‘नेह नीड़’ में बच्चों को मिल रहा शिक्षा, संस्कार और स्वावलम्बन

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मेरठ, 20 दिसंबर (हि.स.)। सामाजिक रूप से पिछड़ी तथा आर्थिक रूप से अभावग्रस्त बस्तियों के मेधावी बालकों को शिक्षा और संस्कार देकर स्वाबलम्बी बनाने में नेह नीड़ फाउंडेशन अतुलनीय कार्य कर रहा है। अपने एक साल के कार्यकाल में ही नेह नीड़ फाउंडेशन ने 31 बच्चों के जीवन में खुशियां भर दी है। अपने दूसरे वर्ष के कार्यकाल में अन्य 40 बच्चों को नेह नीड़ की छांव में लाने का लक्ष्य तय किया है।

नेह नीड़ फांउडेशन के संस्थापक कन्हैया लाल ने बताया कि 13 दिसंबर 2020 को ’नेह नीड़ फाउंडेशन’ ने अभावग्रस्त बस्तियों के मेधावी बच्चों के जीवन को नई दिशा देने का कार्य शुरू किया। पिछले एक वर्ष में छह माह का समय कोरोना के चलते बाधित हुआ। इसके बाद भी नेह नीड़ फाउंडेशन ने कई उपलब्धियां हासिल की है। पहले वर्ष में 31 मेधावी विद्यार्थियों का चयन करके जन सेवा न्यास के सहयोग से शताब्दीनगर के माधव कुंज स्थित राधेश्याम मोरारका सरस्वती विद्या मंदिर में उनका प्रवेश कराया गया। इस बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जा रही है। इसमें पुस्तकों से लेकर, शिक्षण शुल्क, आवासीय व्यवस्था, भोजन, उपचार सभी निःशुल्क है।

कई जिलों में जाकर हुई बच्चों की खोज

नेह नीड़ फाउंडेशन की विधिवत शुरूआत पूज्य अतुल कृष्ण भारद्वाज, डॉ. दर्शन लाल अरोडा, सूर्यप्रकाश टोंक, गंगा राम के मार्गदर्शन में हुई। दिसंबर 2020 से फरवरी 2021 तक सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, अलीगढ, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, बरेली, मुरादाबाद, सहारनपुर आदि की झुग्गी-बस्तियों में जाकर विद्यार्थी खोज के लिए संपर्क किया गया। 250 बालकों के आवेदन आए। तो दो मार्च से सात मार्च 2021 तक आवासीय विद्यार्थी चयन शिविर का आयोजन किया गया। 124 बच्चों ने शिविर में भाग लिया। पांच दिन में 18 प्रकार की विविध गतिविधियों द्वारा बालकों की परीक्षा ली गई। इसके बाद 31 बच्चों का चयन हुआ। एक अप्रैल से बच्चों का प्रवेश जन सेवा न्यास के सहयोग से सरस्वती विद्या मंदिर में हुआ।

कोरोना आपदा में दी गई ऑनलाइन शिक्षा

नेह नीड़ फाउंडेशन के अध्यक्ष कथा व्यास अरविंद भाई ओझा ने बताया कि बच्चों की शिक्षा के प्रति लगन और नेह नीड की टीम ने 18 अप्रैल से ऑनलाइन शिक्षा देनी शुरू की। इसके लिए संसाधन भी जुट गए। नेह नीड के चयनित बच्चों के साथ-साथ शिविर में आए सभी बच्चों को शामिल कर लिया गया। तीन घंटे की कक्षाएं होने लगी। इसमें 100 बच्चे प्रतिदिन बिना अवकाश के शिक्षा लेते थे। 24 अगस्त से बच्चाें को विद्यालय में बुलाकर ऑफलाइन कक्षाएं चलने लगे। विद्यालय में बच्चों को पुस्तकीय शिक्षा के साथ व्यवहारिक शिक्षा भी दी जाती है।

नेह नीड़ में मनाए जाते हैं भारतीय पर्व

नेह नीड़ फाउंडेशन की सचिव रीमा कन्हैया कुमार ने बताया कि नेह नीड़ कक्षाओं में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, विजय दशमी पर्व, दिपावली पर्व जैसे सभी भारतीय पर्व मनाए जाते हैं। इसके अलावा कई प्रकार की गतिविधियां संचालित की जाती है।

नेह नीड़ की पालक योजना
सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैया कुमार ने बताया कि नेह नीड़ में बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाने के लिए पालक योजना बनाई गई है। नेह नीड़ के इस यज्ञ में आहुति देने के लिए स्वेच्छा से पालक परिवार सामने आए हैं। एक बच्चे का प्रतिवर्ष व्यय 31 हजार रुपए आ रहा है। 31 बच्चों के लिए 31 पालक परिवार सामने आए हैं। इससे बच्चों का संपूर्ण खर्च उठाया जा रहा है।

अन्य 40 बच्चों को नेह नीड़ में लाया जाएगा
कन्हैया कुमार ने बताया कि जन सेवा न्यास द्वारा नेह नीड को तीन सुविधाएं दी जा रही है। इनमें राधेश्याम मोरारका सरस्वती विद्या मंदिर में निःशुल्क प्रवेश, निःशुल्क शिक्षा, निःशुल्क पुस्तकें दी जाती है। बाकी खर्च नेह नीड फाउंडेशन पालक परिवारों की सहायता से उठा रहा है। इस वर्ष अन्य 40 बच्चों का चयन किया जाएगा। इसके लिए पालक परिवार तैयार हो रहे हैं। लोगों से सहयोग का आह्वान किया गया है।

वार्षिकोत्सव में पहुंचे स्वामी यतींद्रानंद गिरि

नेह नीड़ का प्रथम वार्षिकोत्सव रविवार की रात संपन्न हुआ। इसमें जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि जी महाराज पहुंचे। इसके साथ ही सांसद राजेन्द्र अग्रवाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. दिनेश, आयुक्त सुरेंद्र सिंह, अरविंद ओझा, विजय मान, दिनेश महाजन, शिवकुमार, अतुल गुप्ता, पंकज जैन, अखिलेश मिश्रा, गोपाल शर्मा आदि उपस्थित रहे। इस दौरान बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मनमोहक प्रदर्शन किया। संस्था की आर्थिक सहायता करने वाले दानदाताओं को भी सम्मानित किया गया।

स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज ने कहा कि स्वतन्त्रता के सात दशक पूर्ण होने के बाद भी दुर्भाग्य से हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक रूप से अन्तिम पायदान पर ही खड़ा हुआ दिखता है। स्वामी विवेकानन्द ने इन्हें ‘दरिद्र नारायण’ कहा। समाज का यह वर्ग तेजी से बढ़ते, विकसित होते शहरों में आज भी झुग्गी-झोपड़ी में, गन्दी बस्तियों में, कभी-कभी नालों व रेल की पटरियों के सहारे रहने को विवश है। आयुक्त ने कहा कि निर्बल, दुर्बल व वंचित बस्तियों के बालकों के बीच शिक्षा का प्रसार किया जाए। इन्हें दुर्व्यसनों से बचाकर श्रेष्ठ जीवन मूल्यों से जोड़ा जाए।


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