ओबीसी, दलित और अजा-जजा के वोटरों को गोलबंद करने में जुटी भाजपा, विपक्ष परेशान

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नई दिल्ली, 30 सितम्बर । जब सब कुछ राजनीति व सत्ता पाने के औजार के हिसाब से देखा जा रहा है तो उसके लिए देश में जातियों की जनसंख्या सबसे प्रभावी व कारगर हथियार बन गयी है। इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियां किसी न किसी तरह से जनसंख्या बहुल जातियों को लुभाने की कोशिश करती रही हैं। अब भाजपा इन जातियों के मतदाताओं को आक्रामक तरीके से गोलबंद कर रही है, जिससे विपक्षी पार्टियों की चिंता बढ़ गई है।

अगर देश में जनसंख्या का वर्गीकरण करें तो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 36 प्रतिशत, अगड़ी जातियां 19 , अनुसूचित जाति एवं दलित 16 , मुसलमान 14 , अनुसूचित जन जाति आठ, ईसाई और सिख एक-एक तथा अन्य वर्ग पांच प्रतिशत हैं। इनमें से ओबीसी, अनुसूचित जाति, दलित और अनुसूचित जन जाति को मिलाकर कुल 60 प्रतिशत हो जाते हैं।
यदि किसी राजनीतिक पार्टी का देश की इन जातियों के कुल 60 प्रतिशत के आधे पर भी पकड़ बन जाये तो वह 50 वर्ष तक इस देश पर राज कर सकती है, क्योंकि इतनी पकड़ इन जातियों पर बनने के बाद अन्य जातियों में भी उस राजनीतिक पार्टी की पकड़ होगी ही। इसके चलते वह पार्टी इस देश के मतदाताओं का 40 से 45 प्रतिशत तक मत पा सकती  है ।

भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 31 प्रतिशत वोट पाकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। ऐसे में किसी भी राष्ट्रीय पार्टी को यदि लोकसभा चुनाव में 35 से 40 प्रतिशत भी वोट मिल जाये तो उसकी सबसे अधिक सीटें आयेंगी और पूर्ण बहुमत की सरकार होगी। इसी वजह से भाजपा संगठन व सरकार ओबीसी , अनुसूचित जाति-अनुसूचित जन जाति के मतदाताओं को खुश करने के लिए सबसे अधिक जोर लगाये हुए है। हर तरह का उपक्रम कर रही है। भाजपा की इस जातिगत गोलबंदी को लेकर विपक्षी पार्टियाें की चिंता बढ़ गई है और वे तरह – तरह की बातें कर रही हैं।

इस बारे में एआईसीसी सदस्य अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी व उसके सर्वेसर्वा यह जो कर रहे हैं और जिस तरह से कर रहे हैं, इससे सबसे अधिक नुकसान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को हो रहा है। हालांकि अनिल श्रीवास्तव की राय से उलट भाजपा सांसद लाल सिंह बड़ोदिया का कहना है भाजपा सबका साथ, सबका विकास की नीति पर चल रही है, जो विपक्षी पार्टियों को रास नहीं आ रहा है, इसलिए वह तो इसमें मीन मेख निकालेंगी ही।


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