केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एजेंसियों को कंप्यूटर जांच की खुली छूट नहीं दी गई है

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10 एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर की निगरानी की अनुमति देने संबंधी याचिका पर सुनवाई टली
नई दिल्ली, 01 मार्च (हि.स.)। 10 एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर की निगरानी की अनुमति देने वाली केंद्रीय गृह मंत्रालय की अधिसूचना के खिलाफ दायर याचिका के मामले में केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा है कि कम्प्यूटर और फोन पर मेल, मैसेज, डेटा इंटरसेप्ट करने के लिए एजेंसियों को कोई ब्लैंकेट परमिशन (खुली छूट) नहीं दी गई है। केंद्र सरकार ने कहा है कि यह नया कदम अवैध निगरानी को प्रतिबंधित करता है। सरकार ने मेल, सोशल मीडिया मैसेज, डेटा की निगरानी पर 20 दिसंबर की अधिसूचना को सही ठहराया है। आज ये मामला चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष पहले से लिस्टेड था| लेकिन जस्टिस रंजन गोगोई के समधी और दिल्ली हाईकोर्ट के सिटिंग जज जस्टिस वाल्मिकी मेहता की मौत की वजह से यह बेंच नहीं बैठी।
याचिकाकर्ता और वकील मनोहर लाल शर्मा ने जस्टिस एके सिकरी की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष इस मामले पर सुनवाई करने का आग्रह किया| लेकिन जस्टिस सिकरी ने कहा कि आप अगले दिन चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष इसे मेंशन कीजिएगा।
याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय का आदेश निजता के अधिकार का उल्लघंन करता है। याचिका में इस अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की गई है।
20 दिसंबर 2018 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 10 जांच एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर की निगरानी का अधिकार देने वाली अधिसूचना जारी की थी। इस आदेश के बाद जांच एजेंसियां सुरक्षा के नाम पर किसी भी कंप्यूटर की निगरानी, कंप्यूटर में मौजूद दस्तावेज और बाकी चीजें बिना इजाजत के खंगाल सकती हैं।
जिन एजेंसियों को ये अधिकार दिया गया है उनमें आईबी, ईडी, सीबीआई, एनआईए, लॉ, दिल्ली पुलिस के कमिश्नर, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, सीबीडीटी, डीआरआई और डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस शामिल हैं।


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