काबर के किसानों की आह कौन सुनेगा ,किसे है परवाह
बेगूसराय, 23 फरवरी (हि.स.)। भारत के संविधान ने लोगों को सम्पत्ति का अधिकार दिया है। इसके तहत किसान अपनी जमीन की मालगुजारी सरकार को देंगे। वह अपनी जमीन किसी को भी बेच सकता है और किसी से खरीद सकता है। कुछ कानून ऐसे भी हैं, जिसे लागू हो जाने पर वह जमीन बेच नहीं सकता लेकिन इन कानूनों की आड़ में कुछ लोग पिस भी जाते हैं। ऐसा ही मामला है बिहार के बेगूसराय जिला स्थित एशिया प्रसिद्ध काबर झील क्षेत्र का। पहले इसमें सात -आठ माह पानी रहता था। यहां दूर देश से साइबेरियन पक्षी आते थे लेकिन अब न तो झील में पानी रहता है और न ही बड़ी संख्या में पक्षी आते हैं। बाबजूद इसके लिए बनाये गए नियमों के कारण मालगुजारी देने के बाद भी किसान अपनी जमीन नहीं बेच सकते । भले ही उनकी बेटी की शादी हो या न हो, बच्चे पैसे के अभाव में उच्च शिक्षा भले ग्रहण नहीं कर सकें या इलाज के आभाव में उनकी जान ही क्यों न चली जाए।
पक्षी आश्रयणी के लिए गलत परिसीमन दिए जाने से क्षेत्र के कुछ किसानों ने सन 1986 में डीएम से बगावत कर दी। जब मामला कोर्ट में पहुंचा तो जिला प्रशासन ने काबर झील की 5467.76 एकड़ जमीन का जिला गजट कर उसे सुरक्षित कर दिया । इस पर आपत्ति दर्ज कराने की जानाकरी के अभाव में 90 फीसदी किसान अपनी आपत्ति दर्ज नहीं करवा पाए। हालांकि कुछ जागरूक किसानों ने आपत्ति दर्ज कराई तो उनकी जमीन को सुरक्षित एरिया से निकाल दिया गया लेकिन उसमें रकबा और बढ़ाकर 15780 एकड़ में राज्य गजट के लिए अनुशंसा कर दी गयी।
20 फरवरी, 1986 में जिला गजट और 20 जून 1989 में राज्य गजट की ओर से क्षेत्र की करीब 15780 एकड़ भूमि को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 18 के तहत सुरक्षित कर दिया गया। इसके अन्तर्गत किसानों की ओर से खेतों में फर्टिलाइजर, पेस्टीसाइड, पम्पिंग सेट के उपयोग, खर- पतवार जलाने, सूखा जलावन घर ले जाने तथा मजदूरों को खेत पर ले जाने पर रोक लगा दी गई।
वन्य संरक्षण की धारा 1927 तथा वन्यजीव संरक्षण आश्रयणी की धारा 1972 के अन्तर्गत मंझौल की 1386.48 हेक्टेयर, जयमंगलपुर की 420.48, जयमंगलागढ़ की 38.45, सकड़ा की 119.38, रजौड़ की 429.79, कनौसी की 105.63, श्रीपुर एकम्बा की 3055.04, परोड़ा की 64.35, नारायणपीपर की 574.67 तथा मणिकपुर की 117.36 हेक्टेयर, कुल 6311.63 हेक्टेयर(15780 एकड़, लगभग 21 हजार बीघा) जमीन संरक्षित की गयी है।
यह मामला आगे बढ़ा तो एक अक्टूबर,2008 को पूर्णिया के वन संरक्षक सीपी खण्डूजा ने अपर प्रधान मुख्य संरक्षक को लिखा कि 15780 एकड़ के संरक्षित क्षेत्र में एक अंश भी वन नहीं है और विभाग के पास कोई कागजात भी नहीं है। उन्होंने कहा था कि अधिसूचित में से 5095 एकड़ गैर मजरुआ जमीन है और उसमें अधिकांश की बंदोबस्ती भी हो चुकी है लेकिन इसके बाद भी पांच जनवरी,2013 को डीएम ने 1989 के बाद काबर परिक्षेत्र में की गयी जमीन की सभी रजिस्ट्री को खारिज करते हुए, जमीन की खरीद-बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी।
अब हालत यह हो गई है कि जमीन की बिक्री नहीं होने से कई किसान बच्चों की उच्च शिक्षा, बेटी की शादी, गम्भीर बीमारियों के उचित इलाज की आशा में स्वर्ग सिधार गए। जिस क्षेत्र की जमीन की खरीद- बिक्री पर रोक लगा दी गयी, उसके तहत संरक्षित क्षेत्र में भू-स्वामी की ओर से कुछ नहीं किया जा सकता है जबकि इसी क्षेत्र में प्रशासन ने आइबी, किसान भवन, विद्यालय का पक्का निर्माण कर दिया।
स्थानीय किसानों ने कई बार डीएम से पीएम तक गुहार लगाई। 2017 को मंझौल आए तत्कालीन राज्यपाल (वर्तमान राष्ट्रपति) रामनाथ कोविंद तक भी मामले को पहुंचाया । 2018 में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को भी किसानों की पीड़ा से अवगत कराया गया। दिवंगत हो चुके सांसद डॉ भोला सिंह ने सदन में आवाज उठाई लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं।
काबर के किसान मंझौल निवासी प्रभात भारती का कहना है कि वन्यजीव संरक्षण के नाम पर 31 वर्षों से किसान बदहाल हैं। देश में कहीं भी इतने बड़े भू-भाग पर विसंगत गजट नहीं किया गया। सरकार को 119 साल से मालगुजारी दे रहे हैं लेकिन जमीन बेच नहीं सकते। प्रकृति के अनुपम नजारों से ओतप्रोत काबर पर आश्रित लोगों का धान(चावल) और मछली मुख्य भोजन था। परंतु सरकारी अदूरदर्शिता से 5 लाख से अधिक की आबादी परेशान है। विसंगतियों का आलम यह है कि तत्कालीन जिला प्रशासन ने बेलगान जमीन को भी सुरक्षित कर दिया जबकि बेलगान जमीन, जमींदार अपने रैयतों को वास के लिए देते थे उस पर रैयतों से लगान नहीं लिया जाता था।
भारती ने बताया कि जमीन की खरीद-बिक्री होने से कोई जमीन को उठाकर नहीं ले जाता है, ऊपर से सरकार को राजस्व भी मिलता था। काबर के बीच में 181 बीघा जमीन पर मां जयमंगला का मंदिर एवं टीला है। इसमें खेसरा संख्या एक से ग्यारह तक में रकवा 181 बीघा जमीन है जिसमें करीब 100 बीघा जमीन ली गयी और रैयतों को बाकी की 81 बीघा जमीन से भी बेदखल कर दिया गया।
मामला हाई प्रोफाइल होने के बाद सात सितम्बर,2018 को जयमंगला गढ़ के वन्य परिसर में राज्य वन्य प्राणी पर्षद ने विकास आयुक्त की अध्यक्षता में टीम गठित की।टीम ने वन एवं पर्यावरण विभाग सह जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव त्रिपुरारी शरण के नेतृत्व में बैठक की। बैठक में किसान एवं मछुआरा समुदाय के बीच पूर्व से तैयार मसौदा(आलेख) के आधार पर एक नए कानून को मूर्तरूप देना था जिसमें अधिकारियों ने वन्य जीव संरक्षण आश्रयणी में अधिसूचित 6311.63 हेक्टेयर जमीन की अधिसूचना को विसंगतिपूर्ण करार दिया। लेकिन अधिसूचित क्षेत्र में सुधार की बजाय आद्र भूमि संरक्षण एव संवर्धन कानून के अन्तर्गत 146 हेक्टेयर बसही और 3000 हेक्टेयर कावर ताल भूमि(वर्ष 1989 में वन्य जीव संरक्षण आश्रण्यी अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित) को लेकर पुन: अधिसूचना की बातें कही गयीं ।इसपर काबर किसान महासभा ने आपत्ति दर्ज कराई है लेकिन इस घोषणा के छह माह बाद भी कहीं से सुगबुगाहट नहीं हो रही है जिससे किसानों का हौसला पस्त होता जा रहा है।
पक्षी आश्रयणी के लिए गलत परिसीमन दिए जाने से क्षेत्र के कुछ किसानों ने सन 1986 में डीएम से बगावत कर दी। जब मामला कोर्ट में पहुंचा तो जिला प्रशासन ने काबर झील की 5467.76 एकड़ जमीन का जिला गजट कर उसे सुरक्षित कर दिया । इस पर आपत्ति दर्ज कराने की जानाकरी के अभाव में 90 फीसदी किसान अपनी आपत्ति दर्ज नहीं करवा पाए। हालांकि कुछ जागरूक किसानों ने आपत्ति दर्ज कराई तो उनकी जमीन को सुरक्षित एरिया से निकाल दिया गया लेकिन उसमें रकबा और बढ़ाकर 15780 एकड़ में राज्य गजट के लिए अनुशंसा कर दी गयी।
20 फरवरी, 1986 में जिला गजट और 20 जून 1989 में राज्य गजट की ओर से क्षेत्र की करीब 15780 एकड़ भूमि को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 18 के तहत सुरक्षित कर दिया गया। इसके अन्तर्गत किसानों की ओर से खेतों में फर्टिलाइजर, पेस्टीसाइड, पम्पिंग सेट के उपयोग, खर- पतवार जलाने, सूखा जलावन घर ले जाने तथा मजदूरों को खेत पर ले जाने पर रोक लगा दी गई।
वन्य संरक्षण की धारा 1927 तथा वन्यजीव संरक्षण आश्रयणी की धारा 1972 के अन्तर्गत मंझौल की 1386.48 हेक्टेयर, जयमंगलपुर की 420.48, जयमंगलागढ़ की 38.45, सकड़ा की 119.38, रजौड़ की 429.79, कनौसी की 105.63, श्रीपुर एकम्बा की 3055.04, परोड़ा की 64.35, नारायणपीपर की 574.67 तथा मणिकपुर की 117.36 हेक्टेयर, कुल 6311.63 हेक्टेयर(15780 एकड़, लगभग 21 हजार बीघा) जमीन संरक्षित की गयी है।
यह मामला आगे बढ़ा तो एक अक्टूबर,2008 को पूर्णिया के वन संरक्षक सीपी खण्डूजा ने अपर प्रधान मुख्य संरक्षक को लिखा कि 15780 एकड़ के संरक्षित क्षेत्र में एक अंश भी वन नहीं है और विभाग के पास कोई कागजात भी नहीं है। उन्होंने कहा था कि अधिसूचित में से 5095 एकड़ गैर मजरुआ जमीन है और उसमें अधिकांश की बंदोबस्ती भी हो चुकी है लेकिन इसके बाद भी पांच जनवरी,2013 को डीएम ने 1989 के बाद काबर परिक्षेत्र में की गयी जमीन की सभी रजिस्ट्री को खारिज करते हुए, जमीन की खरीद-बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी।
अब हालत यह हो गई है कि जमीन की बिक्री नहीं होने से कई किसान बच्चों की उच्च शिक्षा, बेटी की शादी, गम्भीर बीमारियों के उचित इलाज की आशा में स्वर्ग सिधार गए। जिस क्षेत्र की जमीन की खरीद- बिक्री पर रोक लगा दी गयी, उसके तहत संरक्षित क्षेत्र में भू-स्वामी की ओर से कुछ नहीं किया जा सकता है जबकि इसी क्षेत्र में प्रशासन ने आइबी, किसान भवन, विद्यालय का पक्का निर्माण कर दिया।
स्थानीय किसानों ने कई बार डीएम से पीएम तक गुहार लगाई। 2017 को मंझौल आए तत्कालीन राज्यपाल (वर्तमान राष्ट्रपति) रामनाथ कोविंद तक भी मामले को पहुंचाया । 2018 में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को भी किसानों की पीड़ा से अवगत कराया गया। दिवंगत हो चुके सांसद डॉ भोला सिंह ने सदन में आवाज उठाई लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं।
काबर के किसान मंझौल निवासी प्रभात भारती का कहना है कि वन्यजीव संरक्षण के नाम पर 31 वर्षों से किसान बदहाल हैं। देश में कहीं भी इतने बड़े भू-भाग पर विसंगत गजट नहीं किया गया। सरकार को 119 साल से मालगुजारी दे रहे हैं लेकिन जमीन बेच नहीं सकते। प्रकृति के अनुपम नजारों से ओतप्रोत काबर पर आश्रित लोगों का धान(चावल) और मछली मुख्य भोजन था। परंतु सरकारी अदूरदर्शिता से 5 लाख से अधिक की आबादी परेशान है। विसंगतियों का आलम यह है कि तत्कालीन जिला प्रशासन ने बेलगान जमीन को भी सुरक्षित कर दिया जबकि बेलगान जमीन, जमींदार अपने रैयतों को वास के लिए देते थे उस पर रैयतों से लगान नहीं लिया जाता था।
भारती ने बताया कि जमीन की खरीद-बिक्री होने से कोई जमीन को उठाकर नहीं ले जाता है, ऊपर से सरकार को राजस्व भी मिलता था। काबर के बीच में 181 बीघा जमीन पर मां जयमंगला का मंदिर एवं टीला है। इसमें खेसरा संख्या एक से ग्यारह तक में रकवा 181 बीघा जमीन है जिसमें करीब 100 बीघा जमीन ली गयी और रैयतों को बाकी की 81 बीघा जमीन से भी बेदखल कर दिया गया।
मामला हाई प्रोफाइल होने के बाद सात सितम्बर,2018 को जयमंगला गढ़ के वन्य परिसर में राज्य वन्य प्राणी पर्षद ने विकास आयुक्त की अध्यक्षता में टीम गठित की।टीम ने वन एवं पर्यावरण विभाग सह जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव त्रिपुरारी शरण के नेतृत्व में बैठक की। बैठक में किसान एवं मछुआरा समुदाय के बीच पूर्व से तैयार मसौदा(आलेख) के आधार पर एक नए कानून को मूर्तरूप देना था जिसमें अधिकारियों ने वन्य जीव संरक्षण आश्रयणी में अधिसूचित 6311.63 हेक्टेयर जमीन की अधिसूचना को विसंगतिपूर्ण करार दिया। लेकिन अधिसूचित क्षेत्र में सुधार की बजाय आद्र भूमि संरक्षण एव संवर्धन कानून के अन्तर्गत 146 हेक्टेयर बसही और 3000 हेक्टेयर कावर ताल भूमि(वर्ष 1989 में वन्य जीव संरक्षण आश्रण्यी अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित) को लेकर पुन: अधिसूचना की बातें कही गयीं ।इसपर काबर किसान महासभा ने आपत्ति दर्ज कराई है लेकिन इस घोषणा के छह माह बाद भी कहीं से सुगबुगाहट नहीं हो रही है जिससे किसानों का हौसला पस्त होता जा रहा है।