पंजाब में अस्तित्व की लड़ाई से जूझ रही आम आदमी पार्टी

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चंडीगढ़ , 7 जनवरी (हि.स.)| करीब पांच वर्ष पहले पंजाब की 13 में से 4 लोकसभा सीटें जीत कर अपना खाता खोलने वाली आम आदमी पार्टी अब पंजाब में अपने अस्तित्व की लड़ाई से जूझ रही है। पार्टी को पंजाब में खड़ा करने का श्रेय अरविन्द केजरीवाल को जाता है, तो अब पार्टी को हाशिये पर ले जाने का दाग भी उन्हीं पर लग रहा है। महज एक सप्ताह में पार्टी के दो बड़े नेता एडवोकेट व विधायक एच एस फूलका और विधायक सुखपाल सिंह खेहरा पार्टी छोड़ गए। दोनों ही पंजाब विधानसभा में एक -एक करके पार्टी के नेता रहे हैं। फूलका ने विधायक दल के नेता का पद छोड़ दिया था तो खेहरा को इस पद से पार्टी ने हटा दिया था। दोनों ही नेताओं का पार्टी छोड़ना केंद्रीय नेतृत्व की नीतियों के खिलाफ रहा। खेहरा खुल कर इस बात को कह गए जबकि फूलका कुछ न बोल कर भी बता गए कि दिल्ली विधानसभा द्वारा राजीव गांधी को भारत रत्न अवार्ड को वापस लेने की मांग करने वाला प्रस्ताव पारित किया, जिसे लेकर बाद में मतभेद हुए और इसे कांग्रेस व आम आदमी पार्टी में गठजोड़ की साजिश करार दे दिया गया। इसी पृष्ठभूमि में विधायक फूलका का इस्तीफा आया।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से आम आदमी पार्टी की पंजाब इकाई की तरफ नजर डाली जाए तो काफी कुछ स्पष्ट हो जाता है। पंजाब में परम्परिक दल कांग्रेस और अकाली दल के राजनीतिक -सत्ता के खेल से ऊबे लोगों के लिए आम आदमी पार्टी एक नई दिशा वाली पार्टी बन कर आई थी। पार्टी की राजनीतिक सलाहकार मामलों की कमेटी ने 29 अगस्त 2015 को अपने दो सांसदों डा. धर्मवीर गांधी (पटियाला) और हरिंदर सिंह खालसा (फतेहगढ़ साहिब) को पार्टी विरोधी गतिविधियों और पार्टी नेतृत्व की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने के आरोप में पार्टी से निलंबित कर दिया था। यह करवाई तब हुई जब राष्ट्रीय टीम से प्रशांत भूषण व योगेन्द्र यादव के खिलाफ करवाई हुई थी। पार्टी के अभियान कमेटी के सदस्य मंजीत सिंह व पंजाब विधानसभा चुनावों के वक्त पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष सुच्चा सिंह छोटेपुर और फिर 4 नवम्बर 2018 को पार्टी ने संघर्ष करने वाले विधायकों सुखपाल सिंह खेहरा और कंवर संधू को पार्टी से निलंबित कर दिया। अपने निर्णयों की वजह से ही पंजाब विधानसभा चुनावों में 100 सीटें जीतने का दावा कर रही ‘ आप ‘ सिर्फ 20 सीटों तक सिमट कर रह गई। पार्टी का ग्राफ तब ही बुरी तरह गिरना शुरू हो गया था, जब अकाली नेता व पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ नशे को बढ़ावा देने के आरोप लगाने वाले अरविन्द केजरीवाल नाटकीय रूप से मजीठिया से लिखित रूप से माफी मांग गए। इससे पार्टी को पंजाब में मुंह की खानी पड़ी। इसी दौरान राज्य में हुए चुनाव में पार्टी का हाल निर्दलीयों से भी बुरा रहा। लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम और पंचायत चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन मुंह छुपाने वाला ही रहा।
पार्टी से निलंबित हुए अथवा निकाले गए नेताओं ने अब अलग से मंच अथवा पार्टियां बना ली है। पार्टी के पंजाब में 20 विधायकों में से 7 अलग ही हैं। आंतरिक द्वंद्व झेल रही कांग्रेस के लिए तो यह राहत भरी बात ही है कि उसको चुनौती देने वाली आप अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है और अकाली दल -भाजपा गठजोड़ भी पस्त स्थिति में है।
शायद आम आदमी पार्टी के नेताओं के पास पार्टी से निकाले नेताओं के विरुद्ध बोलने के अलावा कोई चारा ही नहीं रहा। आप के वरिष्ठ नेता व पंजाब से लोकसभा सदस्य भगवंत मान, पंजाब में विधायक दल के नेता हरपाल सिंह चीमा, विधायक अमन अरोड़ा, पार्टी की कोर कमेटी के अध्यक्ष बुध राम सभी ने ही खेहरा के पार्टी छोड़ने की निंदा करते हुए कहा है कि बेहतर होता अगर खेहरा अपनी विधानसभा सीट से भी इस्तीफा दे देते। हालांकि आम आदमी पार्टी ने पंजाब में लोकसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा सबसे पहले करनी शुरू कर दी है। इसके बावजूद पार्टी का टिकट लेने वालों में कोई दिलचस्पी नजर नहीं आ रही। अलबत्ता पार्टी के नेता यह जरूर कह रहे हैं कि जो लोग पार्टी को छोड़ गए हैं, उनका स्थान भरने की तरफ अब पार्टी का सारा ध्यान लग रहा है। बूथ स्तर पर कार्यकर्ता लगाने की बात करने वाली ‘ आप ‘ के पास तो अभी राज्य की पूरी विधानसभा सीटों में से अधिकतर पर तो नेता भी नहीं हैं।


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