जॉर्ज फर्नाडिस ने कैसे रोका था सोनिया को पीएम बनने से…
नई दिल्ली, 29 जनवरी (हि.स.)। 21 अप्रैल,1999 की रात एनडीए के संयोजक जॉर्ज फर्नाडिस ने आडवाणी को फोन कर कहा, “लाल जी, मेरे पास आपके लिए एक अच्छी खबर है, सोनिया गांधी सरकार नहीं बना सकती।“ आडवाणी ने पूछा, “यह आप कैसे कह रहे हैं?”
जॉर्ज ने कहा, “कोई अहम आदमी आप से मिलना चाहते हैं।कल उनसे से मुलाकात हो जाएगी, लेकिन यह मुलाकाया मेरे घर पर नहीं हो सकती। हम जया जेटली के घर पर मिलेंगे। जया आपको अपनी गाड़ी से लेकर आ जाएगीं।
“अगले दिन जब आडवाणी जया जेटली के साथ उनके घर पहुंचे तो वहां जॉर्ज फर्नाडिस अपने पुराने मित्र समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के साथ बैठे थे।
जॉर्ज ने कहा, “लाल जी मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि मुलायम सिंह जी और उनके सांसद किसी भी हाल में सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे, आप खुद उनसे बात कर लीजिए।
“मुलायम सिंह ने कहा, “आडवाणी जी, मेरी बस एक शर्त है कि जब मैं सोनिया गांधी को समर्थन नहीं देने का ऐलान करूंगा तो उसके बाद एनडीए भी सरकार बनाने का दावा फिर से पेश नहीं करे।
हम चुनाव चाहते हैं। “आडवाणी ने मुलायम सिंह का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि एनडीए में भी ज़्यादातर दल दोबारा दावा पेश करने के बजाय फिर से चुनाव में जाने के पक्ष में हैं। 23 अप्रैल, 1999 को मुलायम सिंह ने सोनिया गांधी की सरकार बनाने की कोशिशों पर रोक लगा दी।
मुलायम सिंह ने साफ कर दिया कि वह सोनिया गांधी के नेतृत्व में सरकार बनाने के पक्ष में नहीं हैं।मुलायम सिंह का मानना था कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति जैसे पद सिर्फ भारत में पैदा होने वाले लोगों को ही मिले।
उन्होंने कहा कि या तो कांग्रेस सरकार में सभी समर्थक दलों को शामिल करे या फिर दूसरे दलों की सरकार को बाहर से समर्थन दे। इस बात पर कुछ और दल भी मुलायम के साथ आ गए।
फिर सलाह मशविरे के बाद तय हुआ कि पश्चिम बंगाल के भद्रलोक नेता ज्योति बासु को प्रधानमंत्री बनाया जाए, लेकिन कांग्रेस को यह मंज़ूर नहीं था। कांग्रेस तब तक अपने पचमढ़ी के एकला चलो रे के प्रस्ताव के रास्ते पर ही चलना चाहती थी।
कांग्रेस ने सितम्बर 1998 में मध्य प्रदेश के पचमढ़ी में हुई अपनी बैठक में एक प्रस्ताव पारित करके फैसला किया था कि अब वह जब तक बहुत ज़रूरी नहीं होगा, दूसरे दलों के साथ गठबंधन नहीं करेगी। फिर सीपीएम ने भी बसु को प्रधानमंत्री बनने की मंज़ूरी नहीं दी, जिसे बाद में बसु ने पार्टी की ऐतिहासिक भूल कहा बताया।
25 अप्रैल को सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर बता दिया कि उनके पास बहुमत के लायक सांसद नहीं है, साथ ही वह तीसरे मोर्चे को भी समर्थन नहीं देंगी। उसी रात प्रधानमंत्री वाजपेयी ने राष्ट्रपति से मुलाकात की।
26 अप्रैल को राष्ट्रपति भवन ने कहा कि गैर बीजेपी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं और बीजेपी नेतृत्व वाले गठबंधन के पास भी बहुमत नहीं है। ऐसे में राष्ट्रपति को लगता है कि कोई स्थिर सरकार नहीं बन सकती और अब लोकसभा को भंग करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा है।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि वह इस पर कैबिनेट में विचार करेंगे। अगले दिन वाजपेयी ने लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नाडिस, जसवंत सिंह, प्रमोद महाजन और मुरासोली मारन के साथ बैठक कर सलाह मशविरा किया।
इसमें राष्ट्रपति के पत्र पर चर्चा करते हुए कहा गया कि विश्वास मत के बाद भी बीजेपी के पास 269 वोट थे जबकि कांग्रेस के पास सिर्फ 233 वोट हैं। जबकि इससे पहले जून 1991 में राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने नरसिंह राव को अल्पमत की सरकार तब तक चलाने की इजाज़त दे दी थी जब तक कि विपक्ष की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव नहीं रखा और उसमें वोटिंग में सरकार हार नहीं गई। बैठक के बाद कैबिनेट ने राष्ट्रपति के आकंलन के मुताबिक लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर दी।बारहवीं लोकसभा भंग हो गई। राष्ट्रपति ने वाजपेयी को चुनाव होने तक कामचलाऊ सरकार का नेतृत्व करने को कहा।
जॉर्ज फर्नांडिस जब रक्षा मंत्री बने तो वह क्रिसमस के मौके पर सेना के जवानों के लिए केक भिजवाते थे। ये केक बंगलौर की एक खास बेकरी कोशीज़ से आते थे। क्रिसमस के दिन वाजपेयी का जन्मदिन भी होता है, तो बंगलौर से उनके लिए खास बड़ा केक भी आता।
जब तक जॉर्ज का स्वास्थ्य ठीक रहा तब तक वे हर जन्मदिन पर अपने 3, कृष्णामेनन मार्ग से वाजपेयी के 6 ए कृष्णामेनन मार्ग तक पैदल जाकर वाजपेयी को केक खिलाते थे। यह जॉर्ज की क्रिसमस ग्रींटिग का हिस्सा बन गया था।