झारखंडः दुमका सीट पर 11वीं बार चुनावी मैदान में उतरेंगे 74 वर्षीय बुजुर्ग शिबू सोरेन
रांची, 18 अप्रैल (हि.स.)। झारखंड की बेहद महत्वपूर्ण दुमका लोकसभा सीट पर 75वर्षीय बुजुर्ग झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन 11वीं बार चुनावी जंग में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। दिग्गज शिबू सोरेन के सामने भाजपा ने उनके मुकाबले कभी उनके ही शिष्य रहे सुनील सोरेन को चुनावी मैदान में उतारने की घोषणा कर दी है। हालांकि सुनील सोरेन पूर्व में शिबू सोरेन के सामने पराजित हो चुके हैं लेकिन इस चुनाव में ही पार्टी का भरोसा जीतने में कामयाब रहे। इसके साथ ही इस सीट पर दिलचस्प चुनावी मुकाबले की पटकथा तैयार हो चुकी है।
आजादी के बाद से दुमका सहित पूरा संताल परगना झारखंड नामधारी दलों का मजबूत जनाधार वाला क्षेत्र रहा है। इन दलों की इतनी मजबूत पकड़ रही है कि 1952 से अभीतक इस क्षेत्र में एक उपचुनाव सहित लोकसभा के 17 चुनाव में सर्वाधिक झारखंड पार्टी या झामुमो प्रत्याशी के नाम ही जीत रही। झारखंड में गुरूजी के नाम से चिरपरिचत शिबू सोरेन दुमका संसदीय क्षेत्र से 11 वीं बार भाग्य आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। शिबू सोरेन इस सीट से आठ बार चुनाव जीत चुके हैं।
इस अहम लोकसभा क्षेत्र का इतिहास देखें तो 1951-52 में सम्पन्न लोकसभा के प्रथम चुनाव में संतालपरगना दो संसदीय क्षेत्रों में विभक्त था। पूर्णिया-सह-संतालपरगना और संतालपरगना सह हजारीबाग नामक दो संसदीय क्षेत्रों से सामान्य से दो और अजजा से दो प्रतिनिधियों को चुने जाने का प्रावधान था। प्रथम चुनाव में संतालपरगना सह पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र से सामान्य सीट से कांग्रेस प्रत्याशी भागवत झा आजाद और अजजा से झारखंड पार्टी के पाॅल जुझार सोरेन तथा संतालपरगना सह हजारीबाग के सामान्य सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रामराज जजवाड़े और अजजा से इसी दल के लाल हेम्ब्रम विजयी हुए थे। इस चुनाव में दोनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों को जयपाल सिंह की पार्टी झारखंड पार्टी के प्रत्याशियों से कड़ी टक्कर मिली थी। हालांकि संतालपरगना की चार सीटों में से तीन पर कांग्रेस और एक पर झापा के प्रत्याशी विजयी रहे थे।
1957 में दुमका स्वतंत्र लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। जहां से सामान्य और अजजा से एक-एक प्रतिनिधि चुने जाने का प्रावधान किया गया। लोकसभा के द्वितीय चुनाव में दोनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों को हराकर झारखंड पार्टी के प्रत्याशी विजयी हुए। इस चुनाव में सामान्य से झापा के सुरेश चन्द्र चौधरी और अजजा से देवी सोरेन विजयी हुए। 1962 में सम्पन्न तीसरे लोकसभा के चुनाव में एक सदस्यीय दुमका संसदीय क्षेत्र को अजजा के लिए सुरक्षित कर दिया गया। इस चुनाव में कांग्रेस के सत्यचरण बेसरा विजयी हुए। बेसरा का 1967 और 1971 के चुनाव में भी इस सीट पर कब्जा बरकरार रहा। लेकिन आपातकाल के बाद कांग्रेस के खिलाफ चली बयार में जनता पार्टी के प्रत्याशी बटेश्वर हेम्ब्रम ने कांग्रेस के पृथ्वी चन्द्र किस्कू को परास्त कर इस क्षेत्र में कांग्रेस की जड़ों को हिला दिया।
1974-75 के आसपास झामुमो के संस्थापक रहे शिबू सोरेन ने अलग झारखंड आंदोलन को धार देने के लिए संतालपरगना के गांवों का दौरा शुरू किया। करीब डेढ़ दशक तक ठंडी रही अलग झारखंड की मांग, शिबू सोरेन की अगुवाई में फिर से पुनर्जीवित हो उठी। 1977 में टुंडी विधानसभा क्षेत्र से पराजित होने के बाद शिबू सोरेन ने संतालपरगना को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाने की कवायद शुरू कर दी। 1980 में झामुमो प्रत्याशी के रूप में बतौर निर्दलीय शिबू सोरेन ने कांग्रेस और जनता पार्टी के निवर्तमान सांसद बटेश्वर हेम्ब्रम को पराजित कर इस सीट पर अपना कब्जा जमा लिया। हालांकि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पृथ्वी चन्द्र किस्कू ने शिबू सोरेन को लगभग 95 हजार से अधिक मतों के अंतर से पराजित कर करीब एक दशक के बाद दुमका संसदीय सीट पर कांग्रेस का पताका फिर लहरा दिया।
1989 में शिबू सोरेन के नेतृत्व में झामुमो बीपी सिंह की अगुवाई वाले जनता दल गठबंधन में शामिल हो गया। इस चुनाव में शिबू सोरेन जनता दल के साझा उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और कांग्रेस निवर्तमान सांसद पृथ्वी चन्द्र किस्कू को लगभग एक लाख दस हजार मतों के अंतर से हराकर पुनः झामुमो को इस क्षेत्र में स्थापित कर दिया। इसके बाद झामुमो के प्रत्याशी के रूप में शिबू सोरेन 1991 में लगभग एक लाख 35 हजार से अधिक और 1996 में लगभग 4500 मतों के अंतर से भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी को लगातार पराजित कर इस क्षेत्र से विजयी होते रहे।
1998 में तीसरे प्रयास में भाजपा के बाबूलाल मरांडी ने झामुमो के शिबू सोरेन को लगभग 12 हजार मतों के अंतर से पराजित कर पहली बार इस क्षेत्र में भाजपा का भगवा पताका फहराने में सफल हुए। इन तीन चुनावों में कांग्रेस इस क्षेत्र में अपनी जमानत की राशि भी नहीं बचा पायी। पहली बार शिबू सोरेन को पराजित करने के लिए पुरस्कार के रूप में बाबूलाल मरांडी को केन्द्र सरकार में वन पर्यावरण मंत्री बनाया गया। 1999 में भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी के खिलाफ झामुमो ने शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन किस्कू को मैदान में उतारा, जिसमें बाबूलाल मरांडी लगभग 5500 मतों अंतर से ही झामुमो प्रत्याशी को पराजित करने में सफल हुए।
15 नवम्बर 2000 में झारखंड अलग राज्य निर्माण के बाद इस क्षेत्र के सांसद बाबूलाल मरांडी को नवगठित झारखंड राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने के बाद मरांडी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इस कारण 2002 में दुमका संसदीय क्षेत्र में उपचुनाव कराया गया। इस चुनाव में अपने अभेद्य किले को मजबूती प्रदान करने के लिए झामुमो प्रत्याशी के रूप में शिबू सोरेन पुनः मैदान में उतरे। सोरेन के खिलाफ भाजपा से रमेश हेम्ब्रम पर दांव खेला लेकिन रमेश को झामुमो दिग्गज शिबू सोरेन से परास्त होना पड़ा। 2004 में शिबू सोरेन के खिलाफ भाजपा ने सोनेलाल हेम्ब्रम को अपना प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव भी सोरेन ने भाजपा के सोनेलाल सोरेन को पराजित कर दिया।
2009 में भाजपा ने झामुमो के शिबू सोरेन के खिलाफ कभी उनके शिष्य रहे सुनील सोरेन पर दांव खेला लेकिन इस चुनाव में कांटे की टक्कर में शिबू सोरेन ने भाजपा के सुनील सोरेन को 18 हजार से अधिक मतों से परास्त कर दिया। 2014 में भाजपा ने झामुमो के शिबू सोरेन के खिलाफ फिर से सुनील सोरेन को चुनावी जंग में उतारा। इस चुनाव में शिबू सोरेन भाजपा के सुनील सोरेन को लगभग 30 हजार से अधिक मतों से परास्त कर इस सीट पर झामुमो का कब्जा बरकरार रखने में कामयाब हुए।
दुमका संसदीय क्षेत्र से दुमका जिले का दुमका, जामा, शिकारीपाड़ा, जामताड़ा जिले के जामताड़ा और नाला तथा देवघर जिले का सारठ विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। दुमका संसदीय क्षेत्र के लगभग 13 लाख 65 हजार 256 मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे। जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 7 लाख एक हजार 511 और महिला मतदाताओं की संख्या 6 लाख 63 हजार 742 है। इसके लिए 1891 मतदान केन्द्र बनाये गये हैं।