गठबंधन में जगह नहीं मिलने से सियासी दोराहे पर रालोद मुखिया
मेरठ, 15 जनवरी (हि.स.)। जोड़-तोड़ और गठबंधन के विशेषज्ञ समझे जाने वाले रालोद मुखिया अजित सिंह अब अपने ही दांव में उलझकर रह गए हैं। सपा-बसपा गठजोड़ में मनमाफिक एंट्री नहीं मिलने से अजित सिंह सियासी दोराहे पर पहुंच गए हैं। उनके सामने अपना सियासी अस्तित्व बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है।
सपा और बसपा गठबंधन ने रालोद को केवल दो लोकसभा सीटें देने की बात कहकर अजित सिंह को आईना दिखा दिया है। अभी तक जोड़-तोड़ से राजनीति करने वाले अजित सिंह के लिए यह एक बड़ा झटका है। अब रालोद मुखिया नए सियासी गठबंधन की जुगत में लगे हैं, लेकिन इसमें भी कई बाधाएं हैं।
सियासी अस्तित्व दांव पर
रालोद मुखिया ने कभी कांग्रेस, सपा तो कभी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। एक बार भारतीय किसान यूनियन के साथ मिलकर भारतीय किसान कामगार पार्टी तक बनाई। 2007 में बसपा के साथ भी बिना बुलाए जा खड़े हुए थे। अजित सिंह की इसी बेभरोसे की शैली का दुष्परिणाम हुआ कि आज रालोद को कोई अपना सियासी दोस्त नहीं बनाना चाहता। 2014 के लोकसभा चुनावों में अपना वोट बैंक गंवा चुके रालोद नेता उसे फिर से सहेजने में जुटे हैं, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में रालोद को फिर करारा झटका लगा। अब 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद के सियासी अस्तित्व का प्रश्न खड़ा हो गया है।
दो से ज्यादा सीट देने को नहीं तैयार
रालोद मुखिया की मंशा सपा-बसपा गठबंधन से चार से छह लोकसभा सीटें हासिल करने की थी| लेकिन माया-अखिलेश ने केवल दो सीटें देने की बात कहकर अजित सिंह को करारा झटका दिया है। सूत्रों का कहना है कि गठबंधन ने रालोद को केवल मथुरा और बागपत लोकसभा सीट देने की बात कही है। जबकि अजित सिंह ने बागपत, मथुरा के साथ-साथ कैराना, मुजफ्फरनगर और मेरठ की बात रखी थी। बागपत से वह अपने बेटे जयंत चैधरी को और मुजफ्फरनगर से खुद चुनाव मैदान में उतरने के इच्छुक थे।
कांग्रेस और भाजपा के साथ जाने में असमंजस
पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अजित सिंह में पाला खींचा रहा। उस समय अजित सिंह का काफी जनाधार था। अजित सिंह 1989, 1991, 1996, 1999, 2004 और 2009 में बागपत से सांसद चुने गए। 2009 में मथुरा से उनके बेटे जयंत चौधरी सांसद बने। इसके बाद से ही रालोद का जनाधार लगातार गिरता जा रहा है। बड़ा सवाल यह रालोद मुखिया अब किससे गठजोड़ करें| कांग्रेस से गठजोड़ में उन्हें कोई फायदा नजर नहीं आता तो भाजपा के पाले में जाने से भी जीत की गारंटी नहीं दिखती|