दिल्ली में सर्विसेज के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की अलग-अलग राय, केस बड़ी बेंच को रेफर
नई दिल्ली, 14 फरवरी (हि.स.)। दिल्ली में अफसरों पर नियंत्रण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने अलग-अलग फैसला सुनाया है। सर्विसेज पर जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने अलग-अलग फैसला सुनाया | इसलिए इस मसले पर विचार करने के लिए बड़ी बेंच को रेफर कर दिया गया। 1 नवंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जस्टिस सिकरी ने कहा कि संविधान बेंच के फैसले ध्यान में रखा जाना चाहिए लेकिन सर्विसेज के अधिकार पर अलग-अलग मत हैं। जस्टिस सिकरी ने कहा कि ज्वायंट सेक्रेटरी या उससे ऊपर के अधिकारी उप-राज्यपाल के अधीन आएंगे जबकि बाकी दिल्ली सरकार के अधीन आएंगे। जस्टिस सिकरी ने कहा कि एंटी करप्शन ब्यूरो केंद्र सरकार के तहत आएगा क्योंकि दिल्ली सरकार के पास पुलिसिंग का अधिकार नहीं है। एसीबी के मामले में जस्टिस सीकरी ने अपने फैसले में कहा है कि वह सिर्फ दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ करप्शन मामले की जांच कर सकता है| केंद्र के अंदर आने वालों पर नहीं। दिल्ली सरकार खुद कमीशन ऑफ इंक्वायरी भी नियुक्त नहीं कर सकती है ऐसा जस्टिस सीकरी ने अपने आदेश में कहा है ।
जस्टिस सिकरी ने कहा कि जमीन, लॉ और पुलिस केंद्र सरकार के अधीन हैं। जस्टिस सिकरी ने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट के तहत दिल्ली सरकार को अधिकार है और वह डायरेक्टर की नियुक्ति कर सकता है।
जस्टिस अशोक भूषण ने जस्टिस सिकरी के सभी फैसलों पर सहमति जताई सिवाय सर्विसेज के फैसले के। इसलिए सर्विसेज के मसले पर अब सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच फैसला करेगी।
दोनों जजों ने साफ कहा है कि सर्किल रेट कमिशन ऑफ इंक्वायरी और साथ ही साथ इलेक्ट्रिसिटी रिफॉर्म पर भी एलजी दिल्ली में सुप्रीम अथॉरिटी है। दोनों जजों ने कहा कि दिल्ली सरकार स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त कर सकती है।
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार और एलजी मिलकर लोगों की भलाई के लिए काम करें।
29 अगस्त 2018 से सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर सुनवाई शुरु की थी। दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल और पी चिदंबरम ने कहा था कि केंद्र का अधिकार सिर्फ लैंड, पुलिस और कानून व्यवस्था तक सीमित है। आईएएस अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का हक दिल्ली सरकार को मिलना जरूरी है।
4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उप-राज्यपाल ही राज्य के मुखिया हैं लेकिन वे चुनी हुई सरकार के लिए बाधा नहीं खड़ी कर सकते हैं। उप-राज्यपाल को स्वतंत्र रुप से फैसला लेने का अधिकार नहीं है। लोगों का कल्याण और एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव होना चाहिए। एकाधिकारवाद की जगह नहीं होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने कुछ अधिकारियों के ट्रांसफर किए जिसे उप-राज्यपाल ने रोक दिया। उसके बाद दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।