कश्मीर नहीं, विभाजन ही असल समस्या
भारत का स्वभाव राष्ट्रभाव है। कश्मीर में पुलवामा की घटना के बाद यही राष्ट्रभाव चारों ओर प्रकट हो रहा है। यह अतिराष्ट्रवाद नहीं है। यह राजनीतिक दल- तंत्र के किसी अभियान का परिणाम नहीं है। यह स्वाभाविक है। यह भारत के सभी राज्यों -क्षेत्रों में एक समान प्रकट हो रहा है। यह राष्ट्रध्वज लेकर सड़क पर आक्रोश प्रकट करने वाले जनगण का स्वाभाविक मन है। इस सामूहिक अभिव्यक्ति में क्षेत्र राज्य और जाति पंथ की संकीर्णताएं टूट गई हैं। रात के 12 बजे भी तिरंगा लेकर भारत माता का जयघोष करने वाले स्वयं को सिर्फ और सिर्फ भारत माता की संतान मानते हैं। यहां पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण के भेद नहीं हैं। समूचा देश सी.आर.पी.एफ. के जवानों की हत्या से उद्वेलित है। मैंने अपने 56 वर्ष के सार्वजनिक जीवन में ऐसा स्वतः स्फूर्त उद्वेलन कभी नहीं देखा। मैंने अपने जनपद उन्नाव के शहीद जवान अजीत के शव के सामने हजारों लोगों को रोते बिलखते देखा है। जिला केन्द्र उन्नाव से गंगाघाट के अन्त्येष्टि स्थल की दूरी 15किलोमीटर है। 15-16 किलोमीटर की पूरी सड़क व्यथित लोगों से भरी थी। छतों पर भीड़ थी, सड़क पर महिलाएं रो रही थीं। छोटे-छोटे बच्चे भी रो रहे थे। शहीद युवक की शवयात्रा में हजारों का विलाप आश्चर्यजनक और अभूतपूर्व था। मैने पूरी यात्रा में 7 घंटे तक प्रतिपल लोकव्यथा का अनुभव किया है। यह भारत के मन की ही अभिव्यक्ति है।
समय को ठहर जाते देखा है मैंने। वह भीड़ एक सप्ताह बाद भी मेरे मनस- तंत्र में है। तब प्रकृति की सारी गतिविधि रुक गई थी हमारे सामने। टी.वी. चैनल के समाचार वाचक भी भावुक देखे गए। जनगणमन का ऐसा ही उद्वेलन सभी राज्यों में था। ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे राष्ट्रचित्त की व्यथा प्रकट करने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महान भारतीय गणतंत्र के प्रतिनिधि के रूप में भारत व्यथा को अभिव्यक्ति दी। सारी दुनिया को भारत का दुख बताया। उन्होंने हमलावर पड़ोसी को निश्चयात्मक चेतावनी दी। भारत आश्वस्त है। पूरा तंत्र सक्रिय है। थोड़े समय के भीतर ही हमले का मास्टरमाइंड आतंकी ढेर हो गया। पाकिस्तान भयग्रस्त है। वह वार्ता की चिरौरी कर रहा है। लेकिन सबूत मांग रहा है। सबूत स्पष्ट हैं। आईने की तरह साफ है। पाकिस्तान की धरती पर मौज से सरकारी सुरक्षा में रहने वाले अजहर के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ली। अब क्या सबूत चाहिए? पहले की तमाम आतंकी वारदात में भारत ने मजबूत सबूत दिये थे। पाकिस्तान ने तब कोई कार्रवाई नहीं की। भारत सरकार ने आगे कोई सबूत न देने की घोषणा की है। यही उचित भी है।
पाकिस्तान सच्चे अर्थ में राष्ट्र नहीं है। राष्ट्रनिर्माण का मुख्य घटक संस्कृति है। पाकिस्तान का जन्म मजहबी कट्टरवाद से हुआ। भारत तोड़कर पाकिस्तान बनाने की मांग इस्लाम के आधार पर मुस्लिम लीग ने की थी। इस मांग पर गांधी जी ने मोहम्मद अली जिन्ना को पत्र लिखा था। गांधी जी ने आग्रह किया था कि जिन्ना भारत को अखण्ड रहने दें। अखण्ड भारत की जनता भी यही चाहती थी लेकिन जिन्ना ने गांधी जी को पत्र का घटिया जवाब दिया कि हम मुसलमान अलग मजहब हैं। हमारा इतिहास अलग है। हमारी तहजीब अलग है इसलिए मुसलमान अलग कौम राष्ट्र है। तमाम कोशिशें हुई लेकिन देश बंट गया। पाकिस्तान नाम का अप्राकृतिक राष्ट्र बना। भारत की श्रद्धेय सरस्वती पाकिस्तानी हो गईं। भारत के श्रद्धेय प्रथम व्याकरणाचार्य पाणिनि की जन्मस्थली मुल्तान भी पाकिस्तान में है। हमारी प्राचीन सभ्यता का केन्द्र सिंधु नदी और मोहनजोदड़ो भी अब पाकिस्तानी हैं और देवल ऋषि की तपस्थली भी। हम भारत के लोग मन मसोसते हैं। विभाजन के घाव रिसते हैं। कोढ़ में खाज और भी हैं कि पास्तिानी आतंकी भेजता है, भारत की धरती पर भारत का रक्त बहता है।
दरअसल विभाजन का फैसला ही गलत था। अप्राकृतिक था। गैरजरूरी था। जम्मू-कश्मीर न कोई समस्या था और न है। भारत विभाजन के गुनहगार माउंट बैटेन और जिन्ना ही असली समस्या थे। इनका अपराध आज की पीढ़ी भुगत रही है। जिन्ना और मुस्लिम लीग ने घटिया राजनीति की। मुसलमानों को अलग ‘राष्ट्र’ बताया। गांधी, तिलक, विपिन चन्द्र पाल और सरदार पटेल वाली कांग्रेस ने भी सनातन संस्कृति को राष्ट्र का धारक नहीं जाना। मुलसलमान भारतीय संस्कृति से अलग नहीं हैं। लेकिन मुस्लिम लीगी कट्टरता से साम्प्रदायिकता आयी। साम्प्रदायिकता से अलगाववाद आया और अलगाववाद से आया विभाजन।
विभाजन के बाद भारत एकात्म राज्य हो गया। इसके सभी राज्यों के विलय में सरदार पटेल कामयाब हुए। सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही शेष रहा। यह पं. नेहरू के हिस्से था। इसी बीच पाकिस्तान ने 5 हजार छद्म कबाइली सैनिकों को लेकर हमला (22 अक्टूबर 1947) कर दिया। 4 दिन बाद (26 अक्टूबर, 1947) महाराजा हरी सिंह ने भारत में कश्मीर के विलय की घोषणा की। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को दौड़ाया। पं. नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र संघ को पाकिस्तानी हमले की शिकायती अर्जी (1 जनवचरी 1948) दी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भारत और पाक से यथास्थिति की अपील (6 जनवरी 1948) की। परिषद ने एक प्रस्ताव (17 अप्रैल, 1948) में मध्यस्थता के लिए 5 सदस्यीय आयोग बनाने की सिफारिश की। बाद (13 अगस्त 1948) के प्रस्ताव में परिषद ने पाकिस्तान से अपनी सेना हटाने, हिन्दुस्तान से अपनी सेना घटाने की बात कही। इस तरह युद्ध विराम (1 जनवरी, 1949) लागू हुआ। 14 मार्च 1950 को परिषद ने दोनों देशों से बातचीत के लिए सर ओवेन डिक्सन को अपना प्रतिनिधि बनाया। डिक्सन ने जम्मूकश्मीर को तीन भागों में बांटने की योजना बनाई। पहला-जो भारत में रहने का इच्छुक है। दूसरा-जो पाक में रहना चाहता है और तीसरा जो संशय में है। डिक्सन ने तीसरे हिस्से में जनमत संग्रह का सुझाव दिया। इस प्रस्ताव को भारत व पाक दोनों ने ठुकरा दिया।
जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम आबादी का बहुमत है। पाकिस्तान वहाॅ जनमत संग्रह चाहता है। 57 इस्लामी देशों ने 15 वर्ष पहले इस समस्या को अंतरराष्ट्रीय इस्लामी बेचैनी बनाया था। पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर समस्या का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिशें लगातार की हैं। भारतीय संसद ने एक प्रस्ताव (22 फरवरी 1994)के जरिए पूरे जम्मू कश्मीर को अपना अभिन्न अंग माना है। इस प्रस्ताव के खण्ड “ग” में कहा गया ’’सदन की मांग है कि पाकिस्तान को भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के उस हिस्से को खाली कर देना चाहिए जिस पर उसने बलपूर्वक कब्जा कर रखा है।’’
पाकिस्तान राष्ट्र राज्य नहीं है। पाकिस्तान निर्माण के समय एक इस्लामी विद्वान दुर्रानी ने ‘मीनिंग ऑफ पाकिस्तान’ किताब लिखी थी। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान एक सैनिक छावनी है। इसी के माध्यम से भारत को मजहबी राज बनाना है। भारत पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रायोजित आतंकी हमलों का निशाना है। सारी दुनिया जानती है कि पीछे 15-20 वर्ष की आतंकी घटनाएं भारत पर हमला हैं। भारत पाक के बीच कोई तीन दर्जन शिखर वार्ताएं हो चुकी हैं। चार घोषित युद्ध हो चुके हैं। पाकिस्तान में लोकतंत्र है नहीं। सेना का राज है। प्रधानमंत्री सेना के मुखौटे हैं। पुलवामा घटना युद्ध है। पाक की तरह से युद्ध जारी है और जारी युद्ध का विकल्प खोजना आसान नहीं होता।