पद्म सम्मान में नया अध्याय

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नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पद्म पुरस्कारों में नया अध्याय जुड़ा है। इसमें गुमनाम समाजसेवकों, कलाकारों आदि को भी शामिल किया गया। इस प्रकार यह प्रतिष्ठित पुरस्कार गांव ही नहीं वनवासी क्षेत्रों तक पहुंच गया है। इस संबद्ध में पिछले कुछ वर्षों की पद्म पुरस्कार सूची देखना दिलचस्प है। इस बार के सम्मान समारोह में भी अद्भुत दृश्य दिखाई दिए।
अक्सर चित्र भी बहुत कुछ कह जाते हैं। शायद यही कारण रहा होगा कि मूल संविधान में अनेक चित्र दिए गए थे। इनकी प्रेरणा यह थी कि शासन को आमजन के प्रति समर्पित होना चाहिए। समय के साथ ये चित्र तो विलुप्त हो गए। फिर भी शीर्ष संवैधानिक पदों से संबंधित कतिपय चित्र प्रभावित करते हैं। पिछले कुछ ही दिनों में ऐसे ही दो चित्र प्रभावित करने वाले थे। पहला वह जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रयागराज कुंभ में सफाई कर्मियों के पैर धो रहे हैं। दूसरा वह जिसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पद्म पुरस्कार प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने सम्मान देते हुए एक समाजसेवी महिला के सामने सिर झुका दिया। उस बुजुर्ग महिला ने उनके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया। इस चित्र पर विचार करते हैं तो एक नया अध्याय उभरता है। देश के विभिन्न इलाकों में अनेक गुमनाम समाजसेवी हैं। जिन्होंने समाज के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते रहे। बदले में कोई आकांक्षा नहीं की। धन दौलत, पद, यश, वैभव किसी की चाह नहीं थी। मीडिया या प्रचार से दूर रहे। गुमनामी में अपना कार्य करते रहे। अपवाद छोड़ दें तो पहले इनकी ओर शासन का ध्यान भी नहीं जाता था। कोई पहाड़ तोड़ कर अकेले ही सड़क बनाता रहा। वर्षों तक यह क्रम चला। शासन का ध्यान उधर गया होता तो उनका कार्य आसान हो गया होता। लेकिन हार नहीं मानी। पहाड़ को तोड़ कर मार्ग बनाकर ही दम लिया। इसी प्रकार अनेक लोग अपने अपने ढंग से समाजसेवा में जुटे हुए हैं। नरेंद्र मोदी ने ऐसे गुमनाम लोगों को पद्म सम्मान देने का निर्णय लिया था। अब प्रतिवर्ष ऐसे लोगों को सम्मान देने की परंपरा शुरू हुई। पहले चिकने चेहरे ही पद्म सम्मान के हकदार होते थे।
खेल, राजनीति, समाजसेवा कला फिल्म से जुड़े अनेक प्रतिष्ठित लोगों को यह सम्मान मिलता रहा है। कई ऐसे समाजसेवी भी हैं जिनको मीडिया में भी पर्याप्त जगह मिलती है। ऐसे सभी लोगों के विषय में देश बखूबी जानता है। लेकिन गुमनाम समाजसेवियों की चर्चा पद्म सम्मान मिलने के बाद शुरू होती है।
महेश शर्मा ने अपने को झाबुआ के वनवासियों के उत्थान हेतु समर्पित कर दिया। मूलतः वह वनवासी नहीं थे। लेकिन सेवा भाव ऐसा कि वहां के होकर रहने लगे। वहां के सभी गांवों में हजारों जल संरचनाएं निर्मित की। गांव के गरीब आदिवासियों को साथ लेकर गांव की समस्या गांव के माध्यम से ही दूर कराई। शिव गंगा, हलमा जैसे भगीरथी संघर्ष से सूखे खेतों को पानी,गांव का तालाब गांव के लोगों से ही खुदवा कर जल संरक्षण का अभियान चलाया। इसमें बड़ी सफलता मिली।
पद्म पुरस्कार तीन प्रकार के होते हैं – पद्म विभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री। कला, सामाजिक कार्य, सार्वजनिक मामलों, विज्ञान और इंजीनियरिंग, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य और शिक्षा, खेल, सिविल सेवा, आदि में ‘ पद्म विभूषण ‘ असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए सम्मानित किया जाता है। प्रीतम भर्तवान -लोककला, ज्योति भट्ट – चित्रकला, कंवल सिंह चौहान -कृषि, मुक्तबेन पंकज कुमार दागली – सामाजिक कार्य-दिव्यांग, बाबूलाल-कृषि, जोरावर सिंह-लोक कला, द्रौपदी घिमिरय – दिव्यांग कल्याण जैसे अनेक लोग पद्मश्री से सम्मानित हुए। इनमें अनेक लोग ऐसे हैं जो प्रचार की भावना से सामाजिक कार्य में नहीं आए। इसी प्रकार अरविंद गुप्ता-साहित्य और शिक्षा (महाराष्ट्र), भज्जू श्याम-कला पेंटिंग (मध्यप्रदेश), लक्ष्मी कुट्टी – औषधि सर्प दंश (केरल), सुशांशु बिस्वास-समाज सेवा (पश्चिम बंगाल), एमआर राजगोपाल-औषधि (केरल) मुरलीकांत पेटेकर-खेल(महाराष्ट्र), सुलागट्टी नरसम्मा-औषधि (कर्नाटक), विजय लक्ष्मी नवनीतिकृष्णन -साहित्य और शिक्षा (महाराष्ट्र), सुभाषिनी मिस्त्री-समाज सेवा (पश्चिम बंगाल), राजगोपालन वासुदेवन-विज्ञान एवं इंजीनियरिंग (तमिलनाडु) आदि ऐसे ही समाजसेवी, कलाकार हैं। जिन्हें राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। केरल के राजगोपाल चिकित्सा के माध्यम समाज को लाभ पहुंचा रहे हैं। अरविंद गुप्ता अनुपयोगी समान से खिलौने बनाने में माहिर हैं। हर्बल दवाओं के क्षेत्र में काम करने वाली लक्ष्मी कुट्टी उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं।
गुमनाम रहकर समाजसेवा करने वालों को पद्म पुरस्कार देना सराहनीय है। एक तो सरकार इनकी सेवाओं को सम्मान देती है, दूसरा यह कि इनके कार्यों से अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलती है।

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