गाजीपुर : कांग्रेस चार तो सीपीआई, बीजेपी व सपा का तीन-तीन बार रहा है कब्जा
गाजीपुर, 04 मई (हि.स.)। गाजीपुर लोकसभा का चुनाव अंतिम चरण में होना है जो अब कुछ दिन ही शेष रह गए। फिलहाल यहां की मुख्य लड़ाई सपा-बसपा गठबंधन से बसपा उम्मीदवार अफजाल अंसारी व भाजपा उम्मीदवार वर्तमान सांसद केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के मध्य ही सिमटती नजर आ रही है, हालांकि इस सीट पर कभी कांग्रेस पार्टी का चार बार, वहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का तीन बार कब्जा रहा है, जबकि भाजपा व समाजवादी पार्टी ने भी तीन-तीन बार कब्जा जमाया है। वहीं 1977 में बीएलडी के संयुक्त उम्मीदवार ने भी एक बार जीत दर्ज कराई है। सबसे बड़ी बात अब तक बहुजन समाज पार्टी का इस सीट से खाता नहीं खुला है, जबकि सपा बसपा गठबंधन में बसपा के हिस्से में यह सीट गई है।
गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आने के बाद 1957 में हरप्रसाद सिंह नेशनल कांग्रेस से सांसद चुने गए। उसके बाद 1967 व 71 में भाकपा के बैनर से सरजू पांडेय लगातार दो बार सांसद चुने गए। 1977 में बीएलडी के बैनर तले गौरीशंकर राय ने बाजी मारी, फिर 1984 में कांग्रेस के जैनुल बशर लगातार दो बार सांसद रहे, जबकि 1989 में कांग्रेस पार्टी के ही जगदीश कुशवाहा को देश की सबसे बड़ी पंचायत में जाने का अवसर प्राप्त हुआ।
1991 के बाद गाजीपुर से कांग्रेस का अंत
1991 में भाकपा के बैनर तले विश्वनाथ शास्त्री सांसद चुने गए, कहीं न कहीं यहीं से कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के राज का अंत सा हो गया, क्योंकि इसके बाद गाजीपुर में प्रमुख राजनीतिक पार्टी के रूप में उपस्थिति दर्ज कराने वाले कांग्रेस व भाकपा कभी चुनाव जीतना तो दूर की बात मुख्य लड़ाई में भी नहीं शामिल हो सके। 1996 में मनोज सिन्हा भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले लगभग एक लाख मतों के अंतर से सांसद चुने गए, वहीं 1998 में समाजवादी पार्टी से ओमप्रकाश सिंह ने मनोज सिन्हा को शिकस्त देते हुए गाजीपुर में सपा का खाता खोला, हालांकि एक वर्ष बाद ही 1999 में मनोज सिन्हा ने ओमप्रकाश सिंह को पराजित कर अपनी हार का बदला लिया और दूसरी बार संसद में प्रवेश किए।
2004 का चुनाव में सर्वाधिक रक्तरंजित
वहीं 2004 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के बैनर तले अफजाल अंसारी ने मनोज सिन्हा को परास्त कर संसद में प्रवेश किया। यह चुनाव गाजीपुर के इतिहास में अब तक का सबसे रक्तरंजित चुनाव माना गया, जिसमें लगातार हत्याओं का दौर चलता रहा। 2009 के लोकसभा चुनाव में वर्तमान सांसद अफजाल अंसारी पाला बदलकर बसपा में शामिल हो गए तो नए परिसीमन के तहत भौगोलिक रूप से बदल चुकी गाजीपुर की संसदीय सीट पर समाजवादी पार्टी से राधेमोहन सिंह प्रत्याशी बने, जिन्होंने अफजाल अंसारी को लगभग 60 हजार मतों से चुनाव में शिकस्त दी।
2009 में बसपा से अफजाल रहे थे उप विजेता
इस चुनाव में मनोज सिन्हा बलिया से चुनाव लड़ रहे थे। उसके बाद पुनः 2014 के लोकसभा चुनाव में मनोज सिन्हा गाजीपुर से भाजपा उम्मीदवार बने जो तीसरी बार सांसद बनकर केंद्र सरकार में मंत्री बने। ध्यान देने वाली बात यह की गाजीपुर संसदीय सीट से अब तक बहुजन समाज पार्टी का खाता नहीं खुल सका था। हालांकि 1996 में यूनुस, वही 2009 में अफजाल अंसारी बहुजन समाज पार्टी के बैनर तले चुनाव की मुख्य लड़ाई में उपविजेता रहे।
1991 के बाद भाकपा की जमीन खिसक गयी
एक तरफ जहां बसपा का अब तक खाता न खुलना चर्चा में रहा, वहीं 1991 से पूर्व कांग्रेस पार्टी के चार बार व भाकपा की तीन बार सफलता के बावजूद उनकी पार्टियां 1991 के बाद मुख्य लड़ाई तक में शामिल नहीं हो सकी। अब वर्ष 2019 में भी इन दोनों पार्टियों के प्रत्याशी महज अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की स्थिति में ही आ जाए तो बड़ी बात कही जाएगी। वहीं कभी खाता न खोल सकने वाली बसपा का उम्मीदवार इस बार गठबंधन उम्मीदवार के रूप में जातिगत आधार पर मैदान में भाजपा मनोज सिन्हा के सामने डटा हुआ है।