दलाई लामा के स्वनिर्वासन के 60 साल पूरे होने पर तिब्बत में राजनयिकों और पत्रकारों के प्रवेश की इजाजत नहीं

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लॉस एंजेल्स, 28 मार्च (हि.स.)। चीन ने दलाई लामा के स्वनिर्वासन के साठ साल पूरे होने के मौके पर तिब्बत में राजनयिकों और पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगा दी है। यह जानकारी गुरुवार को मीडिया रिपोर्ट से मिली।
चीन ने बुधवार को जारी एक श्वेत पत्र में तिब्बत के मूल निवासियों को धार्मिक स्वतंत्रता का आश्वासन तो दिया है, लेकिन तिब्बत के धर्म गुरू के अवतरण की प्रक्रिया को पूरी तरह नज़रंदाज कर दिया है, जो उनकी आस्था का एक महत्वपूर्ण विषय है।
जानकारों का मत है कि तिब्बत के धर्मपरायण लोगों के लिए 14वें दलाई लामा के बाद 15वें दलाई लामा का अवतरण एक शाश्वत और धार्मिक प्रक्रिया है, जिसे चीनी प्रशासन बदलना चाहती है। इसलिए चीनी प्रशासन ने पिछले साल जुलाई महीने में बौद्ध संस्कृति के विपरीत तिब्बती बच्चों को धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने पर रोक लगा दी थी।
विदित हो कि भारत के धर्मशाला में निर्वासित जीवन जी रहे नोबल पुरस्कार विजेता 83 वर्षीय 14वें दलाई लामा ने दो सप्ताह पूर्व एक अमेरिकी पत्रकार से मुलाकात के दौरान यह इच्छा ज़ाहिर की थी कि 15वें दलाई लामा का अवतरण भारत में हो।
उन्होंने कहा था कि चीन वर्षों से तिब्बत के लोगों की आस्थाओं को नज़रंदाज कर 15वें दलाई लामा की नियुक्ति करने की कोशिश कर रहा है। अगर ऐसा होता है तो तिब्बत सहित दुनिया भर के बौद्ध धर्म के अनुयायी चीनी प्रशासन की ऐसी किसी भी नियुक्ति को स्वीकार नहीं करेंगे।
चीन के सूचना प्रसारण विभाग की ओर से जारी श्वेत पत्र में कहा गया है कि चीनी प्रशासन तिब्बत की नस्लीय व्यवस्था को अपनाए जाने और इसे बढ़ावा देने को तत्पर है, लेकिन साथ ही वह तिब्बत की सामंती व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए भी कटिबद्ध है।
जानकारों का कहना है कि कम्युनिस्ट चीन एक सोची समझी राणनीति के तहत तिब्बत की संस्कृति और शैक्षणिक पद्धति को नष्ट करने पर तुली हुई है। यही नहीं, लिविंग बुद्धा के अवतरण को संस्थागत किए जाने में विश्वास रखती है, जो बुद्धवाद के ख़िलाफ़ है।


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