चौथा चरण : आसनसोल में खिलेगा कमल या चलेगा मुनमुन का जादू

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कोलकाता, 27 अप्रैल (हि.स.)। आगामी 29 अप्रैल को होने वाले चौथे चरण के मतदान में आसनसोल संसदीय सीट भी शामिल है। यहां से निवर्तमान सांसद और केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो भाजपा के उम्मीदवार हैैं, जबकि राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने अभिनेत्री मुनमुन सेन को यहां से टिकट दिया हैै। इसके पहले मुनमुन बांकुड़ा से सांसद रही हैं और अमूमन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ विकट परिस्थिति में भी बातचीत करने को लेकर वह चर्चा में रहती हैं। क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान उनके दोस्त हैं, इसलिए वह डंके की चोट पर कह चुकी हैं कि हालात चाहे जो भी हो वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बातचीत करती रहेंगी। इस बीच भाजपा ने इसे मुद्दा बनाया है।
भाजपा का यह भी दावा है कि आसनसोल में चुनाव प्रचार के लिए तृणमूल कांग्रेस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को एक खिलाड़ी के तौर पर आमंत्रित कर चुकी हैं। इधर ममता बनर्जी ने भी मुनमुन सेन के समर्थन में प्रचार में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबुल सुप्रियो के समर्थन में जनसभा कर चुके हैं। पिछले दो साल से हर बार रामनवमी के त्यौहार पर यहां दंगे होते रहे हैं और बड़ी संख्या में हिंदीभाषी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इसीलिए इस बार यह सीट बेहद दिलचस्प हो गई है।
स्थानीय लोगों के अनुसार विगत पांच साल में बाबुल सुप्रियो ने यहां जमकर काम किया है। इस बार भी उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। इलाके में सात विधानसभा में से पांच पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है, जबकि बाकी की दो सीटों पर माकपा ने कब्जा जमा रखा है। भाजपा के यहां एक भी विधायक नहीं है। ऐसे में बाबुल सुप्रियो के लिए इस सीट पर एकतरफा जीत दर्ज करना इतना आसान नहीं होगा। आसनसोल बर्दवान जिले में आता है। आसनसोल में रानीगंज है, जहां की कोयला खदानों से निकला कोयला पूरे देश में भेजा जाता है। आसनसोल में ही मैथन बांध है। यह जिला विश्व के सबसे तेजी से विकसित हो रहे जिलों में शामिल है। सांस्कृतिक रूप से भी यह जिला संपन्न है। यहां कई प्रसिद्द जैन मंदिर हैं। यहां की साक्षरता दर 87 प्रतिशत है। शिक्षण संस्थाओं के लिए भी यह जाना जाता है। लोरेटो जैसे स्कूल कॉलेज भी यहां पर है। यहां कई इंजीनियरिंग कॉलेज और एक गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज है।
2019 में यहां पर भजपा और ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के बीच जोरदार मुकाबला होने की संभावना है। भजपा कार्यकर्ताओं में जिस तरह का जोश है उससे बाबुल सुप्रियो का दावा मजबूत रहेगा। क्योंकि पूरे देश में उनकी पहचान है और केंद्र सरकार में वह मंत्री भी हैं। गत 23 अप्रैल को पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के लिए पश्चिम बंगाल पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस लोकसभा क्षेत्र में जनसभा की थी, जहां से राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी पर हमला बोला था।
सांप्रदायिक हिंसा का साया
कोयला खदान वाला यह इलाका हाल के समय में सांप्रदायिक हिंसा के लिए भी सुर्खियों में रहा है। सबसे ताज़ा मामला रामनवमी के मौके पर निकले जुलूस पर पथराव के बाद दो समुदायों के बीच हुए दंगों का है। घटना के बाद से पुलिस ने चुन-चुनकर भजपा के कार्यकर्ताओं को ही गिरफ्तार किया है। इससे क्षेत्र में सत्तारूढ़ तृणमूल के प्रति लोगों की नाराजगी है। संसदीय सीट के विभिन्न इलाकों में तनाव है और लोग खुलकर राजनीति पर बात नहीं करते। भजपा और तृणमूल यहां अपनी-अपनी जीत के दावे भले कर रही है, लेकिन खुद उनको भी इसका पूरा भरोसा नहीं है। यहां फ़िज़ा में पसरे सांप्रदायिक तनाव को महसूस करना भी ख़ास मुश्किल नहीं है। नुक्कड़ और चाय दुकानों पर राजनीति पर खुलेआम बहस करने की बंगाल की परंपरा यहां सिरे से गायब है।
निर्णायक है हिंदी भाषी मतदाता, संघ भी है मजबूत
आसनसोल इलाका हिंदीभाषी-बहुल है। यहां कुल वोटरों में इस तबके के 30 फीसदी लोग हिंदीभाषी हैं, जबकि अल्पसंख्यकों की तादाद लगभग 15 फीसदी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हाल के वर्षों में इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थिति लगातार मजबूत हुई है और वह हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए भजपा के लिए अनुकूल माहौल बनाने में कामयाब रहा है। दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस असंतोष से जूझ रही है। कई स्थानीय नेता मुनमुन सेन की उम्मीदवारी से नाराज़ हैं। आसनसोल नगर निगम के मेयर जितेंद्र तिवारी को यहां से टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उनकी बजाय ममता ने मुनमुन को तरजीह दी। तृणमूल के एक नेता बताते हैं कि अंदरूनी गुटबाजी पार्टी के लिए भारी साबित हो सकती है। पिछली बार भी इसी वजह से बाबुल सुप्रियो जीत गए थे और अबकी बार भी हालात लगभग वैसे ही हैं।
बाबुल का कहना है:
पुलिस हमारे कार्यकर्ताओं को बेवजह गिरफ्तार और परेशान कर रही है। उनके घरों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इलाके में पूरी तरह आतंक का मौहाल बनाया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस सरकारी तंत्र की सहायता से यहां जीत की कोशिश में जुटी है। लेकिन उनके मंसूबे पूरे नहीं होंगे। इस बार उनकी जीत का अंतर औऱ ज्यादा होगा। बांकुड़ा में हार के डर से ही मुनमुन सेन आसनसोल आई हैं।
क्या कहना है तृणमूल कांग्रेस का
तृणमूल नेता और राज्य के श्रम मंत्री मलय घटक बाबुल सुप्रियो के आरोपों को निराधार ठहराते हैं। वे कहते है कि आसनसोल के लोग जानते हैं कि गड़बड़ी कौन फैला रहा है। यहां इस बार तृणमूल ही जीतेंगी। मुनमुन सेन को उम्मीद है कि बांकुड़ा की तरह यहां भी उनको कामयाबी मिलेगी। वे कहती हैं कि इलाके के लोग भाजपा की नीतियों से परेशान हैं। बीते पांच साल में इलाके में विकास के नाम पर कोई काम नहीं हुआ है, इसलिए लोगों ने सांसद बदलने का मन बना लिया है। जीत के लिए मुनमुन के पोस्टरों में उनकी मां और पूर्व अभिनेत्री सुचित्रा सेन की तस्वीरों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
क्या कहना है माकपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों का
तृणमूल और भाजपा के अलावा कांग्रेस उम्मीदवार विश्वरूप मंडल कहते हैं कि यहां भाजपा और तृणमूल के उम्मीदवार हवाई हैं। जीत के बाद उनके दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे। इसलिए इलाके के लोग उनके ख़िलाफ़ वोट डालेंगे। वाममोर्चा उम्मीदवार गौरांग चटर्जी भी लगभग यही बात दोहराते हैं। वे कहते है कि स्थानीय भाजपा सांसद के केंद्र में मंत्री होने के बावजूद इलाके में रोज़गार समेत दूसरी समस्याएं जस की तस हैं।
कब किसने की जीत दर्ज
शुरुआत में यह सीट कांग्रेस के पास थी, इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी के पार्टी के पास आ गई। 1952 में यहां से कांग्रेस के अतुल्य घोष जीते। 1957 में कांग्रेस के मनमोहन दास को जीत मिली। 1962 में फिर कांग्रेस से अतुल्य घोष को मौका मिला और वो विजयी रहे। 1967 में एसएसपी के डी सेन को विजय मिली। 1971 में सीपीएम के रोबिन सेन को विजय मिली। 1977 में भी सीपीएम के रोबिन सेन ही विजयी रहे। 1980 में कांग्रेस के आनंद गोपाल मुखर्जी को विजय मिली। 1984 में यहां से कांग्रेस के आनंद गोपाल मुखर्जी यहां से सांसद चुने गए। 1989,91,96 में यहां से सीपीएम के हराधन रॉय लगातार तीन बार सांसद चुने गए। इसके बाद 1998, 99,2004 में सीपीएम के विकास चौधरी सांसद रहे। 2005 के बाइपोल इलेक्शन में सीपीआई (एम) के बंशगोपाल चौधरी सांसद बने। 2009 में सीपीएम के बंशगोपाल चौधरी ने सीट बचाए रखी और 2014 तक सांसद रहे। उसके बाद बाबुल सुप्रियो ने जीत दर्ज की थी।
क्या है मतदाताओं का आंकड़ा
कोयलांचल क्षेत्र होने की वजह से यहां बड़ी संख्या में बिहार उत्तर प्रदेश और झारखंड के हिंदी भाषी मतदाता हैं। इसके अलावा आदिवासी समुदाय के लोग भी बड़े पैमाने पर रहते हैं जो तृणमूल से नाराज हैं। यहां शिक्षित और शहरी लोगों की संख्या भी पश्चिम बंगाल के आम शहरों से ज्यादा है। 2011 की जनगगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 2137389 है। इसमें से19.95 फीसदी ग्रामीण हैं और 80.05 फीसदी शहरी। यहां अनुसूचित जाति और जनजाति का रेश्यो 22.57 फीसदी और 6.15 फीसदी है। 2017 की वोटर लिस्ट के मुताबिक यहां मतदाताओं की संख्या 1569569 है।
पांच में से सात विधानसभा पर तृणमूल का कब्जा
इस संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें हैं, इनमें पांच पर तृणमूल और दो पर सीपीएम के विधायकों का कब्जा हैं।
1-पंडवेश्वर से तृणमूल के कुमार जीतेंद्र जीते हैं।
2- रानीगंज से सीपीएम के रुनू दत्ता विधायक हैं।
3-जमुरिया से सीपीएम की जहानआरा खान विधायक हैं।
4-आसनसोल दक्षिण से तृणमूल के तापस बनर्जी को विजय मिली है।
5- आसनसोल उत्तर से तृणमूल के मलय घटक जीते हैं।
6- कुल्टी से तृणमूल के उज्ज्वल चटर्जी को विजय मिली है।
7-बाराबनी से तृणमूल के विधान उपाध्याय विधायक हैं।
2014 में किसे मिला था कितना वोट
2014 में भाजपा के बाबुल सुप्रियो ने तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन को हराया था। भाजपा के बाबुल सुप्रियो को 419983 वोट जबकि तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन को 349503 वोट मिले। यहां भाजपा को 36.76 फीसदी, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को 30.59 फीसदी, सीपीएम को 22.39 फीसदी और कांग्रेस को मात्र 4.25 फीसदी वोट मिले थे। 2104 के चुनाव में यहां 77.76 फीसदी वोटिंग हुई थी। जबकि 2009 के चुनाव में 71.49 फीसदी।
पांच साल में बाबुल सुप्रियो ने कितना किया काम?
वर्ष 2014 में जिन 2 सीटों पर भाजपा ने पश्चिम बंगाल में कब्जा जमाया था उनमें से एक सीट आसनसोल की थी। यहां से जीत दर्ज करने पर उपहार के तौर पर बाबुल सुप्रियो को केंद्रीय मंत्रालय में जगह दी गई। वह भारी उद्योग और पब्लिक एंटरप्राइजेज राज्यमंत्री हैं। लोकसभा में उनकी हाजिरी 45 फीसदी रही है। 16वीं लोकसभा के सदस्य के तौर पर बाबुल को अपने संसदीय क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 25 करोड़ रुपये मिले थे। बाबुल ने 72.96 फीसदी रकम खर्च कर दी है। बाकी के लिए प्रोपोजल दे दिया है। 4.51 फीसदी राशि खर्च करने के लिए बची हुई है। हालांकि बाबुल सुप्रिया अपने क्षेत्र के पसंदीदा उम्मीदवार हैं। वह लोगों से मिलते-जुलते रहते हैं और हर उस शख्स की फरियाद सुन कर उसके अनुसार काम करते हैं जो उसके पास किसी तरह की कोई समस्या लेकर जाता है। इस बार भी उनकी जीत का दावा भजपा की ओर से किया जा रहा है।

 


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