गायत्री शक्तिपीठ में परिष्कार सत्र का आयोजन

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सहरसा,09 जनवरी (हि.स.)। शहर के प्रताप नगर स्थित गायत्री शक्तिपीठ में रविवार को व्यक्तित्व परिष्कार सत्र सम्पन्न हुआ। युवाओं को संबोधित करते हुए डॉक्टर अरूण कुमार जायसवाल ने कहा सेल्फ डिशकभरी जो टर्म है,जो शब्द है।उसके तीन डायमेंशन है।तीन आयाम है।जिसमे पहला है साइकोलॉजिकल। उसमें सेल्फ डिस्कवरी का मतलब होता है। आप अपने क्षमताओं को पहचाने। आपके अंदर लिखने की क्षमता है। आपके अंदर मैनेजमेंट क्वालिटी है। आपके अंदर जो क्षमता है। उसको जानने की प्रक्रिया को साइकोलॉजी में सेल्फ डिशकभरी कहते हैं। जिस तरह कैरियर काउंसलिंग में काउंसलर आपको बताता है।आप इस तरह से करें। ऐसे करें।हमारी क्षमताओं को प्रबोधित करता है। आपको जगाता है।उद्दीप्त करता है। साइकोलॉजिस्ट, गुरु, सलाहकार, मार्गदर्शक, काउंसलर हो सकता है लेकिन करना आपको ही है, क्षमता आपके अंदर ही है।सेल्फ डिशकभरी का दूसरा आयाम है। खुद के द्वारा अपने आप की खोज करके अपने क्षमताओं को जानना। ये प्रक्रिया दार्शनिक है, ये वैचारिक प्रक्रिया है। अपने आप अपनी क्षमताओं को, रुचि को पहचानते हैं।तीसरी प्रक्रिया सेल्फ रियलाइजेशन है।वह क्षमता हमारे अंदर ही है उसे जानना है। महसूस करना है।अध्यात्म विज्ञान में इसे आत्म साक्षात्कार कहते हैं। इसमें आपको आउटसोर्स मटेरियल नहीं है। गुरु का ज्ञान, गुरु का मार्गदर्शन आपको उभारता है। गुरु प्रेरक तत्व है जो आप को प्रेरित करता है।

उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक जीवन की सबसे बड़ी बाधा प्रवचन व पुस्तक है। यह आपके वैचारिकता में उथल-पुथल तो कर सकती है, पर आपको ज्ञान में प्रतिष्ठित नहीं कर सकती। उन्होंने आगे कहा कि संस्कृति बना कैसे? संस्कृति बना है संस्कार से। संस्कृति को कल्चर भी कहते हैं। कल्टीवेट करना यानी उपजाना, उपज पैदा करना। जो आपका व्यक्तित्व है उसको किसने कल्टीवेट किया? किसने दिया? परिवार ने, समाज ने, पूर्वजों ने। जो आपका व्यक्तित्व है वो आपके परिवार ने, समाज ने आपके पीढ़ियों ने कल्टीवेट किया है। आप जो हमारे सामने हैं वो आप अपने परिवार, खानदान, समाज के प्रतिबिंब है। प्रक्षेपण है प्रोजेक्शन इसी को कहते हैं। पीढियां आपको कल्टीवेट करती रही है। इसमें सब कुछ है सिवा आपके।आध्यात्मिक दृष्टिकोण में और सामाजिक दृष्टिकोण में यही फर्क है जिसको आप व्यक्तित्व कहते हैं वह आपका संस्कार और संस्कृति है।उन्होंने कहा कि धन कमाना आपका हक है लेकिन धन दूसरों के काम आए या धन का हक है। धन से विलासिता नहीं सेवा करिए। नहीं तो वह धन आपको खानदान सहित डूबा सकता है। ध्यान से समझे- एक होती है अनिवार्यता, एक होती आवश्यकता और एक होती है विलासिता। अनिवार्यता है मिलना चाहिए आपको ठीक है, आवश्यकता है। उसकी पूर्ति भी हो जानी चाहिए पर विलासिता की पूर्ति कभी नहीं होती।आवश्यकता और अनिवार्यता छोड़कर जो संसाधन है उस पर आपका हक नहीं है उस पर समाज का हक है। धन सत्कर्मों में लगना चाहिए।


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