंद्रीय बलों का विपक्षी नेताओं के खिलाफ ‘गलत इस्तेमाल’ कर रही है। उन्होंने सही समय पर पुलिस कमिश्नर के मुद्दे को भी लपक लिया और आम चुनाव से ठीक पहले राज्य के पुलिस बल में अपने प्रति सहानुभूति पैदा कर ली। यही पुलिस बल चुनाव आयोग की निगरानी में राज्य में लोकसभा चुनाव कराएगा।
वर्ष 2014 में भी उन्होंने ऐसी ही घोषणा की थी। उस समय उन्होंने कहा था कि वह नरेंद्र मोदी को जेल भेज देंगी। इस घोषणा के जरिए उन्होंने संकेत दिया कि केवल उन्हीं के अंदर भाजपा से लड़ने का साहस है। इस बार देश की संवैधानिक व्यवस्थाओं को चुनौती देते हुए ममता धरने पर बैठी हैं। सोमवार को तो उन्होंने यहां तक धमकी दे दी कि अगर केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने के बारे में विचार कर रही है तो राज्य सरकार यहां धारा 144 लगा देगी और किसी को घुसने तक नहीं देगी। अब इससे बड़ी विकृत चेतावनी कुछ नहीं हो सकती है। देखने वाली बात होगी की ममता के इस बागी रुख पर केंद्र सरकार ठोस कदम उठाएगी या पीछे हटेगी।