गया (सु) सीट भाजपा का रही है गढ़
गया, 15 फरवरी (हि.स.)।गया संसदीय क्षेत्र जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाता है। 1971 में लोकसभा चुनाव हुआ था। बांग्लादेश के निर्माण के बाद इंदिरा गांधी की लहर थी।तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम के पुत्र सुरेश राम कांग्रेस की ओर से चुनाव मैदान में थे। दूसरी ओर, जनसंघ ने ईश्वर चौधरी को अपना प्रत्याशी बनाया।उस वक्त जनसंघ के दो प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। इनमें गया (सु.) संसदीय क्षेत्र से ईश्वर चौधरी शामिल थे। कृष्णा चौधरी, रामजी मांझी और हरि मांझी भाजपा प्रत्याशी के रूप में गया संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वर्तमान में हरि मांझी 2009 से लगातार दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। आरक्षित होने के पूर्व गया से कांग्रेस के ब्रजेश्वर प्रसाद ने लोकसभा में प्रतिनिधितत्व किया था।ब्रजेश्वर प्रसाद महान स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य थे।
गया संसदीय क्षेत्र अंतर्गत गया नगर, बोधगया, शेरघाटी, वजीरगंज, बेलागंज और बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र आते हैंं।
गया संसदीय क्षेत्र में राष्ट्रीय जनता दल का मजबूत जनाधार रहा है। पूर्व में जनता दल और राजद प्रत्याशी के रूप में राजेश कुमार,भागवती देवी एवं राजेश मांझी गया से सांसद निर्वाचित हो चुके हैं।
पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हरि मांझी ने राजद प्रत्याशी रामजी मांझी को 1,15,504 मतों से शिकस्त दी थी। वहीं, जनता दल यूनाइटेड के प्रत्याशी रहे जीतन राम मांझी तीसरे पायदान पर थे।
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हरि मांझी को 3,26,230 मत मिले थे।राजद प्रत्याशी रामजी मांझी को 2,10,728 मत प्राप्त हुआ था।
लेकिन चुनाव मैदान में करारी शिकस्त के बाद जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री बने।श्री मांझी मुख्यमंत्री के रूप में सूबे में अपनी एक अलग पहचान बनाने में न केवल कामयाब रहे बल्कि महादलित समाज के एक बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आए।
वहीं,राजनीतिक गलियारों में हो रही चर्चा के अनुसार महागठबंधन की ओर से “हम” सेक्युलर के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी गया संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में प्रत्याशी हो सकते हैं। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी हरि मांझी के लिए मुकाबला इस बार आसान नहीं होगा।
महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर अबतक अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है। राजनीतिक गलियारों में हो रही चर्चा के अनुसार “हम”पार्टी को यदि रालोसपा और अन्य छोटे दलों की अपेक्षा कम सीटें मिली तो चुनाव त्रिकोणीय होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। जीतनराम मांझी एनडीए में वापस लौटने की संभावना से इंकार कर रहे हैं लेकिन एनडीए के सम्पर्क में “हम” पार्टी के कई वरिष्ठ नेता हैं। राजनीति संभावनाओं का खेल है। ऐसे में महागठबंधन में सीट शेयरिंग तक इंतजार करना होगा।सीट शेयरिंग की घोषणा के बाद बिहार में राजनीति की दशा और दिशा बदलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है जिसका असर एनडीए और महागठबंधन के प्रत्याशियों पर पड़ना तय है।