कब तक टलती रहेगी सुनवाई की तारीख : विनय के पाठक

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सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामला
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई को एक बार फिर नई तारीख मिल गई। अदालत ने एक मिनट से कम चली सुनवाई में अब 10 जनवरी की नई तारीख दे दी है। नई तारीख मिलने के साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई उसी दिशा में बढ़ रही है, जिस ओर इस मामले को मुस्लिम पक्षकारों के वकील और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ले जाना चाहते हैं।

सिब्बल पहले ही सुप्रीम कोर्ट से आग्रह कर चुके हैं कि इस मामले को 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ही सुना जाना चाहिए। वे अदालत में लगातार कोशिश करते रहे हैं कि राम जन्मभूमि अयोध्या केस पर हो रही सुनवाई को अधिक से अधिक समय तक टाला जा सके। हालांकि पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के कार्यकाल में वे ऐसा कर पाने में सफल नहीं हुए थे, लेकिन उनके रिटायर होने के बाद अभी तक की दोनों तारीखों पर हुई सुनवाई इसी बात को संकेत दे रही है कि देश की शीर्ष अदालत से इस मामले में जल्दी फैसला आने की संभावना काफी कम है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद 29 अक्टूबर को जब इस मामले की सुनवाई हुई, तो उस वक्त मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने कुछ मिनट की सुनवाई के बाद ही इसे जनवरी के प्रथम सप्ताह तक के लिए टाल दिया था।

29 अक्टूबर को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इसे प्राथमिकता वाला मामला नहीं मानते हुए स्पष्ट किया था कि जनवरी के प्रथम सप्ताह में उचित पीठ के समक्ष इस मामले को सूचीबद्ध किया जाएगा, जो इसकी सुनवाई का कार्यक्रम निर्धारित करेगी। दो महीने से भी अधिक समय तक के लिए मामले को टाले जाने और अदालत द्वारा इसे प्राथमिकता वाला मामला नहीं बताए जाने पर हिंदू संगठनों ने विरोध भी जताया और इसकी शीघ्र सुनवाई करने की मांग भी की। हिंदू महासभा ने अदालत में एक याचिका दाखिल कर सुनवाई की तारीख पहले करने का आग्रह भी किया था, जिससे कोर्ट ने इनकार कर दिया।

अंततः जब चार जनवरी को इस मामले की सुनवाई हुई तो उम्मीद थी कि अब 29 अक्टूबर के आदेश के आलोक में इस केस की सुनवाई का कार्यक्रम निर्धारित हो जाएगा, लेकिन चार जनवरी को भी मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने कहा कि एक उपयुक्त पीठ मामले की सुनवाई की तारीख तय करने के लिए 10 जनवरी को आगे के आदेश देगी। इस उपयुक्त पीठ का भी अभी गठन नहीं हुआ है। दस जनवरी के पहले इसका गठन किया जाएगा। जबकि 29 अक्टूबर के आदेश में साफ कहा गया था कि जनवरी के प्रथम सप्ताह में उचित पीठ के सामने इसे सूचीबद्ध किया जाएगा। मतलब चार जनवरी के पहले पीठ का गठन कर लिया जाना चाहिए था, जो नहीं किया गया और इस कारण अयोध्या केस को एक और तारीख मिल गई। अब 10 जनवरी के पहले तीन जजों की जिस उपयुक्त पीठ का गठन होगा, वो मामले की सुनवाई तय करने के लिए आगे के आदेश देगी। मतलब उस दिन भी मामले की सुनवाई शुरू नहीं होगी, बल्कि सिर्फ सुनवाई की तारीख तय की जाएगी और 10 जनवरी को जो अगली तारीख दी जाएगी, उस दिन से मामले की सुनवाई शुरू होगी।

29 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अयोध्या मामले को सुप्रीम कोर्ट के नजरिये से प्राथमिकता वाला मामला भले ही नहीं माना था, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि अयोध्या विवाद भारतीय इतिहास में चलने वाले सबसे पुराने केसों में से एक है। ये मामला पहली बार 1885 में अदालत में पहुंचा था और तब से अभी तक विभिन्न अदालतों में अटका पड़ा है। इसके पहले 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद इस बात की उम्मीद बनी थी कि जल्द ही अयोध्या विवाद का न्यायालय द्वारा समाधान कर दिया जाएगा। लेकिन ये उम्मीद अभी तक पूरी नहीं हो सकी है और ये मामला आज भी अपने न्यायसंगत समाधान के लिए अदालत में लटका ही हुआ है। अभी भी ये मामला आगे कब तक खिंचता रहेगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।

ऐसा कहना इसलिए भी प्रासंगिक है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने चार जनवरी को एक वकील हरीनाथ राम की ओर से रोजाना सुनवाई की मांग को लेकर दाखिल की गई याचिका को खारिज कर यही संकेत दिया है कि मामले की सुनवाई रोजाना होने की संभावना काफी कम है और इस मामले को भी अन्य मामलों की तरह ही सुना जाएगा। साफ है की ऐसा होने पर यह मामला आगे खिंचता ही जाएगा। अदालत के लिए अयोध्या मामले का कितना महत्व है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि चार जनवरी को अलग-अलग पक्षों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और राजीव धवन को अदालत में अपनी बात रखने का मौका तक नहीं मिला।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल में दिए अपने एक साक्षात्कार में स्पष्ट किया है कि उनकी सरकार कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही संविधान के तहत इस दिशा में उपयुक्त कदम उठाएगी। स्पष्ट है कि सरकार भी हिंदू संगठनों की मांग के अनुरूप अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए तत्काल कोई अध्यादेश लाने नहीं जा रही है। ऐसे में इस मामले के लंबे समय तक खिंचने की संभावना बन गई है। कहा जाता है कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाएड’ यानी न्याय में देरी भी अन्याय है।

अयोध्या का मामला अदालत में 134 सालों से चल रहा है। अब श्रद्धालुओं में अकुलाहट होने लगी है। ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट या सरकार खुद इस समस्या के समाधान के लिए कोई सार्थक पहल नहीं करती है, तो हिंदू जनमानस एक बार फिर 1992 की तरह ही उद्वेलित हो सकता है। ऐसी स्थिति सरकार और न्यायपालिका दोनों के लिए ही शर्मनाक होगी। इसलिए न्यायपालिका को चाहिए कि वह देश की बहुसंख्यक आबादी की भावना का भी सम्मान करें और इस मामले की शीघ्र सुनवाई कर इसे एक न्यायसंगत समाधान प्रदान करे। 


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